नाफरमान अफसरों पर कसने लगी नकेल
02-Dec-2015 07:16 AM 1234847

अक्सर शांत चित्त दिखने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछले कुछ समय से गुस्से में हैं। अपने कार्यकर्ताओं, अफसरों, समर्थकों और कर्मचारियों हर वर्ग पर उनकी नाराजगी का असर साफ दिखाई दे रहा है। पहले तो 0 टारलेंस की बात करते थे, इन दिनों 0 टारलेंस पर काम करते दिखाई दे रहे हैं। यही कारण है कि पिछले 2 माह में मुख्यमंत्री आधा दर्जन नाफरमान आईएएस अफसरों पर गाज गिरा चुके हैं। मुख्यमंत्री का यह रूप देखकर अब अफसरों में भी अपने कार्य के प्रति सतर्ककता और तत्परता दिखने लगी है। मतलब साफ है कि सीएम शिवराज सिंह को समझ आ गया है कि बातों के बताशों से चौथी दिवाली नहीं मनाई जा सकेगी। जनता जो चाहती है वो करके दिखाना होगा। इसलिए जनता और विकास की राह में रोड़ा बनने वाले अफसरों पर गाज गिरनी शुरू कर दी है।
नौकरशाही के इशारे पर चलने के आरोपों से घिरे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अब कड़े तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं और यह संदेश दे दिया है कि अब वे किसी भी नाफरमान अफसर को छोड़ेंगे नहीं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने सख्त तेवर दिखाते हुए अपने मातहत अधिकारी से रिश्वत की मांग करने वाले आदिवासी विकास विभाग आयुक्त जेएन मालपानी को तत्काल प्रभाव से पदमुक्त करते हुए वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राधेश्याम जुलानिया को जांच सौंप दी है। कमीशनखोरी के खेल में बदहजमी की बात करने वाले मालपानी का मामला सोशल मीडिया में उजागर होते ही आज ताबड़तोड़ कार्रवाई की गई है। उल्लेखनीय है कि मालपानी के भ्रष्टाचार के किस्से हमेशा सुर्खियों में रहे हैं। राजभवन में रहते हुए इनका आरजीपीवी के कुलपति पीयूष त्रिवेदी से नजदीकियां किसी से छुपी नहीं हैं। इन दोनों ने मिलकर विश्वविद्यालय में कई गुल खिलाए। बताया तो यहां तक जाता है कि व्यापमं घोटाले के मास्टर माइंड पकंज त्रिवेदी को व्यापमं में लाने में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लेकिन इनकी करतूतों पर अब गाज गिरी है।
इसी तरह राहत के मामले में मनमाने तरीके से फरमानबाजी करने वाले राजगढ़ के कलेक्टर आनंद शर्मा को भी अपनी कुर्सी से विदा होना पड़ा है।  कलेक्टर आनंद शर्मा ने किसानो को मुआवजा देने के लिए खुद अपने नियम बना दिए थे। ये नियम सरकार की नीति के खिलाफ थे। शर्मा ने सूखा पीडि़त किसानों को राहत देने के लिए 19 शर्तें लगाईं थीं। इनसे अधिकांश किसान मुआवजे की सूची से बाहर हो गए थे। यह जानकारी मिलने के बाद शिवराज ने सबसे पहले कलेक्टर के आदेश को रद्द कराया था। फिर आनंद शर्मा को राजगढ़ से हटाकर मंत्रालय में डिप्टी सेक्रेटरी बना दिया गया।  मुख्यमंत्री ने पिछले कुछ दिनों में ऐसे कई बेलगाम हो रहे कई कलेक्टरों को हटाया। इनमें  भिंड के कलेक्टर मधुकर आग्नेय, मुरैना के कलेक्टर शिल्पा गुप्ता, दतिया कलेक्टर पीसी जांगड़े, नीमच के कलेक्टर नंदकुमारम, अशोक नगर के कलेक्टर राजा भैया प्रजापति और ग्वालियर नगर निगम के आयुक्त अजय गुप्ता शामिल है।  इन सभी पर आम जनता एवं किसानों के हितों की अनदेखी करने एवं अनुशासनहीनता का मामला सामने आने पर कार्रवाई की गई है। कुछ जनप्रतिनिधियों को भी इन अधिकारियों की कार्यशैली पर ऐतराज बना हुआ था। उल्लेखनीय है कि बीते सालों में प्रदेश की भाजपा सरकार को जितना विपक्षी पार्टियों ने परेशान नहीं कर पानी उससे ज्यादा नौकरशाही ने नाक में दम कर दिया। इनमें पिछले दो-तीन साल तो सरकार के लिए बेहद परेशानी भरे रहे, जब सड़क से लेकर विधानसभा तक विपक्ष ने अफसरों की कारगुजारियों को सरकार के खिलाफ हथियार बनाया और सरकार को बार-बार सफाई देनी पड़ी। दरअसल आयकर विभाग, लोकायुक्त और आर्थिक अपराध शाखा ने जहां-जहां भी छापे मारे, वहां-वहां अफसरान से करोड़ों रुपए बरामद हुए।
शिव ने दिखाए तीखे तेवर
आमतौर पर शांत रहने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस समय आग बबूला हो रहे हैं। उन्होंने कलेक्टर-एसपी सहित अन्य वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों पर जमकर भड़ास निकाली है। झाबुआ, देवास चुनाव के बाद शिवराज को पहली बार समझ में आया कि सरकारी अधिकारियों के कारण उसे इन चुनाव में पराजय मिली। परंतु शिवराज को यह नहीं पता कि यह ब्यूरोकेसी इतनी ढ़ीट हो चुकी हैं कि उसे अब इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता। अफसरों के बारे में खुद वरिष्ठ मंत्री तक इस बात का रोना रोते हैं। भाजपा के अनेक विधायक निज व सार्वजनिक रूप से अपना दुख बयान करने से बाज नहीं आते। पार्टी फोरम पर भी यह मुद्दा जब-तब उठता रहता है। चौहान बेहद संवेदनशील इन्सान माने जाते हैं। मानवीय मूल्य उनके लिए सर्वोपरि रहे हैं। हर वक्त मुस्कराते रहना उनकी फितरत है। एक के बाद एक चुनाव जीतकर उन्होंने स्वयं को अपराजित योद्धा बना लिया है। उनमें विशेषताएं और भी हैं परन्तु यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि मध्यप्रदेश की जनता पहले जैसा कष्ट भोग रही थी वैसा ही माहौल आज भी है। भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया है। कोई भी सरकारी कार्यालय बिना लेन-देन के कोई काम नहीं कर रहा। जनसुनवाई व लोक कल्याण के प्राय: सभी कार्यक्रम फेल हो गए हैं।  संभवत: यही वजह होगी  मुख्यमंत्री के आपा खोने की। उनका गुस्सा कितने दिन असर करेगा सवाल यह नहीं है। अब तो यह देखना है कि सरकारी मशीनरी आगे किस तरह बर्ताव करती है। यह भी कि मुख्यमंत्री को अपने ऊपर लगी ढुलमुल छाप भी हटानी पड़ेगी। और भी बहुत कुछ किया जाना है और यह सब तब ही होगा जब मुख्यमंत्री को उनके काबीना साथी सहयोग करेंगे। कुछ को छोड़कर ज्यादातर मंत्री अलमस्त हो गए हैं। जनसामान्य की बात तो दूर पार्टी जनों तक को महत्व नहीं दिया जा रहा है।
-भोपाल से अजयधीर

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