02-Dec-2015 07:01 AM
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मप्र की नौकरशाही में भ्रष्टाचार की जड़े जितनी गहरी हैं, उतनी ही उथली है जांच एजेंसियां और उनकी प्रक्रिया। जिनमें उलझने के बाद कई अधिकारी आज तक अपना केस सुलझा नहीं पाए हैं, वहीं कई ऐसे हैं जो बड़े मामले में फंसने के बाद

भी उबर गए हैं। यानी जांच एजेंसियों और बड़े पदों पर बैठे अधिकारियों द्वारा अफसरों के रसूख को देख कर कार्रवाई की जाती है। यह हम नहीं कह रहे बल्कि जांच एजेंसियों के राडार में आए अफसरों का कहना है।
वैसे तो आपने जांच की आंच के शिकार कई अफसरों के मुंह से गिला-शिकवे सुने होंगे, लेकिन 2001 बैच के एक प्रमोटी आईएएस अधिकारी ने अपनी व्यथा लिखित में इस कदर दी जो हमारी प्रशासनिक व्यवस्था की पोल खोल रहा है। उक्त अधिकारी जब नगर निगम कटनी में आयुक्त थे तो उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा था। जिसके कारण उन्हें सस्पेंड कर दिया गया था। बाद में वे मामले को लेकर कोर्ट में गए और कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। जिसके बाद उन्हें फिर से बहाल कर दिया गया। लेकिन जब वे सस्पेंड थे तो उन पर तरही-तरह के दबाव बनाए जा रहे थे। वर्तमान में मंत्रालय की चौथी मंजिल पर पदस्थ ये साहब अभी भी आहत हैं।
उन्होंने अपने पत्र में इस बात का जिक्र किया है कि उन्हें किस तरह अपने ही विभाग से संबंधित एक विभाग द्वारा निरंतर प्रताडि़त किया जाता रहा है। आईएएस रमेश थेटे के बाद ये साहब दूसरे अधिकारी हैं जो इस तरह खुलकर सरकार और प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। यही नहीं इन्हें पत्र में मुख्यमंत्री के एक करीबी व्यवसायी का भी नाम लिख डाला है जिनकी निशानदेही पर लोकायुक्त द्वारा इन्हें प्रताडि़त किया गया। यही नहीं इन्होंने तो पत्र में यह भी बताया है कि उक्त व्यवसायी और लोकायुक्त के पुत्र के बीच घनिष्ठता है इसलिए इसका खामियाजा मुझे भुगतना पड़ा है।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ऐसी क्या वजह है कि सरकार के लोग ही सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करने लगे हैं। सरकार के प्रति विश्वास का माहौल निर्मित क्यों नहीं हो पा रहा है। आरोप तो यह भी लग रहे हैं कि एक तरफ सरकार कुछ अफसरों के खिलाफ कार्यवाही कर रही है वहीं कइयों पर मेहरबानी दिखा रही है। ऐसे में अधिकारियों के आपस में तालमेल और विश्वसनीय की कमी महसूस होने लगी है। सरकार घूस लेते रंगे हाथ पकड़े जाने वालों के प्रति सरकार का रवैया कैसा है, ये अभियोजन के मामलों से समझा जा सकता है। लोकायुक्त कार्यालय दो अधिकारी और एक बाबू के खिलाफ चालान पेश करने अनुमति मांग रहा है पर इजाजत नहीं दी जा रही है। लोकायुक्त चालू वित्तीय वर्ष में 257 रिश्वतखोरों को दबोच चुका है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सरकार दोषी अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ एक समान रूप से कार्यवाही क्यों नहीं करती है। सरकार के असमान रवैए के कारण अधिकारियों-कर्मचारियों में अविश्वास पनप रहा है। उल्लेखनीय है कि लोकायुक्त संगठन ने मुख्य सचिव को 400 भ्रष्ट अफसरों की सूची भेजते हुए कहा है कि कार्रवाई न होने से सरकार की छवि खराब हो रही है। तत्काल कार्रवाई के बजाय उन अधिकारियों-कर्मचारियों को निलंबित नहीं किया गया, जिनके खिलाफ दो साल पहले चालान पेश किया जा चुका है।
इन्होंने सिखा दिया नौकरी कैसे की जाती है
शासन-प्रशासन में किस तरह का भेदभाव किया जाता है इसका एक और मामला सामने आया है। एक इंस्पेक्टर जो विभागीय अधिकारियों की उपेक्षा के कारण बिना प्रमोशन के ही रिटायर हो गया उसने इस मामले को लेकर हाई कोर्ट में शिकायत कर दी। कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए गृह विभाग को निर्देष दिया कि वह उक्त इंस्पेक्टर को प्रमोशन किया जाए और उसके वेतनमान का डिफरेंस दिया जाए। लेकिन अधिकारियों ने नियमों का हवाला देकर उसका प्रमोशन नहीं किया। इससे नाराज इस्पेक्टर ने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी। आनन-फानन में गृह विभाग ने उक्त इंस्पेक्टर को प्रमोशन दे दिया, लेकिन वेतनमान का डिफरेंस नहीं दिया। इस मामले में कोर्ट ने जब संज्ञान लिया तो इंस्पेक्टर को 50 हजार रुपए दे दिए गए। अब विभाग का यह कदम अब उसके गले की फांस बन गया है। क्योंकि उक्त इंस्पेक्टर के कई बैचमेट इस केटेगिरी में आ गए हैं। उधर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की अवमानना होने के कारण मुख्य सचिव को तलब किया गया है।
-भोपाल से कुमार राजेन्द्र