तिवाड़ी की बगावत
04-Apr-2013 08:35 AM 1234773

गर्मियों में राजस्थान भारतीय जनता पार्टी का तापमान कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है। पिछली बार मई माह में गुलाब चंद कटारिया की संभाग से निकलने वाली लोकजागरण यात्रा को लेकर बवाल मचा था इस बार भाजपा के नाराज नेता घनश्याम तिवाड़ी की देवदर्शन यात्रा को लेकर बवाल मचा हुआ है। सारे नेता उत्सुकता से किरण माहेश्वरी के चेहरे की और देख रहे हैं कि क्या वे महारानी के लिए इस बार भी आंसू बहाने वाली हैं। पिछली बार तो उन्होंने अभूतपूर्व हंगामा खड़ा कर दिया था। लेकिन तिवाड़ी कच्ची गोटी खेलने वालों में से नहीं हैं। तिवाड़ी का आरोप है कि उनके खिलाफ षड्यंत्र रचा जा रहा है और षड्यंत्र रचने वाले व्यक्ति को वह जानते हैं पर उसका नाम बताए भी तो किसे बताएं क्योंकि जिस गुलाबचंद कटारिया से उन्हें बड़ी उम्मीदें थी वह तो खुद ही असहाय हैं। हालत यहां तक आ पहुंची है कि तिवाड़ी प्रदेश नेतृत्व का निर्देष दरकिनार कर देवदर्शन यात्रा पर निकल आए हैं। और उन्होंने प्रतिपक्ष के उपनेता का पद भी त्याग दिया है। तिवाड़ी का कहना है कि वे राजस्थान को लुटेरों की चारागाह नहीं बनने देंगे। सवाल यह है कि स्वयं उन पर ही आय से अधिक संपत्ति के आरोप लगे हुए हैं। यह भी कहा जा रहा है कि उन्होंने नितिन गडकरी की तरह अपने करीबियों के नाम ही कंपनियां बना डाली थी। लेकिन वसुंधरा राजे की सुराज संकल्प यात्रा के समानांतर तिवाड़ी की देवदर्शन यात्रा से उनके संबंध भाजपा से और ज्यादा बिगड़ गए। तिवाड़ी का कहना है कि उनकी यात्रा डेढ़ वर्ष पूर्व ही नियोजित कर ली गई थी, लेकिन भाजपा उनकी इस दलील से संतुष्ट नजर नहीं आ रही है। इसीलिए अब वे अलग-थलग पड़ गए हैं और उनकी टीम के दूसरे सदस्य कटारियां के अलावा वसुंधरा राजे की कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष बने अरुण चतुर्वेदी व ओंकार सिंह लखावत के साथ छोडऩे से तिवाड़ी का दुख और बढ़ गया है, लेकिन इससे भी बड़ा दुख यह है कि तिवाड़ी पर यदि आय से अधिक संपत्ति रखने का मामला बनता है तो उनका साथ देने के लिए फिलहाल पार्टी में कोई है नहीं। तिवाड़ी का कहना है कि उनके परिवार के साथ षड्यंत्र किया जा रहा है और उन्हें राजनीतिक रूप से नष्ट करने के लिए लाक्षागृह जैसी तैयारी की जा रही है। तिवाड़ी के निशाने पर वसुंधरा हैं, लेकिन राजस्थान में वसुंधरा को चुनौती देने वाला फिलहाल कोई है नहीं। शायद इसीलिए तिवाड़ी ने हताश होकर अपनी नई पार्टी बना ली है और इस पार्टी का नाम उन्होंने राजस्थान देशम रखा है। तिवाड़ी का कहना है कि वे पहले देवदर्शन यात्रा करके वसुंधरा के खिलाफ माहौल बनाएंगे ताकि भाजपा सहित राजस्थान को उनके चंगुल से बचाया जा सके। तिवाड़ी ने आरोप लगाया कि वसुंधरा की वजह से ही राजस्थान में भाजपा की हालत खराब हुई है।
तिवाड़ी की चुनौती कितनी बड़ी है यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन इतना तो तय है कि इससे भाजपा की आंतरिक राजनीति बुरी तरह प्रभावित होगी और वसुंधरा राजे को भी कहीं न कहीं इसका प्रभाव पड़ेगा। दरअसल तिवाड़ी को उम्मीद थी कि उन्हें वसुंधरा किसी न किसी रूप में भारतीय जनता पार्टी में सम्मानित तरीके से स्थापित कर देंगी। लेकिन उनके ऊपर जिस तरह के आरोप लगे उसके चलते उनका पुनर्वास फिलहाल संभव नहीं है और उनके समर्थक भले ही चुनाव न जीतें लेकिन भाजपा का खेल बिगाड़ सकते हैं। खासकर उन क्षेत्रों में जहां भाजपा को जिताने में संघ की भूमिका रहती है, फर्क पड़ सकता है क्योंकि संघ भी वसुंधरा से अंदर ही अंदर उतना खुश नहीं है। इसका असर भाजपा की तीन वर्ष बाद हुई कार्यकारिणी में भी दिखाई दिया है। वसुंधरा राजे का कहना है कि वे टिकिट योग्यता के आधार पर ही बांटेंगी। वसुंधरा के इस कथन से यह तो साफ हो गया है कि कुछ मौजूदा विधायकों के टिकट काटे जा सकते हैं। क्योंकि भाजपा ने जो क्राइटेरिया बनाया है उसके तहत जो लोग काम कर रहे हैं और जनता के बीच लोकप्रिय हैं उन्हें ही टिकिट थमाया जाएगा बाकी लोगों को अलग रखा जाएगा। लेकिन ऐसा होता दिखता नहीं है वसुंधरा की मनमानी पूरी तरह शायद ही चले इसका जीता जागता उदाहरण कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष पद पर अरुण चतुर्वेदी की नियुक्ति अभी तक यह गुत्थी नहीं सुलझी है कि अरुण चतुर्वेदी ने कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष का पद कैसे स्वीकार कर लिया। जबकि वे हाल ही में अध्यक्ष पद से निवृत्त हुए थे। क्या चतुर्वेदी स्वयं वसुंधरा के निकट जाना चाह रहे हैं या वसुंधरा ने उन्हें अपनी तरफ मिला लिया है। अरुण चतुर्वेदी के इस कदम ने उनकी प्रतिष्ठा को पर्याप्त नुकसान पहुंचाया है। क्योंकि कार्यकारिणी में वे पहले अध्यक्ष हुआ करते थे और अब पद से दूर होने पर पद लोलुपता के चलते उपाध्यक्ष बनना भी स्वीकार कर लिया है। अरुण चतुर्वेदी को सिद्धांतवादी नेता माना जाता है, लेकिन लगता है सत्ता के लिए उन्होंने सारे सिद्धांत ताक पर रख दिए हैं। अब वसुंधरा के रास्ते से एक बड़ा कांटा भी हट गया है क्योंकि पार्टी की जो भी दुर्गति होगी उसमें वे अकेली भागीदार नहीं बनेंगी। प्रदेश में कांग्रेस को कमजोर समझने की भूल करना भाजपा को भारी पड़ सकता है। हाल के दिनों में गहलोत की छवि में गुणात्मक सुधार देखने को मिला है और वे एक मजबूत प्रतिद्वंदी के रूप में उभर रहे हैं।

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