17-Nov-2015 09:04 AM
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देश में विकास और सुशासन का मॉडल बने गुजरात सरकार और वहां की नौकरशाही के बीच टकराव हमेशा जारी रहता है। खासकर भारतीय पुलिस सेवा के अफसर सरकार की आंख में किरकिरी बनकर चुभते रहते हैं। जब नरेंद्र मोदी गुजरात

के मुख्यमंत्री थे तब उनकी कई आईपीएस अफसरों से नहीं पटती थी। जिसका खामियाजा आईपीएस संजीव भट्ट भुगत रहे हैं। अब गुजरात की मुख्यमंत्री जसोदा बेन के निशाने पर बिहार लॉबी के आईपीएस हैं। बताया जाता है कि गुजरात में पाटीदार आंदोलन को जिस तरह दबाया गया उसमें बिहार लॉबी के आईपीएस अफसरों की भूमिका महत्वपूर्ण रही। लेकिन इसका साइड इफेक्ट यह पड़ रहा है कि बिहार आईपीएस लॉबी के अफसरों की कार्यवाही से यह समुदाय अब कांग्रेस के पाले में जाता दिख रहा है। इससे मुख्यमंत्री बिहार मूल के आईपीएस अफसरों से खफा हैं।
बताया तो यहां तक जा रहा है कि इस पूरे घटनाक्रम पर गुजरात के एक आईएएस ने रिपोर्ट तैयार करके सरकार को दी है। जिसमें कहां गया है कि बिहार चुनाव को प्रभावित करने के लिए वहां के नेताओं के इशारे पर बिहार लॉबी के आईपीएस अफसरों ने दमनात्मक तरीके से पाटीदार आरक्षण आंदोलन को दबाया। इससे देशभर में भाजपा के खिलाफ गलत संदेश गया है। उल्लेखनीय है कि गुजरात में आरक्षण की मांग कर रहे पाटीदार आरक्षण आंदोलन समिति की 25 अगस्त को अहमदाबाद महारैली से लेकर 18 अक्टूबर को राजकोट में रोड शो तक आंदोलन को कसने में बिहार मूल की आईपीएस लॉबी ने ही रणनीतिक रूप से काम किया। महारैली के दौरान कानून व्यवस्था संभाल रहे आईपीएस विकास सहाय, राजीव रंजन भगत भी बिहार मूल के हैं।
मालूम हो, पाटीदार भाजपा का सबसे बड़ा वोट बैंक है, लेकिन अहमदाबाद की घटना के बाद से लगातार भाजपा से छिटकता जा रहा है। अहमदाबाद पुलिस आयुक्त शिवानंद झा, राजकोट पुलिस आयुक्त मोहन झा व सूरत पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना भी मूलत: बिहार के हैं। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के खिलाफ राजद्रोह के मुकदमे भी इन्हीं शहरों में दर्ज हैं। उन्हें सबसे अधिक रिमांड पर लेने वाले क्राइम ब्रांच अहमदाबाद के मुखिया (जेसीपी) एके शर्मा भी बिहार से हैं। गत दिनों 12 होमगार्डों को गैराज में बंधक बनाने वाले वरिष्ठ आईपीएस विपुल विजोय तथा सरकार के खिलाफ बगावत करने वाले आईपीएस सतीश वर्मा व राहुल शर्मा भी मूल रूप से बिहार के ही हैं। इन अफसरों ने पिछले कुछ महीनों में गुजरात में जिस तरह कार्य किया है उससे भाजपा और गुजरात सरकार के खिलाफ माहौल बना है।
अब गुजरात के एक आईएएस अधिकारी द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर इस विषय की तहकीकात की जा रही है कि इन अफसरों का बिहार के किन-किन नेताओं से सीधा संपर्क है। हालांकि प्रदेश के नौकरशाही इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है। प्रदेश के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी कहते हैं कि गृह मंत्रालय के निर्देष पर ही पुलिस कोई कार्य करती है। इसलिए सरकार को महज एक रिपोर्ट के आधार पर ही कोई सख्त कदम उठाना ठीक नहीं होगा। उल्लेखनीय है कि उत्तरप्रदेश के बाद गुजरात ऐसा राज्य है जहां सरकार और नौकरशाही के बीच टकराव होते रहते हैं। हालांकि अन्य राज्यों में भी छोटी-मोटी घटनाएं होती रहती हैं, लेकिन गुजरात सरकार ऐसे मौकों पर सख्त कदम उठाने के लिए जानी जाती है। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आवाज उठाने वाले आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट इसका परिणाम भुगत चुके हैं।
मोदी सरकार में बिहारियों का दबदबा
नरेंद्र मोदी सरकार में गुजराती अफसरों के दबदबे की धारणा को काफी बल दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष दोनों के ही गुजरात से होने के चलते इस धारणा को मजबूत करने में विपक्ष कोई कसर नहीं छोड़ रहा। हालांकि, केन्द्र में तैनात आईएएस अधिकारियों की संख्या इसे गलत ठहराती है। कुछ अहम पदों पर गुजराती अफसर भी हैं, लेकिन वास्तव में संख्या के लिहाज से उत्तर प्रदेश, केरल और बिहार काडर के अफसरों का दबदबा सबसे ज्यादा है। पूरे देश के अफसरों की क्षमता और केन्द्र में उसके अनुपात में नियुक्ति प्रतिशत के लिहाज से भी देखे तो केरल, हिमाचल और सिक्किम सबसे ऊपर हैं और गुजरात इस श्रेणी में भी 15वें नंबर पर आता है। प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर अहम पदों पर नौकरशाही में गुजरात काडर के अधिकारियों का दबदबा होने की बाते लगातार चलती रहीं। बिहार चुनाव से पहले वहां के विपक्षी नेताओं ने भी हर जगह गुजराती दबदबे के प्रचार में यह मुद्दा उठाया था। बिहार में तो जुमला ही पेंस किया गया कि राज बिहारी करेगा या गुजराती। इस बात को साबित करने के लिए केन्द्र की नौकरशाही में गुजराती दबदबे की भी बात की गई। ऐसे में केन्द्र सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने विपक्ष के इस प्रचार या धारणा को गलत साबित करने के लिए खुद बोलने के बजाय आंकड़े आगे कर दिए हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट की नियुक्ति संबंधी समिति के अधीन फिलहाल 449 अधिकारी केन्द्र में हैं। इनमें से कुल 16 ही गुजरात से हैं। सबसे ज्यादा 54 अधिकारी उत्तर प्रदेश, 36 केरल, 32 बिहार, 30 असम-मेघालय, 26 तमिलनाडु, 22 मध्य प्रदेश, 21 हिमाचल प्रदेश से हैं।
-माया राठी