6,000 करोड़ का ताबूत बना महेश्वर बांध
17-Nov-2015 09:01 AM 1235513

6 हजार करोड़ की लागत से तैयार यह परियोजना लावारिस पड़ी है। इससे बिजली उत्पादन ठप्प पड़ा है, तो 250 से 300 अधिकारी-कर्मचारियों का भविष्य अंधेरे में है। एस कुमार्स कंपनी की मनमानी परिणाम स्वरूप करोड़ की परियोजना अनुपयोगी साबित हो रही है। मालूम हो कि 21 वर्ष पूर्व महेश्वर विद्युत परियोजना का काम शुरू हुआ था, परियोजना निर्माणकर्ता कंपनी एस कुमार्स के गर्त में चले जाने से बांध से एक दिन भी बिजली पैदा नहीं हो सकी। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय पाक्षिक अक्स ने ं इस मामले को सबसे पहले उठाया था।
उल्लेखनीय है कि महेश्वर जलविद्युत परियोजना, ओंकारेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना से लगभग 40 किमी दूर खरगोन जिले में मंडलेश्वर के निकट नर्मदा नदी पर स्थित है। परियोजना के लिए जनवरी, 1994 में भारत-सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की स्वीकृति तथा केन्द्रीय विद्युत परियोजना की तकनीकी आर्थिक स्वीकृति प्राप्त कर लिए जाने के पश्चात् इस परियोजना को पूर्ण किए जाने के कार्य श्री महेश्वर जलविद्युत निगम लिमिटेड नामक निजी कम्पनी को सौंप दिए गए। इसके लिए नवम्बर, 1994 में मध्य प्रदेश विद्युत मण्डल द्वारा एक विद्युत क्रय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। दिसम्बर, 1996 में परियोजना के पूर्व की प्राक्कलन राशि रुपए 465.63 करोड़ को संशोधित कर रुपए 1569 करोड़ आंकी गई है। वर्ष 2006 के मूल्य स्तर पर किए मूल्यांकन पर परियोजना की कुल लागत रू 2200 करोड़ आंकी गई थी, जो अब अब बढ़कर करीब 6,600 करोड़ पहुंच गई है। महेश्वर बांध परियोजना का काम सिर्फ चार साल ही चला। इसका काम 1997 में शुरू हो गया था, लेकिन 2001 में निर्माण कंपनी एस. कुमार्स ने वित्तीय कमजोरी की वजह से कार्य रोक दिया था। 2005 में पॉवर फाईनेंस कार्पोरेशन की अगुवाई में कुछ और समूहों और राज्य शासन ने मिलकर इसका काम शुरू करवाया, जो 2011 तक चला। इस दौरान 10 में से तीन टर्बाइन स्थापित कर बिजली उत्पादन की तैयारियां शुरू कर दी गई थी। इन तीन टर्बाइन से ही 120 मेगावाट बिजली उत्पादन शुरू किया जा सकता है, लेकिन इसके बाद परियोजना फिर उलझ गई। एस कुमार्स ने कर्मचारियों का वेतन नहीं दिया। वहीं विद्युत वितरण कंपनी के लाखों रुपए के बिल बकाया है। इस स्थिति में विद्युत वितरण कंपनी द्वारा बांध की बिजली काट दी गई। बीते एक महीने से बांध स्थल अंधेरे में डूबा है। इससे रात में हजारों करोड़ की संपत्ति की सुरक्षा पर सवालिया निशान उठ रहा है। पावर हाउस के अंदर पंप भी बंद है। इससे पावर हाउस में पानी भराने का डर बना हुआ है। डेम से मेंटेनेंस के लिए गैलरियों का निर्माण किया गया है जो पंप बंद होने से जलमग्न हो चुकी है। बिजली बंद होने की वजह से गेट संभावित अकस्मात बंद हो जाते हैं। इससे किसी बड़ी दुर्घटना व जनहानि को नकारा नहीं जा सकता। बिजली बनाने वाली कंपनी ही अंधेरे से जूझ रही है। परियोजना का कार्य बंद हुए दो वर्ष हो चुके हैं। 13 महीनों से कर्मचारियों को वेतन भी नहीं मिला। इससे कर्मचारी परिवारों को आर्थिक संकट के दौर से गुजरना पड़ रहा है।
बांध में पानी और बिजली उत्पादन के लिए 27 गेट और तीन टरबाइन लगी है। इनकी कीमत करोड़ों में है। लेकिन इनका भी कोई उपयोग आज तक नहीं हुआ है। सभी 27 गेट जैसे के तैसे खड़े हैं। इनका किसी भी प्रकार का मेंटेनेंस नहीं किया गया है। इससे करोड़ों से बने गेटों पर सवालिया निशान व भविष्य में उपयोग को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है। गुणवत्ता के चलते भविष्य में किसी भी दुर्घटना या जनहानि से इनकार नहीं किया जा सकता। अब प्रदेश में महेश्वर विद्युत परियोजना को लटकाने वाली एस कुमार्स कंपनी पर राज्य सरकार कब्जा लेने की तैयारी कर रही है। कंपनी से वसूली और अगली कार्रवाई के लिए केंद्र सरकार और पावर फाइनेंस कार्पोरेशन की हरी झंडी मिलने का इंतजार हो रहा है। सरकार 20 साल से महेश्वर परियोजना पर काम करने वाली एस कुमार्स से काम में लेटलतीफी पर वित्त समिति की रिपोर्ट के बाद काम छीनने का फैसला ले चुकी है। इसके लिए केंद्र और पावर फाइनेंस कंपनी को पत्र भी लिखा जा चुका है। जैसे ही इसे टेकओवर किया जाएगा तो सारी संपत्ति को सरकार अपने कब्जे में ले लेगी। परियोजना में कंपनी ने 400 करोड़ से ज्यादा लगाया है। कंपनी से बाकी वसूली पर फैसला केंद्र सरकार करेगी। सरकार ने 1992 में जब महेश्वर परियोजना शुरू की थी, तो इसकी लागत 465 करोड़ रुपए थी। इसे वर्ष 1994 में एस कुमार्स को दिया गया था। कंपनी की लापरवाही के चलते यह योजना 20 साल में 6600 करोड़ की हो चुकी है।

5.32 रुपए में बेचेंगे बिजली
महेश्वर परियोजना पर केंद्र और पावर फाइनेंस कार्पोरेशन को फैसला लेना बाकी है। सरकार इस परियोजना से 5.32 रुपए में बिजली बेचेगी। कंपनी को टेकओवर करने पर सारी संपत्ति भी कब्जे में ले ली जाएगी।
-राजेन्द्र शुक्ला, ऊर्जा मंत्री मध्यप्रदेश
-इंदौर से विकास दुबे

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