पीथमपुर में ऑटो टेस्टिंग ट्रैक का सपना पड़ा 4500 करोड़ का
02-Dec-2015 08:13 AM 1235638

कहा जाता है कि कभी-कभी सपना देखना भी महंगा हो जाता है, लेकिन मप्र का उद्योग विभाग जो सपना देखता है वह अक्सर घाटे का सौदा साबित होता है। ऐसा ही एक सपना विभाग के अफसरों ने करीब 10 साल पहले देखा था और  पीथमपुर में ऑटो टेस्टिंग ट्रैक बनाने का खाका बुना था। लेकिन आज 10 साल बाद पीथमपुर में प्रस्तावित दुनिया के दूसरे सबसे बड़े ऑटो टेस्टिंग ट्रैक ने शिवराज सरकार को परेशानी में ला खड़ा किया है। एक तो यह प्रोजेक्ट निर्धारित समयसीमा से पांच साल पीछे चल रहा है। लागत बढ़ती जा रही है। जिससे प्रोजेक्ट सफेद हाथी साबित हो रहा है। वहीं, अब किसानों के मुआवजे के मुद्दे ने राज्य सरकार को उलझा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि 11 गांवों के 743 किसानों को आठ गुना मुआवजा चुकाए। इस प्रोजेक्ट के लिए 100 रुपए सालाना लीज पर जमीन देने वाली राज्य सरकार के सामने संकट यह है कि मुआवजा बांटने के लिए 4,500 करोड़ रुपए कहां से लाए। अब राज्य सरकार चाहती है कि टेस्टिंग ट्रैक की जमीन में से कुछ हिस्सा वापस मिल जाए तो उसे जापानी संस्था को देकर मुआवजे के लिए पैसा जुटाया जाए। इसके लिए फाइलों ने दौड़ शुरू कर दी है।
नेशनल ऑटोमोटिव टेस्टिंग एंड आरएंडडी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट (नैट्रिप) के तहत देशभर में छह प्रोजेक्ट्स तय हुए थे। इनमें पीथमपुर में विश्वस्तरीय ऑटो टेस्टिंग ट्रैक बनाया जाना शामिल है। इसके अलावा इंदौर के अलावा, चेन्नई, मानेसर, सिलचर, अरई, रायबरेली और अहमदनगर को टेस्टिंग सुविधाएं विकसित करने की योजना बनी थी। इसमें पीथमपुर में नैट्रेक्स प्लान किया गया था। पीथमपुर को एशिया के डेट्राइट के तौर पर पहचान देने की कोशिश हुई थी। फोर्स मोटर्स और आयशर जैसी ऑटोमोबाइल और ऑटो कम्पोनेंट मैन्यूफेक्चरिंग इंडस्ट्री भी लगी थी। लेकिन वक्त के साथ चमक फीकी पडऩे लगी। उम्मीद है कि ऑटोमोबाइल टेस्टिंग ट्रैक से पीथमपुर फिर चमकने लगेगा। दस साल से कानूनी लड़ाइयों में उलझे जमीन अधिग्रहण के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी राज्य सरकार के खिलाफ फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने 11 गांवों के 743 किसानों को आठ गुना मुआवजा देने के आदेश दिए हैं। यानी राज्य सरकार को चार महीने के अंदर 4,500 करोड़ रुपए बांटने हैं। 2006 से 2015 तक लगातार 10 साल कानूनी लड़ाई लडऩे के बाद किसानों को यह राहत मिली है। किसानों के वकील जेएन वर्मा के मुताबिक जुलाई 2006 में ऑटो ट्रेस्टिंग ट्रैक के लिए 1405 हैक्टेयर जमीन और जून 2007 में अकोलिया में सेज के लिए 58 किसानों की 59.41 हैक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया गया था। इस तरह कुल 1149.46 हैक्टेयर जमीन का अधिग्रहण हुआ था। प्रदेश शासन ने ग्राम खंडवा के किसानों को प्रति हैक्टेयर सिंचित भूमि पर 7.84 लाख और असिंचित भूमि पर प्रति हैक्टेयर 4.90 लाख रुपए का अवार्ड पारित किया था। ग्राम माधोपुर में प्रति हैक्टेयर सिंचित भूमि पर 3.44 लाख व असिंचित भूमि पर प्रति हैक्टेयर 2.15 लाख रुपए का अवार्ड पारित किया था। इससे गांव के 120 से ज्यादा किसान आक्रोशित हो गए थे। मामला मुख्यमंत्री तक पहुंचा तो किसानों को विशेष पैकेज दिया गया, जो खंडवा के किसानों को मिले मुआवजे के बराबर था। ग्राम आंसूखेड़ी, कल्याणसीखेड़ी, पिपलिया, सुहागपुरा, उदली, गोदगांव, सागौर, अकोलिया के किसानों को भी पैकेज मिला लेकिन राशि काफी कम थी। इससे किसान संतुष्ट नहीं थे। किसानों ने मप्र शासन, कलेक्टर व भू-अर्जन अधिकारी धार व महाप्रबंधक जिला व्यापार व उद्योग केंद्र पीथमपुर जिला धार के विरुद्ध केस लगाया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार सिंचित भूमि के लिए प्रति हैक्टेयर 60 लाख व असिंचित भूमि पर 45 लाख रु. का मुआवजा व अन्य लाभ निर्धारित किए गए हैं। एडवोकेट सुनील वर्मा के अनुसार सिंचित भूमि पर प्रति हैक्टेयर कुल राशि 1.68 करोड़ 74 हजार 558 रुपए व असिंचित भूमि पर प्रति हैक्टेयर 1 करोड़ 22 लाख 12 हजार 646 रुपए होती है जो किसानों को मिलेगी। कोर्ट ने राज्य सरकार को चार माह में मुआवजा राशि देने को कहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जून में केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री अनंत गीते को पत्र लिखा था। उनसे अनुरोध किया था कि नैट्रेक्स प्रोजेक्ट के लिए राज्य सरकार ने जो 1,669 हैक्टेयर या 4,143 एकड़ जमीन दी है, उसमें से अनुपयोगी 1,125 एकड़ जमीन राज्य सरकार को लौटा दी जाए। दरअसल, केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय ने नैट्रेक्स प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहित जमीन के बढ़े हुए मुआवजे की भरपाई का मामला देखने के लिए एक कमेटी बनाई थी। इसने ही सिफारिश की थी कि 1,125 एकड़ जमीन अनुपयोगी है। इसे केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी के बाद राज्य सरकार को लौटाया जा सकता है। नैट्रेक्स के अधिकारियों के मुताबिक राज्य सरकार को अब सिर्फ जापान से ही उम्मीद की किरण नजर आई है। राज्य सरकार को लगता है कि बढ़े हुए मुआवजे की भरपाई वापस मिलने वाली जमीन पर औद्योगिक क्षेत्र विकसित कर की जा सकती है। हालांकि, यह इतना आसान भी नहीं था।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अक्टूबर के शुरुआती हफ्तों में अपनी जापान यात्रा में वहां के अधिकारियों को खूब मनाने की कोशिश की। अब राज्य सरकार का दावा है कि जापान सरकार ने पीथमपुर में निवेश की अनुमति दे दी है। इसके पहले भारत के 11 औद्योगिक क्षेत्रों को जापान की कंपनियां चिह्नित कर चुकी है। पीथमपुर को 12वें औद्योगिक क्षेत्र के रूप में शामिल किया गया है। हालांकि, राज्य सरकार के अनुबंध के दावे के अगले ही दिन खबर आई कि औपचारिक तौर पर अभी कुछ नहीं है। दरअसल, जापानी निवेश को लेकर राज्य के पास केंद्र का संदेश काफी पहले आया था। लेकिन समय पर जवाब देने के बाद भी मध्यप्रदेश को लिस्ट में शामिल नहीं किया गया था। अधिकारियों का कहना है कि क्लेरिकल मिस्टेक की वजह से ऐसा हुआ होगा। मध्यप्रदेश ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट फेसिलिटेशन कॉर्पोरेशन के अधिकारियों ने भी कहा था कि हम राज्य का नाम जुड़वाने की कोशिश में है। पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष गौतम कोठारी के मुताबिक जापान एक्स्टरनल ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (जेट्रो) की सहमति जरूरी है। लेकिन जेट्रो के प्रतिनिधि पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र आए थे, उन्होंने बहुत ज्यादा रुचि दिखाई नहीं थी। मध्यप्रदेश सरकार के एक सरकारी नुमाइंदे ने इस बात की पुष्टि की है कि राज्य को ऑटोमोबाइल टेस्टिंग ट्रैक की बची हुई जमीन वापस लेने की सैद्धांतिक मंजूरी मिल गई है। जापान से कितना निवेश आएगा, यह
अभी साफ नहीं है। इस बार पर निर्भर करेगा कि केंद्रीय कैबिनेट नए टाउनशिप के लिए जमीन देता है या नहीं।
50 करोड़ की लागत से बन रहा लैब
ऑटो कंपनियों को अब अपनी कारें और अन्य चार पहिया वाहन टेस्टिंग के लिए विदेश नहीं भेजना पड़ेंगे। इनकी टेस्टिंग पीथमपुर में ही हो जाएगी। यहां ऑटो टेस्टिंग के लिए बन रहे ट्रैक्स में 50 करोड़ रु. की लागत से व्हीकल डायनॉमिक्स लैब तैयार हो गई है। इस लैब में सस्पेंशन, शॉक ऑब्जर्वर, इंजिन और स्टीयरिंग टेस्टिंग की मशीनें लगाई गई हैं। सस्पेंशन पैरामीटर मशीन तो पहली बार देश में लगी है। नैट्रिप प्रोजेक्ट के नेशनल डायरेक्टर और सीईओ संजय बंदोपाध्याय ने टेस्टिंग ट्रैक्स नवंबर तक पूरा करने के निर्देश दिए हैं, लेकिन अभी यह प्रोजेक्ट पूरा होता नहीं दिख रहा है। पीथमपुर के नैट्रैक्स में ऑटो कंपनियों को जो सुविधाएं मिलेंगी, वह अभी एशिया में केवल जापान और चीन में हैं। देश का पूरा ऑटो क्लस्टर इस ट्रैक्स के आसपास विकसित हो जाएगा। अभी देश की ऑटो कंपनियों को एंटीलॉग ब्रेकिंग सिस्टम से लेकर वाहनों के माइलेज, स्पीड कैपिसिटी, हाई स्पीड टेस्टिंग आदि के लिए विदेश जाना पड़ता है। पीथमपुर में गीली मिट्टी, पथरीले व अच्छे रास्ते और अन्य ऐसे कई तरह के ट्रैक्स रहेंगे, जहां सामान्य से लेकर फरारी तक की टेस्टिंग की जाएगी।
अभी तक 20 फीसदी ही काम हो पाया है
दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ऑटो टेस्टिंग ट्रैक, नेशनल ऑटोमोटिव टेस्टिंग ट्रैक्स (नेट्रैक्स, इंदौर) छह साल लेट है। मध्यप्रदेश सरकार ने इसके लिए जमीन 2007 में ही दे दी थी। पांच साल में ट्रैक बन जाना था। लेकिन अब तक सिर्फ 20 प्रतिशत काम ही हुआ है। नैट्रिप के प्रोजेक्ट के तहत एक हाई-स्पीड ट्रैक और 13 छोटे और मध्यम दर्जे के ऑटो टेस्टिंग ट्रैक्स के साथ ही कुछ ऑटो टेस्टिंग लैब्स भी प्रस्तावित है। यहां सब तरह की टेस्टिंग गतिविधियां विकसित की जानी हैं। इसका मुख्य केंद्र होगा ओवल के आकार का 13.6 किलोमीटर का 4 लेन-हाई स्पीड ट्रैक। यह ट्रैक मोड़ पर भी 250 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार देने के लिए बनेगा। नैट्रिप के अधिकारियों का कहना है कि 2016 तक यह प्रोजेक्ट पूरा हो जाएगा। नैट्रिप प्रोजेक्ट की जनवरी में हुई बैठक के मुताबिक 2005 में 1,718 करोड़ रुपए की छह परियोजनाओं में से पीथमपुर के प्रोजेक्ट की लागत 621.28 करोड़ रुपए थी। इसमें मध्यप्रदेश सरकार की जमीन की लागत शामिल नहीं थी। क्योंकि राज्य सरकार ने 100 रुपए सालाना आधार पर लीज पर यह जमीन दी है। अब सातों प्रोजेक्ट्स की लागत बढ़कर 3,827.30 करोड़ रुपए को पार कर चुकी है। नैट्रेक्स की गति अब तक बेहद धीमी रही है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक करीब 90 प्रतिशत जमीन का इस्तेमाल ही नहीं हुआ है। प्रशासनिक भवन, लैब्स और टेस्टिंग मशीनों, ट्रैक्स और अन्य सुविधाओं को विकसित करने में कम से कम दो से तीन साल लगेंगे।
-भोपाल से राजेश बोरकर

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