02-Nov-2015 08:38 AM
1234779
वीरेंद्र सहवाग जैसे खिलाड़ी बार-बार नहीं आते। जो दिल में है, वही ज़बान पर और वही मैदान पर। जो चाहे जैसी सलाह दे लेकिन सहवाग वैसा ही खेलते थे, जैसा वो खुद चाहते थे। कहते हैं कि नियम तोडऩे के लिए ही बनाए जाते हैं, सहवाग

ने इसे पूरी शिद्दत से माना। टेस्ट क्रिकेट को जो लोग बोरिंग खेल समझते थे, उन्हें मैदान या टीवी पर खींच लाने का दम रखते थे सहवाग। सफ़ेद कपड़ों में टी-20 सी बल्लेबाज़ी...और रंगीन कपड़ों में बिजली से शॉट्स। डिफेंस करना तो वीरू ने सीखा ही नहीं। क्रिकेट को एक खेल से एंटरटेनमेंट तक ले जाने में वीरू का योगदान कोई नहीं भूल सकता। ना तो कभी दर्शकों को निराश किया और ना ही कभी अपनी टीम को। लोअर मिडिल ऑर्डर से ओपनर तक का सफऱ तय करते हुए वीरू ने क्रिकेट को ऐसा बहुत कुछ दिया जो उन्हें हमेशा सिर ऊंचा रखने की प्रेरणा देता रहा। भारतीय क्रिकेट के आधुनिक काल की चर्चा जब भी होगी तो तेंदुलकर, द्रविड़, लक्ष्मण और गांगुली के साथ-साथ सहवाग का नाम भी ज़रूर आएगा।
टीम इंडिया के लिए खेलते हुए ऐसे कई मुकाम आए जब वीरू की पारियां इतिहास में दर्ज हो गईं। टेस्ट में मुल्तान और चेन्नई के तिहरे शतक हों या वन-डे में इंदौर का दोहरा शतक, वीरू के पास रिकॉर्ड्स की हमेशा भरमार रही, लेकिन रिकॉर्ड्स के लिए उन्होंने कभी कोई खास कोशिश नहीं की। शतक के करीब पहुंचकर भी गेंद को बाउंड्री पार उड़ाने की उनकी आदत पर लोग हैरान भी होते थे और दाद भी देते थे। लेकिन वीरू सिर्फ बल्ले से ही बेबाक नहीं थे, मुंह से भी थे। 2010 में बांग्लादेश में दो टेस्ट मैचों की सीरीज का पहला टेस्ट चटगांव में खेला जाना था। वीरू भारत के कप्तान थे। मैच से पहले दिन प्रेस कांफ्रेंस के समय दोनों देशों के मीडियाकर्मी कप्तान का इंतजार कर रहे थे। वीरू आए तो बांग्लादेशी रिपोर्टर ने पूछा, बांग्लादेश की गेंदबाजी को कैसे आंकते हैं। वीरू बोले, ज़्यादा अच्छी नहीं है, हमारे 20 विकेट कभी नहीं ले पाएंगेÓ। रिपोर्टर हैरान रह गया। इसके बाद बांग्लादेशी मीडिया ने कुछ और सवाल पूछे, वीरू ने एक-एक लाइन में सबके जवाब दिए और पूरी प्रेस कांफ्रेंस सिर्फ दो मिनट में खत्म करके चलते बने। वहां मौजूद हर शख्स हैरान था, क्योंकि सहवाग की प्रेस कांफ्रेंस में उनकी बल्लेबाजी सी ही तेजी थी। शोएब अख्तर से उनकी कहा-सुनी का किस्सा तो काफी आम है लेकिन इसके बाद भी कई गेंदबाज़ वीरू के निशाने पर आए। वीरू का मूड कब कैसा है ये कहना काफी मुश्किल था। कई बार अच्छे मूड में होते थे तो गाना गाते हुए भी दिखाई देते थे। वीरू को सिर्फ क्रिकेटर समझने वाले भूल करते हैं क्योंकि वो सही मायने वो एंटरटेनर थे।
वीरू की कामयाबी में कई लोगों का हाथ रहा। बचपन से लेकर आजतक उनके खेल को संवारते आए कोच एएन शर्मा हों या फिर उनमें विश्वास दिखाकर उन्हें मौका देने वाले सौरव गांगुली। सचिन तेंदुलकर ने भी वीरू को बड़े कद का बल्लेबाज माना और हमेशा उनका हौसला बढ़ाते रहे। नजफगढ़ की गलियों से निकला छोटा वीरू कैसे क्रिकेट का बादशाह और विज्ञापन की दुनिया का राजा बना ये एक ऐसी कहानी है जिसे सिर्फ वही लोग जानते हैं जिन्होंने सहवाग को करीब से देखा है। वीरू की बल्लेबाजी देखने और उनके किस्से सुनने में जितना मज़ा आता है, उतना ही दुख उनकी मौजूदा स्थिति पर भी होता है। वीरू के जिस हैंड-आई कोर्डिनेशन के लोग कसीदे पढ़ते थे, उसी की बुराईयां करने वालों ने उनके क्रिकेट खेलने पर सवाल भी खड़े किए। कुछ ने तो उनकी आंखों की कमजोरी को उनकी खराब फॉर्म का जिम्मेदार मान लिया। ये सच था या नहीं ये तो वीरू ही जानते हैं लेकिन अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में 17 हजार से ज्यादा रन बनाने वाले एक बड़े क्रिकेटर की टीम से विदाई कुछ सम्मानजनक तो हो ही सकती थी। एक ना एक दिन हर क्रिकेटर रिटायर होता है लेकिन वीरू की रिटायरमेंट में एक टीस है। टीस इस बात की कि भारतीय क्रिकेट का ये सितारा मैदान से रिटायर नहीं हुआ। नजफगढ़ का नवाब, मुल्तान का सुल्तान और न जाने ऐसे कितने ही और नाम सहवाग ने अपने करियर में कमाए और उनकी ये पूंजी उनसे कोई नहीं छीन सकता। अलविदा वीरू! क्रिकेट को आपकी जरूरत हमेशा रहेगी।
-आशीष नेमा