02-Dec-2015 08:32 AM
1235014
जिस देश के आधे से ज्यादा लोगों को इंटरनेट का आई भी नहीं पता उनके लिए मुफ्त इंटरनेट लाने की खबर जब उन लोगों ने सुनी जो मोटी रकम देकर इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, तो वो बिलख उठे। भारत में इंटरनेट डॉट ओआरजी को

फैलाने की मार्क जकरबर्ग की महात्वाकांक्षी योजना की लुटिया डूबती हुई दिखी। सवाल ये है कि जिन लोगों के लिए जकरबर्ग इंटरनेट सुविधा देने की बात कह रहे हैं, क्या उन्हें वाकई इसकी जरूरत है? जिस देश में लोग अभी फेसबुक और गूगल तो जानते नहीं, इंटरनेट डॉट ओआरजी और नेट न्यूट्रलिटी का सपना कहां से देखेंगे? और मुफ्त में इंटरनेट देकर जकरबर्ग अपना कौन सा मकसद पूरा करना चाहते हैं।
आंकड़ों के मुताबिक, देश में इंटरनेट का कुल यूजर करीब 35 करोड़ है और फेसबुक के करीब 12.5 करोड़ से ज्यादा यूजर हैं, जबकि देश की आबादी 1.28 अरब के आस-पास है। अब सोचिए कि जब फेसबुक और कुल इंटरनेट यूजर्स के बीच इतना फासला है तो उन लोगों तक इंटरनेट कैसे पहुंचाएंगे, जिनकी इंटरनेट को लेकर समझ बिल्कुल भी नहीं है, वो भी फ्री में।
दरअसल, सबके लिए इंटरनेट बांटने का बीड़ा उठाने से पहले जकरबर्ग को यह जान लेना चाहिए कि यहां लोग एक पाई नहीं खर्च करना चाहते और सारा मजा ले लेना चाहते हैं, फिर गांव-गांव में इंटरनेट पहुंचा भी देंगे तो क्या होगा? फ्री में लोग सिर्फ फेसबुक ही चला पाएंगे और बहुत होगा तो कैंडी क्रश डाउनलोड करके बाकियों का जीना हराम करेंगे। गांव में बैठा किसान जो फीचर मोबाइल पर नंबर डायल करना भी नहीं सीख पाया इतने सालों में, वह इंटरनेट का क्या करेगा? एक मिनट के लिए मान भी लें कि किसान की जगह उसका बेटा इंटरनेट का इस्तेमाल करेगा... लेकिन वह भी क्या करेगा। जिस देश के स्कूलों में पांचवीं क्लास का लड़का भी एबीसीडी न लिख पाता हो वो इंटरनेट पर क्या सर्च करेगा, यह तो समझ से परे है। जहां लोग एक टाइम खाने के जुगाड़ में पूरा दिन गुजार देते हैं, जहां लोग कई-कई दिन पानी पीकर सो जाते हैं, इनके लिए इंटरनेट का कोई मतलब नहीं है। बाकी जिसे जरूरत है, वो इसका इस्तेमाल कर रहा है, भले ही रो-धो कर ही सही।
एक बात और, हमारे देश के लड़के हैं बहुत होशियार। अच्छे-अच्छे सर्वर में प्रॉक्सी डाल के अपने काम की चीज ढूंढ़ ही लेते हैं, तो इस मामले में कहां से चूकने वाले हैं। ये मत सोचिए कि वो लिमिटेड साइट्स में अटक जाएंगे और फेसबुक पर लाइक-लाइक खेलने लगेंगे। और अगर ये सोचते हैं कि कोई इंटरनेट का बिल भरेगा तो भूल जाइए, यहां बैलेंस से 1 रुपया कटने पर तो लोग क्कह्रक्रञ्ज का मैसेज भेजकर मोबाइल कंपनी के प्राण संकट में डाल देते हैं, इंटरनेट का महंगा बिल कौन भरेगा?
इंटरनेट डॉट ओरआरजी के रास्ते में बाधा साथी नेटवर्क रिलायंस भी है। जिसका नेटवर्क शहरी इलाकों में भी ठीक से काम न करता हो, वह सुदूर गांवों में मुफ्त इंटरनेट कैसे दे देगा? यहां तो अच्छे-अच्छे ऑफिसों में इंटरनेट का हाल ऐसा है कि टैब पर सर्च सेलेक्ट करके लोग चाय पीने चले जाते हैं और लौट के आते हैं तो भी सर्चिंग वाला गोला घूमता मिलता है। तो गांवों और जंगल वाले इलाकों में इंटरनेट का क्या हाल होगा, ये भी सोचा जा सकता है। इसमें कोई शक नहीं कि देश में मोबाइल यूजर बढ़ रहा है, लेकिन उसमें से कितने लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल स्मार्टली करते हैं, ये बता पाना मुश्किल है। और क्या है कि जकरबर्ग अपनी नई दुकान के जरिए फेसबुक का यूजर ट्रैफिक बढ़ाना चाहते हैं लेकिन दिन भर खेत में काम करने वाला आदमी, या रिक्शा चलाने वाला शख्स फुर्सत में अपने स्मार्टफोन से सिर्फ गाना सुन सकता है, फेसबुक पर लाइक-अनलाइक करने नहीं आएगा।
इंटरनेट डॉट ओआरजी
इंटरनेट डॉट ओआरजी, फेसबुक की ही एक अन्य कंपनी है। इंटरनेट डॉट ओआरजी के जरिए गरीब तबके के लोगों को इंटरनेट से जोडऩा ही इस कंपनी का मकसद है। दुनिया भर में सुदूर गांवों में स्थानीय भाषाओं में इंटरनेट की सुविधा दी जाएगी, ऐसा इस कंपनी का दावा है और इसके लिए मोबाइल ऑपरेटर और सरकार के समर्थन की जरूरत है। इसमें हेल्थ, करियर, एजुकेशन जैसी जानकारियों के अलावा मैसेजिंग की सुविधा भी मुफ्त में मिलेगी। भारत के छह राज्यों में इसका इस्तेमाल शुरू किया गया है जिनमें- तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, केरल और तेलंगाना शामिल हैं। फेसबुक के मालिक मार्क जकरबर्ग ने जब इंटरनेट डॉट ओआरजी को लॉन्च किया तब से लेकर अब तक यह विवादों में है। हाल ही में डिजिटल इंडिया से इसे जोडऩे की मार्क जकरबर्ग की कोशिश नाकाम हो चुकी है। जकरबर्ग का मानना है कि दुनिया में हर किसी को इंटरनेट एक्सेस का अधिकार है और उसके पास इंटरनेट होना चाहिए, इसीलिए वह अपनी इस मुहिम के तहत लोगों को मुफ्त इंटरनेट उपलब्ध कराने की कोशिश में हैं।
-राजेश बोरकर