19-Mar-2013 10:14 AM
1234767
अमृतसर के निकट तारण-तरण में एक महिला को पुलिस से सहायता मांगना महंगा पड़ गया। यह महिला अपने साथ हुई छेड़छाड़ तथा एक टैक्सी ड्राइवर द्वारा यौन उत्पीडऩ की फरियाद लेकर पुलिस की शरण में आई थी, लेकिन पुलिस ने उसे बुरी तरह दौड़ा-दौड़ा कर पीटा और बिना कोई रिपोर्ट दर्ज किए भगा दिया। घटना तीन मार्च की है उसके पांच दिन बाद ही महिला दिवस था, लेकिन महिलाओं की स्थिति पुलिस की नजर में क्या है इस घटना से पता चला। यह संयोग ही था कि घटना के समय प्रेस फोटोग्राफर वहां मौजूद थे और उन्होंने पूरे घटनाक्रम को फिल्मा लिया अन्यथा देश में महिलाओं के साथ पुलिसिया अत्याचारों की ऐसी सैंकड़ों घटनाएं घटती हैं, जिनका कहीं कोई उल्लेख ही नहीं होता। महिला ही नहीं बल्कि हर वह व्यक्ति जो कमजोर है, लाचार है, मजलूम है, निर्धन है पुलिस के अत्याचारों को झेलता है।
11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और कई राज्य सरकारों को एक नोटिस जारी किया है जिसमें पुलिस सुधारों के विषय में उठाए गए कदमों का ब्यौरा मांगा है। न्यायालय ने उत्तरप्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह को भी नोटिस जारी किया है, जिनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2006 में पुलिस सुधार लागू करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे। बिहार में भी जब महिला शिक्षिकाएं वेतन बढ़ाने की मांग कर रही थीं, उनके ऊपर पुलिस ने बेरहमी से लाठी चार्ज किया था। पुलिस के अत्याचारों में एक खास बात यह भी है कि आसपास खड़े लोग पिटने वालों को बचाने के लिए भी नहीं आते। क्योंकि उन्हें पुलिस का भय सताता है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जीएस सिंघवी ने पंजाब के घटनाक्रम पर चिंता जताते हुए पुलिस द्वारा महिला की पिटाई के दौरान मूक दर्शक बने लोगों पर भी सवाल उठाया है। न्यायाधीश महोदय ने यह सवाल बहुत वाजिब खड़ा किया है। लेकिन सच्चाई तो यह है कि पुलिस से आम जनता बेतहाशा डरती हैं। वह वैसे भी पुलिस के निकट जाना नहीं। बीच-बचाव की बात तो दूर है। तारण-तरण में जिस दलित महिला की पिटाई की गई उसके साथ एक टैक्सी ड्राइवर ने कथित रूप से बलात्कार का प्रयास किया था। यह महिला रिपोर्ट दर्ज कराना चाहती थी, लेकिन रिपोर्ट दर्ज करने वाले पुलिसकर्मी उसकी सुन नहीं रहे थे। महिला के बार-बार गुहार लगाने पर भी पुलिस वालों ने उसकी एक नहीं सुनी बल्कि उसे बुरी तरह पीटते हुए सड़क पर धकेल दिया। हालांकि बाद में पंजाब पुलिस ने मीडिया में इस घटना के उछलने के बाद उस कांस्टेबल को गिरफ्तार किया जिसने महिला को पीटा था। इस घटना में लगभग पांच पुलिसकर्मी शामिल थे। अब पंजाब पुलिस इस घटनाक्रम में लीपापोती करने में जुट गई है।
पुलिस द्वारा अत्याचार, क्रूरता आदि के मामले नए नहीं है। लेकिन पिछले एक दशक में इसमें बढ़ोतरी हुई है। पूर्व डीजी किरण बेदी के अनुसार 1875 से लेकर 2013 तक पुलिस तंत्र की कार्यप्रणाली में जबरदस्त गिरावट आई है। इसके लिए राजनेता, ब्यूरोक्रेट और पुलिस लीडरशिप तीनों जिम्मेदार हैं। लेकिन सबसे ज्यादा जवाबदेही राजनीतिक लीडरशिप की है, क्योंकि छोटे से ट्रांसफर से लेकर पुलिस कैसे काम करेगी, इसका निर्णय वहीं से होता है। वहीं सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर भी सरकार की सुस्ती को इसके लिए दोषी मानते हैं। प्रकाश सिंह बनाम केंद्र सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 22 सितंबर 2006 को केंद्र और राज्य सरकारों को पुलिस रिफॉर्म के लिए सात डायरेक्टिव्स बनाकर उस दिशा में काम करने को कहा था। पुलिस रिफॉर्म को लेकर सुप्रीम कोर्ट की यह पहली डायरेक्टिव थी। लेकिन इसे आने में भी 10 वर्ष का लंबा समय लग गया। इससे साफ हो जाता है कि कोर्ट खुद पुलिस रिफॉर्म को लेकर कितना गंभीर है। वहीं, फैसला आने के बाद भी आज तक पुलिस रिफॉर्म को लेकर कुछ नहीं हुआ।
ह्यूमन राइट्स वॉच की पुलिस तंत्र पर आई एक रिपोर्ट ब्रोकन सिस्टम: डिस्फंक्शन, अब्यूज एंड इम्प्यूनिटी इन द इंडियन पुलिस,Ó में पुलिस क्रूरता के कारणों को खंगालने की कोशिश की गई है। पुलिसकर्मियों से बात के आधार पर इसमें सामने आया है कि पुलिसकर्मी अत्यधिक तनाव में रहते हैं, जिसका कारण कम पुलिसबल की वजह से 24 घंटे की ड्यूटी, छुट्टी न मिलना, लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखने का दबाव, पारिवारिक जिम्मेदारियां और बहुत कम वेतन का मिलना है। पुलिस बल और रैंकिंग के अनुसार पुलिस विभाग की 85 प्रतिशत जिम्मेदारी लो रैंक के हेड कांस्टेबल और कांस्टेबल पर होती है। लो-रैंक के ज्यादातर पुलिसकर्मी बैरक में रहते हैं, जहां उनके रहने की व्यवस्था भी अच्छी नहीं होती। उप्र के एक रिटायर्ड डीजीपी का कहना था कि यदि अमेरिकी पुलिसकर्मी को यहां काम करने के लिए लाया जाए तो ऐसे हालात में वह एक ही दिन में भाग जाएगा।