17-Nov-2015 09:16 AM
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राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे एक तरफ प्रदेश में औद्योगिक निवेष के लिए देश के उद्योगपतियों को आकर्षित करने में लगी हुई हैं। वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में उद्योगों के पक्ष में माहौल नहीं होने के कारण कई उद्योगपति और उद्योग यहां से

पलायन कर रहे हैं। इसमें सरकार को बड़े घाटे का सामना करना पड़ रहा है। इसमें से महारानी की सबसे प्रिय जयपुर मेट्रो को भी झटका लगा है। जयपुर मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के लिए सिंगापुर से निवेश आकॢषत करने के लिए पिछले एक वर्ष से जारी राजस्थान सरकार की कोशिशों का कोई नतीजा नहीं निकला है। सिंगापुर की सरकार जयपुर मेट्रो प्रोजेक्ट को एक घाटे का सौदा मानती है और उसका इसके संचालन में या निर्माण कार्य में कोई रुचि नहीं है।
सिंगापुर सरकार के उच्चाधिकारियों का कहना है कि दिल्ली, मुम्बई और बैंगलोर के मुकाबले जयपुर एक छोटा शहर है। अधिकारियों के अनुसार राजनीतिक कारणों से भले ही जयपुर मेट्रो रेल शुरू कर दी गई है, लेकिन यह आर्थिक रूप से उचित नहीं है क्योंकि यहां यात्रीभार बेहद कम है। बताया जाता है कि प्रदेश सरकार ने सिंगापुर के अधिकारियों को बताया था कि जयपुर मेट्रो रेल में निवेश करने पर उन्हें बड़ा फायदा होगा। जयपुर मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) में प्रतिदिन 2 लाख यात्रियों के मेट्रो ट्रेन में सफर करने की संभावना बताई गई थी। लेकिन वास्तविक स्थिति इसके बेहद उलट है। जयपुर मेट्रो का यात्रीभार रोजाना मात्र 30-36 हजार ही है। ऐसे में इसके संचालन की लागत खर्च की तुलना में काफी ज्यादा होती है। पिछले वर्ष मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व नगरीय विकास विभाग के उच्चाधिकारी सिंगापुर गए थे। वहां अतिरिक्त मुख्य सचिव (नगरीय विकास विभाग) अशोक ने जयपुर मेट्रो का प्रजंटेशन सिंगापुर अधिकारियों के समक्ष दिया था। उसके बाद सिंगापुर के अधिकारियों की एक टीम जयपुर आकर मेट्रो प्रोजेक्ट का दौरा करके गई थी। राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ एक-दो बार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग भी की गई। इसके बावजूद सिंगापुर के अधिकारी आकर्षित नहीं हुए।
विभागीय अधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार जयपुर मेट्रो ने सिंगापुर सरकार को ऑफर दिया था कि वे जयपुर मेट्रो के दूसरे चरण (सीतापुरा से अम्बाबाड़ी तक) का निर्माण करे। निर्माण के बाद वर्तमान में संचालित प्रथम चरण (मानसरोवर से चांदपोल) तक का संचालन भी करे। वर्तमान में प्रथम चरण का संचालन जयपुर मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (जेएमआरसी) खुद ही करती है। लेकिन बताया जाता है कि सिंगापुर के अधिकारियों ने यहां से जो जानकारी जुटाई है उससे वे संतुष्ट नहीं है। सिंगापुर विदेश विभाग के प्रथम सचिव केस्टर टे का कहना है कि जयपुर मेट्रो प्रोजेक्ट हमारे लिए फायदे का सौदा नहीं है। हम इसमें निवेश के इच्छुक नहीं हैं। वह कहते हैं कि हमें प्रस्ताव मिला था लेकिन जहां घाटा हो वहां हम निवेश क्यों करें। उधर जयपुर मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के चेयरमैन एनसी गोयल कहते हैं कि हां, सिंगापुर वालों की इच्छा जयपुर मेट्रो में नहीं है। इसका अनुमान हमें भी हो गया है, वे अब निवेश नहीं करने वाले। अब हमारा प्रयास है कि अमरीका, कोरिया और मलेशिया से निवेश आकर्षित किया जाए। इस संबंध में बातचीत चल रही है। बताते हैं कि सिंगापुर द्वारा जयपुर मेट्रो में निवेश नहीं किए जाने के बाद से प्रदेश सरकार को अभी और घाटे का सामना करना पड़ेगा। यह प्रदेश सरकार द्वारा राज्य के टिकाऊ और समावेशी विकास के लिए राज्य में निवेश करने के लिए उठाए गए कदम को एक बड़ा झटका है। उधर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का कहना है कि हम औद्योगिक निवेश चाहते हैं, जो राज्य के आर्थिक परिदृश्य में आमूलचूल परिवर्तन लाएगा। कारोबार आसान बनाने के लिए केंद्र द्वारा सुझाए गए 89 योजनाओं में से 64 लागू कर दी गई हैं और शेष भी जल्द ही लागू की जाएंगी। भले ही सिंगापुर ने हमारे प्रस्ताव को मंजूर नहीं किया है लेकिन कई और देश इस योजना में निवेश करने के लिए इच्छुक हैं।
फैक्ट फाइल
- 3 जून 2015 को शुरू हुआ जयपुर मेट्रो का व्यावसायिक संचालन
- लगभग 60 हजार यात्री पहले दिन बैठे
- 7 जून तक यह आंकड़ा 1 लाख तक पहुंच गया। हालांकि इसका कारण पहली बार मेट्रो में बैठने की उत्सुकता थी।
- इसके निर्माण पर करीब 2,200 करोड़ रुपए खर्च आया।
- इसका शिलान्यास पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार ने नवम्बर 2010 में किया।
- दूसरा चरण अभी तक शुरू नहीं हो पाया है क्योंकि निर्माण के लिए करीब 10 हजार करोड़ रुपए के निवेश की जरूरत है। इसके लिए अभी तक कोई निवेशकर्ता या सरकारी एजेंसी आगे नहीं आई है।
-जयपुर से आर.के. बिन्नानी