15-Dec-2015 09:38 AM
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केंद्र में एनडीए की सरकार बनते ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की तस्वीर और तक्दीर बदलने का बीड़ा उठाया। इसी कड़ी में उन्होंने स्पेन के शहर बार्सिलोना, अमेरिका के शहर न्यूयार्क, बिटेन की राजधानी लंदन, फ्रांस के शहर नीस

और एशिया के इकलौते शहर सिंगापुर की तरह भारत के भी शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने की पहल की। इस कड़ी में मोदी सरकार भारत के सौ शहरों को स्मार्ट बनाना चाहती है। 15 दिसंबर को सभी राज्यों ने अपने चयनित शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने के प्रोजेक्ट रिपोर्ट को केन्द्र सरकार को सौंप दिया है। उसमें मध्यप्रदेश के 7 शहरों भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, उज्जैन, सतना और सागर भी शामिल हैं। इन सातों शहरों के महापौर और नगर निगम आयुक्तों ने केन्द्र सरकार को प्रोजेक्ट रिपोर्ट सौंपने से पहले प्रदेश के मुख्य सचिव एंटोनी डिसा के सामने उसका प्रस्तुतिकरण किया। जिसको मुख्य सचिव ने भी सराहा। लेकिन अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या हमारे अव्यवस्थित शहर स्मार्ट सिटी बन सकेंगे?
दरअसल यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि स्मार्ट सिटी का नाम आते ही हमारे जेहन में एक ऐसे शहर का बिम्ब आता है जो सुव्यवस्थित हो, जहां लोग साइकिल चला पाते हों, सड़कों पर पैदल चलने की जगह हो, पार्क हो, यातायात सुलझा हुआ हो, सड़कें और इमारतें योजनाबद्ध तरीके से बनी हों, शहरी और सार्वजनिक यातायात सुलभ हो, बिजली, पानी, इंटरनेट जैसे आम सुविधाओं की अबाध्य आपूर्ति हो। बाकी, शहर का कैरेक्टर तो धीरे-धीरे ही तैयार होता है। ये सब किसी नए बसे शहर पर शायद बेहतर फिट हो लेकिन पुराने शहर कैसे बनेंगे स्मार्ट इसको लेकर सभी उधेड़बुन में हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सोच और समझ सराहनीय है। लेकिन भारतीय शहरों को स्मार्ट सिटीÓ बना पाना आसान काम तो बिल्कुल नहीं है। सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि हमारे ज्यादातर पुराने शहर अनियोजित हैं, उनकी सही मैपिंग उपलब्ध नहीं है। इन शहरों की 70 से 80 फीसदी आबादी अनियोजित इलाकों में रहती है। इन इलाकों में लगातार आवाजाही होती रही है। ऐसे में आप काम की शुरूआत भी कैसे कर पाएंगे। लेकिन इन तमाम सवालों के बीच मध्यप्रदेश के सात शहरों ने स्मार्ट सिटी का जो प्रोजेक्ट तैयार करके केन्द्र को भेजा है उससे एक व्यवस्थित शहर की आस तो जगी है। राजधानी भोपाल, व्यावसायिक राजधानी इंदौर, संस्कारधानी जबलपुर, तानसेन की नगरी ग्वालियर, महाकाल की नगरी उज्जैन, सतना और सागर में 4127 एकड़ जमीन पर 17 हजार 558 करोड़ रुपए की लागत से स्मार्ट सिटीज का निर्माण किया जाएगा। इन प्रस्तावों को मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली राज्य उच्चस्तरीय संचालन समिति ने हरी झंडी दे दी। खास बात यह है सभी शहरों में रीडेवलपमेंट के जरिए पैसा कमाकर पूरे शहर की दो से तीन सेवाओं को सुधारा जाएगा। अगले दस साल की वित्तीय स्थिति के हिसाब से प्लानिंग की गई है। इनमें सफाई, ट्रैफिक, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, सिटी गवर्नेंस आदि के प्रोजेक्ट लिए गए हैं। प्रस्तावों के क्रियान्वयन के लिए हर शहर में स्पेशल परपज व्हीकल (एसपीवी) के गठन को भी मंजूरी दी गई। नगरीय विकास संचालनालय के कमिश्नर विवेक अग्रवाल ने बताया कि ये प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेज दिया गया है। केंद्र सरकार पूरे देशभर के 98 शहरों में से 20 स्मार्ट सिटी का चुनाव इस साल के लिए करेगी और इनकी घोषणा 26 जनवरी को की जाएगी। उल्लेखनीय है कि स्मार्ट सिटी की दौड़ में भोपाल देश में अव्वल है। इसको सुनकर शहर ही नहीं प्रदेशभर के लोग अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। लेकिन राजधानी के वर्तमान हालात को देखकर हर कोई इस बात से चिंतित है कि स्मार्ट सिटी के लिए शहर के जिस हिस्से का चयन किया गया है वहां इस प्रोजेक्ट को धरातल पर उतारने में क्या नगर निगम सफल हो पाएगा। उल्लेखनीय है कि राजधानी में मेन रोड एक पर संजीवनी से व्यापमं चौराहा और मेन रोड दो पर सेंकड स्टॉप से नूतन कॉलेज तक के शिवाजी नगर और तुलसी नगर में पुराने सरकारी मकानों को तोड़कर 359 एकड़ में रीडेवलपमेंट का ही प्रोजेक्ट लिया गया है। यहां चारों कोनों पर नॉलेज हब, इनोवेशन हब, मेडिकल-हेल्थ हब और कल्चरल हब बनाने का प्रस्ताव है। पूरे शहर के लिए स्मार्ट यूनिफाइड गवर्नेंस और स्मार्ट वेस्ट मैनेजमेंट का प्रोजेक्ट बनाया गया है। साथ ही पैन सिटी के दूसरे प्रोजेक्ट मेें इंटेलिजेंट स्ट्रीट लाइटिंग है आदि का प्रावधान किया गया है। निगम ने कागजों पर खाका तो तैयार कर दिया है, लेकिन स्मार्ट सिटी का सपना अभी दूर की कड़ी नजर आ रहा है। जानकारों का कहना है कि इससे आसान तो होगा कि नए शहर ही बसाए जाए, जहां हर चीज कि प्लानिंग पहले से की गई हो। एक बसे-बसाए शहर का स्मार्ट सिटी बनना इतना आसान भी नहीं है। सिर्फ साफ-सफाई के दम पर कोई सिटी स्मार्ट सिटी नहीं बनती। बल्कि स्मार्ट बनने के लिए उसे कई कसौटियों पर खरा उतरना पड़ता है। सिर्फ आर्थिक विकास और आसमान छूती इमारतों की वजह से कोई शहर स्मार्ट नहीं बनता, बल्कि कई कसौटियों पर खरा उतरने के बाद इन शहरों को स्मार्ट सिटी का दर्जा मिला। जाहिर है इन तमाम कसौटियों पर परखे जाने के बाद ही एक शहर को स्मार्ट सिटी का दर्जा मिलता है। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव कहते हैं कि स्मार्ट का मतलब किसी शहर की आर्थिक तरक्की या तकनीकी तरक्की कतई नहीं है। बल्कि निवासियों के रहन-सहन का स्तर, उन्हें मिलने वाली सुविधाएं, टेक्नोलॉजी का बेहतर इस्तेमाल जैसी कई चीजें मिलकर एक शहर को स्मार्ट बनाती हैं। ऐसे में सवाल ये कि क्या नरेंद्र मोदी सरकार की स्मार्ट सिटी योजना में शामिल शहरों को इन कसौटियों पर कसा जाएगा। अगर मोदी सरकार दुनिया की इन स्मार्ट सिटी को आधार बनाते हुए स्मार्ट सिटी बनाएगी तो हमारी शहर भी दुनिया के बेहतरीन शहरों को टक्कर देंगे।
लोगों में भी चाह है कि वे स्मार्ट शहरों के निवासी कहलाएं, लिहाजा इस परियोजना पर उनकी नजर भी बनी हुई है। लेकिन एक बड़ा सवाल सभी के सामने है और वो ये है कि एक शहर आखिर स्मार्ट कब कहलाता है। सरकार से लेकर इन योजनाओं पर काम करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों और आम लोग तक इसका अलग-अलग जवाब देते हैं। ऐसा होना लाजमी भी है क्योंकि स्मार्टनेस की परिभाषा सभी के लिए अलग होती है।
मेलबोर्न की टाउन प्लानर और डिजाइनर रिचा स्वरूप का कहना है कि स्मार्ट सिटी का मतलब केवल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करना नहीं, बल्कि हर नागरिक के लिए जरूरी सेवाओं को सुलभ बनाना है। ऐसे शहर में हर आयु वर्ग के नागरिकों की सुविधा का ध्यान रखा जाना जरूरी है। ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न से तुलना करें तो वहां यातायात व्यवस्था और वेस्ट मैनेजमेंट पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाता है, लेकिन भोपाल में यह दोनों ही नहीं है। इन कमियों के बावजूद उन्हें भोपाल में स्मार्ट सिटी बनने की पूरी संभावना नजर आती है, लेकिन इसके लिए वे प्लानिंग में ईमानदारी को सबसे जरूरी मानती हैं।
ऐसी होगी आपकीस्मार्ट सिटी
भोपाल के प्रोजेक्ट की खास बातें
शिवाजी नगर और तुलसी नगर में 25 फीसदी क्षेत्र में निर्माण किया जाएगा। इसमें से 70 फीसदी आवासीय और 30 प्रतिशत हिस्सा व्यावसायिक गतिविधियों के लिए रखा गया है।
रीडेंसीफिकेशन के तहत क्षेत्र के 1835 सरकारी आवासों को तोड़कर निर्माण किया जाएगा। यह आवास क्षेत्र में 50 फीसदी हिस्से में हैं।
शहर की स्ट्रीट लाइट व्यवस्था स्मार्ट होगी। स्ट्रीट लाइट्स को स्मार्ट करने सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाएगा।
पेन सिटी में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट की व्यवस्था है। इसके तहत साफ-सफाई व्यवस्था सुदृढ़ की जाएगी।
पूरे शहर पानी सप्लाई सीवेज की समस्या से मुक्ति है। व्यवस्था पूरे शहर में लागू होगी। सीवेज के लिए 900 करोड़ और पानी सप्लाई के लिए 450 करोड़ रुपए का प्रस्ताव है।
इंदौर के प्रोजेक्ट की खास बातें
- प्रोजेक्ट के तहत 2500 कार खड़ी रहने लायक जगह निकाली जाएगी और नए पार्किंग स्थल बनाए जाएंगे। इन जगहों का उपयोग दो पहिया वाहनों की पार्किंग के लिए भी हो सकेगा।
- फ्लेटेड इंडस्ट्री कांसेप्ट के तहत मजदूरों के लिए बड़े और सुविधायुक्त नए कार्यस्थल तैयार किए जाएंगे। अभी रेडीमेड गारमेंट आदि बनाने के लिए छोटे-छोटे हॉल में 15-20 मजदूर एक साथ काम करते हैं।
- पब्लिक टॉयलेट पर्याप्त संख्या में बनाए जाएंगे, जिससे बाजारों में होने वाली गंदगी कम होगी।
- कृष्णपुरा क्षेत्र में सड़क किनारे बैठने वाले लोगों के लिए नया हाट बाजार बनाकर उन्हें वहां व्यवस्थित रूप से बैठाया जाएगा। इससे ट्रैफिक को राहत मिलेगी।
- नए ट्रेनिंग और स्किल डेवलपमेंट सेंटर की स्थापना के लिए भी जमीन की व्यवस्था की जाएगी।
जबलपुर के प्रोजेक्ट की खास बातें
-आर्थिक रूप से मजबूती और रोजगार पैदा करना - इसके लिए नगर निगम रेडीमेट गारमेंट के व्यवसाय को मजबूत बनाने की दिशा में काम करेगा। इसके अलावा आय के नए साधन भी बनाए जाएंगे।
- इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप में शहर का स्ट्राम वॉटर ड्रेनेज सिस्टम, सीवरेज सिस्टम, ट्रांसपोटेशन सहित उन सभी सिस्टमों को सुधारा जाएगा जिनकी शहर को जरूरत है।
-सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत शहर में डोर टू डोर कचरा कलेक्शन सिस्टम शुरू किया जाएगा।
- गेट वे टू इको इकोलॉजिकल सिस्टम में आसपास के राष्ट्रीय उद्यानों के लिए होटल मैनेंजमेंट, गाइड की व्यवस्था तथा टूरिज्म के बारे में बच्चों को जानकारी देने ट्रेनिंग सेंटर सहित अन्य व्यवस्था की जाएंगी ताकि पर्यटकों को लुभाया जा सके।
कसौटी स्मार्ट सिटी की
टेक्नोलॉजी- यानी शहर में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किस हद तक और किसके लिए किया जा रहा है।
बिल्डिंग- शहर की इमारतें नियम के तहत बनी हैं या नहीं, उनमें जरूरी सुविधाएं सुलभ हैं या नहीं।
सार्वजनिक सुविधाएं- शहर में जनता के लिए सार्वजनिक सुविधाएं हैं या नहीं, और हैं तो उनका स्तर कैसा है।
सड़क और परिवहन- शहर में सड़कों का स्तर कितना अच्छा है। सार्वजनिक परिवहन कितना असरदार है और गाडिय़ों की आवाजाही के इंतजाम कितने अच्छे हैं।
रोजगार- शहर में रोजगार के कितने अवसर मौजूद हैं।
जीवन स्तर- शहर में रहने वाले लोगों का जीवन स्तर कैसा है।
शहर और उनकी प्रोजेक्ट रिपोर्ट
भोपाल: प्रोजेक्ट की लागत 3437 करोड़ रुपए। शिवाजी नगर के मकानों को तोड़कर 359 एकड़ में रीडेवलपमेंट।
इंदौर: प्रोजेक्ट की लागत 5099 करोड़ रुपए। राजवाड़ा और इसके आसपास की 742 एकड़ जमीन पर पानी, बिजली, सीवेज, पब्लिक ट्रांसपोर्ट से लेकर हर तरह की सेवाओं को स्मार्ट बनाया जाएगा।
जबलपुर : लागत 3998 करोड़ रुपए। नेपियर टाउन, राइट टाउन और गोल बाजार में रेट्रोफिटिंग कर सभी सेवाओं को स्मार्ट करना। पूरे इलाके को पैडेस्ट्रियन के हिसाब से विकसित करना।
ग्वालियर : 2415 करोड़ रुपए। महाराज बाड़ा में 638 एकड़ में रेट्रोफिटिंग कर पानी, बिजली, सीवेज, पार्क आदि में सुधार करना। यहां की पुरानी ऐतिहासिक इमारतों का संरक्षण होगा।
उज्जैन: 1175 करोड़ रुपए। महाकाल के आसपास के 620 एकड़ में सभी सेवाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर को अपग्रेड करना। मिल की जमीन पर नॉलेज सिटी ।
सागर : 996 करोड़ रुपए। लाखा बंजारा के 650 एकड़ जमीन पर हर सेवाओं को अपग्रेड करना। सागर ताल के किनारे लेक फ्रंट डेवलपमेंट करना।
सतना : 1130 करोड़ रुपए। बायपास स्थित हवाई पट्टी के पास 375 एकड़ सरकारी जमीन पर नया टॉउन विकसित करना। यह काम ग्रीन फील्ड के तहत होगा।
भोपल में विधानसभा क्षेत्रों में मिली राशि
विधायकों के विरोध के बाद नगर निगम प्रशासन स्मार्ट सिटी के लिए सभी विधानसभा क्षेत्रों के लिए राशि का प्रावधान कर दिया है। इससे संबंधित क्षेत्र में स्मार्ट लाइटिंग की व्यवस्था की जाएगी। हालांकि स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट से कांग्रेसी पार्षद जरूर असंतुष्ट है।
हुजूर विधानसभा क्षेत्र : 120 करोड़
उत्तर विधानसभा क्षेत्र: 130 करोड़
मध्य विधानसभा क्षेत्र : 130 करोड़
दक्षिण-पश्चिम विधानसभा क्षेत्र :120 करोड़
नरेला विधानसभा क्षेत्र : 170 करोड़
गोविन्दपुरा विधानसभा क्षेत्र : 120 करोड़
प्लान में खाली जमीन
पर हरियाली
उज्जैन का प्लान प्रदेश के अन्य शहरों से अलग स्मार्ट हेरिटेज और पर्यटन के मुद्दे पर खास है लेकिन इसमें हरियाली के लिए खाली जमीन का मुद्दा भी उभरा है। हरियाली के लिए बंद उद्योगों की खाली जमीनों का उपयोग होना है। ये जमीन नगर निगम को कैसे मिलेगी, इस पर प्रदेश स्तर पर विचार होगा। प्लान में यहां आयोजित होने वाले सिंहस्थ को भी ध्यान में रखा गया है।
उजड़ेगी हरियाली, कांग्रेस
ने किया विरोध
भोपाल के वार्ड 31 के कांग्रेस पार्षद अमित शर्मा का कहना है कि शिवाजी नगर और तुलसी नगर में 20 हजार पेड़ हैं। स्मार्ट सिटी बनने से पेड़ों काटा जाएगा। इससे क्षेत्र में हरियाली उजड़ जाएगी। क्षेत्र में स्मार्ट सिटी बनाने का कोई औचित्य नहीं है। शिवाजी नगर और तुलसी नगर से पुराने 1100 क्वार्टर और अन्य क्षेत्र हैं, जिन्हें स्मार्ट सिटी में शामिल किया जा सकता था।
यह हमारे लिए गर्व की बात है कि भोपाल स्मार्ट सिटी की दौड़ में सबसे आगे है। हमारे प्रोजेक्ट को भी सराहा गया है। शहर की जनता को नए साल में स्मार्ट सिटी के रूप में अनुपम सौगात मिलनी तय है।
आलोक शर्मा, महापौर भोपाल
इंदौर का प्रोजेक्ट सबसे बेहतर बना है। देश के लोगों को बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने के लिए प्रधानमंत्री मोदी जी ने एक अच्छी पहल की है और हम उनके सपने को पूरा करने में लगे हुए हैं।
मालिनी गौड़, महापौर इंदौर
स्मार्ट सिटी की प्राथमिकता शहर को आर्थिक रूप से मजबूत करना और रोजगार के साधन बढ़ाना है। इसके अलावा टूरिज्म के क्षेत्र में मौजूद संभावनाओं को भी विकसित किया जाएगा। नेपीयर क्षेत्र में विकास कार्य व्यवस्थित ढंग से कराया जाएगा।
-डॉ. स्वाती गोडबोले, महापौर जबलपुर
स्मार्ट सिटी बनाने में हम (महापौर) लोगों के पास तो कोई अधिकार ही नहीं है, जो भी अधिकार है वह स्पेशल परपज वीकल को हैं। फिर भी हम कोशिश में लगे हैं।
- विवेक शेजवलकर, महापौर, ग्वालियर
महाकाल की नगरी में देश-विदेश से लोग आते हैं। अगर शहर को स्मार्ट सिटी का दर्जा मिलता है तो यहां आने वाले लोगों को बेहतर सुविधाएं मिल सकेंगी। वैसे हमारी कोशिश है कि हम शहर को किसी भी तरह व्यवस्थित करें।
-मीना जोनवाल, महापौर उज्जैन
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का सपना साकार करने के लिए प्रदेश सरकार के साथ हम भी जुटे हुए हैं हमने एक बेहतर प्रोजेक्ट तैयार किया है। शहर का विकास हर हाल में करना है।
-अभय दरे, महापौर सागर
सतना को स्मार्ट सिटी का दर्जा मिले इसके नगर निगम के साथ ही यहां के आमजन भी कोशिश में लगे हुए हैं। शहर के विकास के लिए हमारी कोशिशें निरंतर जारी रहेंगी। स्मार्ट सिटी का दर्जा मिले या न मिले। शहर को बेहतर बनाना है।
-ममता पाण्डेय, महापौर सतना