17-Nov-2015 08:31 AM
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छत्तीसगढ़ में लगातार चुनाव हारने और घटते जनाधार से चिंतित कांग्रेस हाईकमान ने करीब एक साल पहले डॉ. चरणदास महंत के स्थान पर भूपेश बघेल को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। हाईकमान को विश्वास था कि बघेल गुटों में बंटी

कांग्रेस को एक कर प्रदेश की भाजपा सरकार के खिलाफ बड़ा नेटवर्क तैयार करेंगे। लेकिन एक साल से अधिक का अर्शा बीत जाने के बाद भी कांग्रेस की स्थिति जस की तस है। तेजतर्रार व पिछड़े वर्ग के नेता बघेल अजीत जोगी के कट्टर विरोधी हैं और वे भाजपा सरकार को घेरने की बजाय जोगी से ही निपटने में लगे रहे। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार को घेरने की कांग्रेस की कोशिश लगातार धराशाई हो रही है। राज्य में पार्टी गुटबाजी का शिकार होकर राह भटक चुकी है। नागरिक आपूर्ति घोटाले से घिरी राज्य की भाजपा सरकार को लेकर कांग्रेस ने जो मशाल उठाई थी, उसमें भाजपा को तो कोई विशेष नुकसान नहीं पहुंचा, उलटे कांग्रेस के घर में आग की लपटें उठने लगी। जब दिल्ली समेत पूरे देश में कांग्रेस ने सुस्त रवैया अपना रखा था, उस वक्त आश्वर्यजनक रूप से छत्तीसगढ़ में पार्टी के नेता दोगुने उत्साह से काम करते नजर आ रहे थे। कांग्रेस के जोश पर आश्चर्य इसलिए जताया जा रहा था क्योंकि नया राज्य बनने के बाद से अब तक कांग्रेस पर असफल और कमजोर विपक्ष का ठप्पा लगता रहा है। कई बड़े और जनसरोकारी मुद्दों पर कांग्रेस का मौन न केवल कार्यकर्ताओं बल्कि मतदाताओं को भी खटकता रहा है। खुद अपने 20 प्रमुख नेताओं (झीरम घाटी नक्सल हत्याकांड) की हत्या के मामले को भी कांग्रेस सही तरीके से न उठा पाई थी, न ही विधानसभा चुनावों में भुना पाई थी।
हालांकि अभी भी राज्य में कांग्रेस का नेतृत्व हर मुद्दे पर अब मुख्यमंत्री रमन सिंह और उनकी कैबिनेट को आड़े हाथ ले रहे हैं। किसानों को धान का बोनस नहीं दिए जाने के मुद्दे से लेकर भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी सरकार से रोज जवाब मांगा जा रहा है। दिक्कत ये है कि कांग्रेस अपनी गुटबाजी से उबर नहीं पा रही है। फिलवक्त कांग्रेस की अंदरूनी कलह सतह पर आ गई है। यही कारण है कि कांग्रेस के तेवर से जो राज्य सरकार सहमी नजर आ रही थी, अब वही कांग्रेस पर चुटकी लेने से नहीं चूक रही है। इस आपसी खींचतान का ही नतीजा है कि इसकी आंच अब दिल्ली भी पहुंच गई है। कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने दोनों नेताओं को संयम बरतने की हिदायत दी है। उधर, जोगी के कुछ समर्थक बघेल पर पार्टी संविधान का पालन नहीं करने और पार्टी के बड़े नेता (जोगी) के खिलाफ अनुशासनहीनता का रंग देकर नया पासा फेंकने की तैयारी में है। अब सरकार की जड़ें ढीली करने के लिए बारूद जुटा रही कांग्रेस खुद ही धमाके का शिकार हो गई है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को भाजपा के साथ-साथ अजीत जोगी से भी अंदरूनी तौर पर लड़ाई लडऩी पड़ रही है। जोगी ने विधानसभा चुनाव से पहले खुलकर पार्टी के खिलाफ बिगुल बजाया था, वहीं डॉ. रमनसिंह के शपथ समारोह में मंच पर बैठकर सबको चौंका दिया था। कहा जा रहा था कि बघेल जोगी से टकराने में परहेज नहीं करेंगे, वहीं रमन सरकार के खिलाफ मुद्दों को सामने लाने में नहीं घबराएंगे। बघेल ऐसा ही कर रहे हैं जिस कारण वे पार्टी पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। अभी अक्टूबर के अंत दिनों में राज्य के आदिवासी इलाके में आउटसोर्सिंग के खिलाफ कांग्रेस की रैली में बघेल और जोगी के बीच चल रही तकरार खुलकर सामने आ गई। मंच पर ही एक दूसरे को नीचा दिखाने के चक्कर में दोनों के समर्थकों ने नारेबाजी भी खूब की। दरअसल रैली में भूपेश बघेल के भाषण के बाद अजीत जोगी को भाषण देने आना था। लेकिन अपना भाषण खत्म करते ही कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष ने अमरिंदर सिंह राजा बरार को भाषण के लिए बुला लिया। फिर क्या था अजीत जोगी के समर्थक वहीं पर जोगी-जोगी के नारे लगाने लगे। लेकिन मंच का संचालन कर रहे कांग्रेस के नेता उत्तम वसुदेव ने मामले को संभाल लिया और अजीत जोगी को भाषण के लिए बुलाया लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। मंच पर पार्टी की गुटबाजी सामने आ चुकी थी और बाद में राजा बरार ने भी गुटबाजी के नाम पर अपनी भड़ास निकाली। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है कि जोगी और भूपेश बघेल के बीच की तकरार सामने आई हो। इससे पहले भी कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की रैली में ही दोनों के बीच माइक को लेकर भिड़ंत हो चुकी है। इस बार राजा बरार के सामने भिड़ंत हो गई। इस पर बरार ने निशाना साधते हुए कहा कि यहां के युवाओं में काफी उर्जा है अगर ये पार्टी के लिए लगाई जाए तो पिछले 12 सालों से जमी सरकार को उखाड़ फेंका जा सकता है। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेताओं के बीच तकरार खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। एक दूसरे को नीचा दिखाने की घटनाएं अब खुलेआम मंच पर होने लगी है। वहीं नेताओं के समर्थक भी आपस में भिडऩे को तैयार हैं।
-टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला