02-Dec-2015 08:26 AM
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कहते हैं कानून अंधा होता है लेकिन शायद तब नहीं, जब जज मुकदमे की पैरवी कर रहे वकील के रिश्तेदार या परिचित हों। इस चलन को अंकल जज कहा जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों न्यायपालिका में सुधार के लिए सुझाव मांगे थे।

इसके बाद गुजरात बार काउंसिल ने अंकल जजों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई का सुझाव दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने आम लोगों से ऐसे सुझाव मांगे हैं जिनसे न्यायपालिका में जजों की मौजूदा नियुक्ति प्रक्रिया बेहतर बनाई जा सके। कॉलेजियन प्रणाली के नाम से जानी जाने वाली इस प्रक्रिया के तहत सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के लिए जज चुनते हैं।
भारतीय विधि आयोग ने 2012 में सौंपी अपनी 230वीं रिपोर्ट में हाईकोर्टों में अंकल जजों की नियुक्ति का जिक्र किया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर किसी जज का कोई रिश्तेदार या परिचित उस अदालत में बतौर वकील प्रैक्टिस कर रहा हो तो ऐसे जज को उस अदालत में नियुक्त न किया जाए। संविधान के अनुच्छेद 217 के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति 10 साल तक हाईकोर्ट या फिर लगातार दो या उससे ज्यादा ऐसी अदालतों में वकील रहा है तो हाईकोर्ट में बतौर जज नियुक्ति के लिए उसके नाम पर विचार किया जा सकता है। हालांकि मौजूदा नियमों के तहत ऐसी कोई बंदिश नहीं कि जज के परिवार का कोई सदस्य या फिर नजदीकी रिश्तेदार उसकी अदालत में प्रैक्टिस नहीं कर सकता। पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री शांति भूषण मानते हैं कि अंकल जजों से अदालत की साख प्रभावित होती है। पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री और जाने-माने वकील शांतिभूषण अंकल जजों के चलन को देश की न्यायपालिका के लिए गंभीर खतरा बताते हैं। उनका कहना है, ये बहस ईमानदार जजों को लेकर नहीं हो रही है। लेकिन भ्रष्ट जज उसी अदालत में पैरवी कर रहे अपने परिवार के सदस्यों का पक्ष लेते हैं। जब जजों के बहुत से बेटे या फिर रिश्तेदार उसकी अदालत में प्रैक्टिस कर रहे होते हैं तो जज एक दूसरे के रिश्तेदारों के पक्ष में फैसले देकर एक दूसरे की मदद करते हैं। भूषण कहते हैं कि किसी वकील को उस अदालत में प्रैक्टिस करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए जहां उनके परिवार का कोई सदस्य या रिश्तेदार जज हों। भूषण यह भी कहते हैं कि अभी ऐसा कोई विभाग नहीं है जो जजों के पूरे रिकॉर्ड या उनकी पृष्ठभूमि का हिसाब रखता हो। उनके मुताबिक, बहुत से योग्य वकील और जूनियर जज हैं, जिन्हें तलाशने और प्रमोशन देने की जरूरत है, लेकिन इसके लिए कोई व्यवस्था नहीं है। सुप्रीम कोर्ट को एक ऐसा स्थायी सचिवालय बनाना चाहिए जिसके पास जजों से जुड़ी हर जानकारी हो। इसमें उनके खिलाफ भ्रष्टाचार और अन्य आरोपों का ब्यौरा भी शामिल होना चाहिए।
वर्तमान व्यवस्था के तहत एक व्यक्ति जो उसी राज्य में स्थित जिला न्यायालय का जज है या उच्च न्यायालय में प्रेक्टिस करने वाला अधिवक्ता, उसे ही उस राज्य में अवस्थित उच्च न्यायालय का जज नियुक्त किया जाता है। अक्सर इन अंकल जजों के बारे में शिकायते सुनने को मिलाती है। अगर कोई व्यक्ति 20-25 साल तक उस न्यायालय में अधिवक्ता के रूप के कार्य कर चुका हो और उसे उसी उच्च न्यायालय में जज नियुक्त किया जाता है तो उसमें रातोरात बदलाव संभव नहीं है। उसके मित्रगण होते हैं, जूनियर और सीनियर अधिवक्ता होते हैं, परिवार-रिश्तेदार होते हैं जिन्होंने उसके साथ प्रेक्टिस/वकालत की है। यहाँ तक की कुछ जिला जज जो उच्च न्यायालय के जज बनाए जाते हैं, उनके परिवार, बेटे बेटी उसी उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करते हैं। ऐसी स्थितिया भी आती हैं जब वकील से उच्च न्यायालय के जज बने व्यक्ति द्वारा अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी वकील के साथ बदले की भावना से कार्य करते हैं या फिर अपने मित्र वकील के प्रति नरम रवैया अपनाते है इन दोनों परिस्थितियों में यह न्यायालय की निष्पक्षता को प्रभावित करता है और न्याय पराजित होता है। न्याय का तकाजा है कि वह न सिर्फ प्रदान किया जाय बल्कि यह परिलक्षित हो कि न्याय प्रदान किया गया। सेवाओं में, खासकर क्लास दो और उससे ऊपर के अधिकारियों की पोस्टिंग विशेष परिस्थितियों को छोड़कर, उनके गृह क्षेत्र में नहीं की जाती है। किसी भी परिस्थिति में वैसे जज जिनके नजदीकी उसी उच्च न्यायालय में प्रेक्टिस करते है, उनकी उसी उच्च न्यायालय में पोस्टिंग न हो तभी इस अंकल जज जैसे अभिशाप से मुक्ति पाई जा सकती है।
सिफारिश क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका में सुधारों के लिए सुझाव मांगे हैं। जिसके तहत गुजरात बार काउंसिल ने सुप्रीम कोर्ट को छह सिफारिशें भेजी हैं जिनमें अंकल जजों की नियुक्ति का विरोध भी शामिल है। गुजरात बार काउंसिल से जुड़े वकील दिपेन दवे कहते हैं, सुप्रीम कोर्ट के जज और कानून मंत्री न्यायपालिका में भ्रष्टाचार का मुद्दा बार-बार उठाते रहे हैं। न्यायपालिका में आम आदमी का भरोसा वापस कायम करने के लिए सुधार बहुत जरूरी हैं। हमने जो सिफारिशें भेजी हैं, उनमें अंकल जजों को हटाना और अदालत की समूची कार्यवाही को रिकॉर्ड करना भी शामिल है। हालांकि ये पहला मौका नहीं जब किसी राज्य की बार काउंसिल ने अंकल जजों का मुद्दा उठाया है। इससे पहले राजस्थान और इलाहाबाद बार काउंसिल भी ये कहते हुए इस मुद्दे को उठा चुकी हैं कि उनकी अदालतों में ऐसे दर्जन भर अंकल जज मौजूद हैं।
-दिल्ली से रेणु आगाल