17-Nov-2015 09:40 AM
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देश की बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ ही रोजगार के अवसर भी तेजी से बढ़े हैं। लेकिन विश्वविद्यालय जो ग्रेजुएट्स तैयार कर रहे हैं वो इंडस्ट्री की जरूरतों के अनुरूप नहीं हैं। हिन्दीभाषी

राज्यों से हर साल लाखों ग्रेजुएट्स निकल रहे हैं, लेकिन इनमें से कुछ हजार ही टेक्निकल ग्रेजुएट्स होते हैं। एनसीईआरटी के वैज्ञानिक अवनीश पांडेय कहते हैं कि कंपनियों को स्किल्ड वर्कफोर्स चाहिए, जो अभी विश्वविद्यालय नहीं दे रहे। भारत की 400 कंपनियों पर किए गए एक रिक्रूटमेंट सर्वे का हवाला देते हुए पांडेय कहते हैं कि 97 फीसदी कंपनियां मानती हैं कि अर्थव्यवस्था बढऩे के साथ रोजगार के अवसरों में भी इजाफा हुआ है, मगर उस अनुपात में अच्छे प्रोफेशनल्स नहीं मिल पा रहे हैं। सर्वे के मुताबिक 60 फीसदी ग्रेजुएट्स किसी भी समस्या को सुलझाने में सफल नहीं हो पाते, उन्हें अपने क्षेत्र की पूरी जानकारी भी नहीं होती।
कैसे तैयार होगा स्किल्ड वर्कफोर्र्स?
पांडेय कहते हैं कि विश्वविद्यालयों को परंपरागत ढर्रे को छोड़कर प्रैक्टिकल नॉलेज पर जोर देना होगा। साथ ही इंटर्नशिप और लाइव ट्रेनिंग पर भी ध्यान देना होगा। वे कहते हैं, तकनीकी बदलावों को अपनाने के साथ ही छात्रों को डिबेट और ग्रुप डिस्कशन का प्रशिक्षण देना चाहिए ताकि वे खुद को सही तरीके से पेश कर सकें। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज (आईएमएस) के प्लेसमेंट अधिकारी डॉ. अवनीश व्यास कहते हैं कि हकीकत में मेरिट का अच्छी नौकरी से ज्यादा लेना-देना नहीं हैं। वे कहते हैं, सही प्लेसमेंट के लिए स्टूडेंट को मार्केट नॉलेज, संबंधित क्षेत्र की पूरी जानकारी, अर्थव्यवस्था की जानकारी, टीम भावना और मैनेजमेंट स्किल्स होनी चाहिए। व्यास कहते हैं, कई बार देखने में आता है कि मेरिट वाले स्टूडेंट ज्यादा वक्त किताबों के साथ बिताते हैं जबकि एवरेज स्टूडेंट स्टडी के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों पर भी ध्यान देते हैं, इन खूबियों के कारण उन्हें अधिक नंबर लाने वाले छात्र के मुकाबले जल्दी प्लेसमेंट मिल जाता है। रिक्रूटमेंट पर पीएचडी कर चुके डॉ. व्यास कहते हैं कि प्लेसमेंट के लिए कंपनियां न आएं तो भी उनके संपर्क में रहना चाहिए। वे बहुराष्ट्रीय कंपनी डिलॉइट की मिसाल देते हुए कहते हैं कि यह कंपनी सेंट्रल इंडिया के अंग्रेज़ी जानने वाले विद्यार्थियों को ज्यादा अहमियत देती है क्योंकि उसका मानना है कि यहां के प्रोफेशनल्स का उच्चारण अच्छा होता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ कम्युनिकेशन में परेशानी नहीं होती। विशेषज्ञों के नजरिए के आधार पर कहा जा सकता है कि अच्छी डिग्री के साथ ही विषय की जानकारी, संवाद कौशल, बाजार की समझ, सामान्य ज्ञान और प्रेजेंटेशन स्किल भी होना चाहिए, सिर्फ ग्रेजुएशन कर लेने से बात नहीं बनने वाली।
अपने करियर को ले जाएं ब्रांडिंगÓ की ओर
वर्तमान समय में भारतीय ग्राहकों के पास हर प्रोडक्ट के लिए कई विकल्प मौजूद हैं, क्योंकि हर कंपनी अपने प्रोडक्ट को प्रमोट करने के लिए ग्राहकों को आकर्षित करने की कोशिश करती है। इस पूरी प्रक्रिया में ब्रांडिंग का बड़ा रोल होता है। ब्रांड मैनेजमेंट में आप अपने करियर को नई ऊंचाईयों पर ले जा सकते हैं।
कस्टमर के माइंड में एक प्रोडक्ट की परमानेंट जगह बनाने के लिए ब्रांडिंग का बड़ा हाथ होता है। हर बड़ी कंपनी अपने प्रोडक्ट और सर्विसेस को मार्केट में प्रमोट करने के लिए ब्रांड मैनेजर्स को हायर करती है। ब्रांडिंग प्रॉसेस में नए प्रोडक्ट के लॉन्च होने से उसे कंज्यूमर की लाइफ का इंपॉर्टेंट पार्ट बनाने तक की स्ट्रैटेजी इन्वॉल्व्ड होती है। हर कंपनी अपने प्रोडक्ट और सर्विसेस की ब्रांडिंग के लिए ऐसे इंडिविजुअल्स को हायर करना चाहती है, जिनके पास प्रमोशन के डिफरेंट आइडियाज और प्लांस हो। अगर आप भी इस तरह के करियर ऑप्शन की तलाश में है तो ब्रांड मैनेजमेंट आपके लिए आइडियल करियर बन सकता है।
ब्रांड मैनेजमेंट करियर की शुरूआत कैसे की जा सकती है?
ब्रांड मैनेजमेंट में करियर बिल्ड करने के लिए कैंडिडेट्स ग्रेजुएशन में ब्रांड मैनेजमेंट से एमबीए करके स्पेशलाइजेशन हासिल कर सकते हैं। इसके अलावा एमबीए-मार्केटिंग से स्पेशलाइजेशन करके इस करियर को स्टार्ट किया जा सकता है।
ब्रांड मैनेजर बनने के लिए किस तरह के पर्सनल एट्रीब्यूट्स रिक्वॉयर्ड होते हैं?
ब्रांड मैनेजर बनने के लिए एक इंडिविजुअल को
- मोटिवेटेड और बड़ी रिस्पॉन्सिबिलिटी लेने के लिए रेडी रहना जरूरी होता है।
- अच्छी कम्यूनिकेशन स्किल्स होनी चाहिए।
- सुपरविजन, क्रिएटिव, प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल्स, प्लांस प्रिपेयर करने में भी आगे होने चाहिए।
- कैंडिडेट्स किस तरह के आइडियाज के साथ प्रोडक्ट की ब्रांडिंग कितने क्रिएटिव वे में करते हैं और उसका कैसा रिस्पांस मिलता है, यह भी बहुत मैटर करता।
ब्रांड मैनेजमेंट में करियर प्रास्पेक्ट्स कैसे हैं?
ब्रांड मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद फ्रेशर्स को एंट्री लेवल पर असिस्टेंट ब्रांड मैनेजर की जॉब मिल सकती है। अपने अच्छे आइडियाज, परफॉर्मेंस और इनोवेशन से कैंडिडेट्स मिड लेवल यानी ब्रांड मैनेजर बन सकते हैं।
एक ब्रांड मैनेजर को किस एरिया में जॉब मिल सकती है?
टैलेंटेड और स्किल्ड ब्रांड मैनेजर्स की डिमांड फार्मास्यूटिकल कंपनी, मोबाइल कंपनीज, इंश्योरेंस कंपनीज, हेल्थकेयर, लीडिंग मैन्यूफैक्चरर्स, मीडिया हाउसेस, ऑटोमोबाइल कंपनीज वगैरह में काफी है। बढ़ते कॉम्पिटीशन को देखते हुए हर कंपनी अपने प्रोडक्ट की ब्रांडिंग अट्रैक्टिव तरीके से करनी चाहती है।
इस इंडस्ट्री में फ्रेशर्स को क्या पैकेज ऑफर किया जाता है?
इस इंडस्ट्री में फ्रेशर्स की स्टार्टिंग सैलेरी पैकेज तीन से साढ़े तीन लाख पर ईयर की हो सकती है। सैलेरी पैकेज इस बात पर भी डिपेंड करता है कि आप कौन सी ऑर्गनाइजेशन में और किस सिटी में काम कर रहे हैं।
-राजेश बोरकर