02-Nov-2015 08:35 AM
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आम तौर पर फिक्सिंग शब्द के मायने सट्टेबाजी से जोड़ कर देखे जाते हैं। लेकिन यहां फिक्सिंग टीम बंटवारे को लेकर है। सीरीज शुरू होने से पहले ही खेमों में बंट चुके खिलाड़ी टीम इंडिया की हार तय कर चुके थे। अगर आपको पता चले कि

भारत-साउथ अफ्रीका की सीरीज फिक्स थी तो आप शायद यकीन नहीं कर पाएंगे लेकिन सच यही है कि सीरीज शुरू होने से पहले ही भारत की हार फिक्स हो चुकी थी ! वो भी 5-0 से ! चौंकिए मत, यही सच है। आखिर कैसे टीम इंडिया के खिलाडिय़ों ने खुद ही यह सीरीज साउथ अफ्रीका के नाम कर दी और प्रशंसकों की उम्मीदों को धूमिल करते हुए भारत को सीरीज में हार की ओर धकेल दिया, जानिए कैसे पहले से ही फिक्स थी टीम की हार?
टीम में बंटवारा ले डूबा भारत को
आम तौर पर फिक्सिंग शब्द के मायने कुछ और होते हैं। यहां फिक्सिंग टीम बंटवारे को लेकर है। सीरीज शुरू होने से पहले ही खेमों में बंट चुके खिलाड़ी टीम इंडिया की हार तय कर चुके थे। और इस तरह टीम इंडिया की साउथ अफ्रीका के खिलाफ हार पहले से ही फिक्स हो चुकी थी। दरअसल सीरीज शुरू होने से पहले ही टीम कथित तौर पर धोनी और विराट कोहली के खेमों में बंट चुकी थी। टीम इंडिया के ये दो खेमे एकदूसरे के खिलाफ ही खेलने लगे और अपनी ताकत साउथ अफ्रीका के खिलाफ लडऩे के बजाय आपस में ही लडऩे में जाया कर दी। यह बात पूरी सीरीज के दौरान टीम इंडिया के प्रदर्शन पर नजर दौड़ाने पर साफ नजर आती है। इसीलिए टीम सिर्फ व्यक्तिगत प्रदर्शनों के कारण तो मैच जीती लेकिन कभी भी एक टीम के रूप में खेलती और जीतती हुई नजर नहीं आई।
साउथ अफ्रीका नहीं खुद को ही हराने में लगी रही टीम?
इस सीरीज में भारत का हारना तो सीरीज शुरू होने से पहले ही तय हो चुका था। क्योंकि टीम को तो जीत के लिए खेलना ही नहीं था और वह तो एकदूसरे को ही हराने के खेल में लग गई थी। यही वजह है कि भारत इस पूरी सीरीज में कोई भी मैच टीम एफर्र्ट से नहीं जीत सका और कभी भी टीम एकजुट होकर खेलती नजर नहीं आई। बंटी हुई टीम के बिखरे हुए खेल ने साउथ अफ्रीका का काम आसान कर दिया। धोनी-कोहली जैसे इक्का-दुक्का व्यक्तिगत प्रदर्शनों को छोड़ दें तो टीम कभी भी साथ मिलकर भारत के लिए कोई मैच जीतती नजर नहीं आई, जबकि वहीं दूसरी ओर साउथ अफ्रीका के लिए न सिर्फ डिविलियर्स और डिकॉक बल्कि डु प्लेसिस, मोर्कल, स्टेन और रबादा ने भी जरूरत के समय शानदार प्रदर्शन किया और अपनी टीम की जीत में अहम भूमिका निभाई। लेकिन यही बात भारत के संदर्भ में नहीं कही जा सकती है क्योंकि न सिर्फ बैटिंग बल्कि बॉलिंग के मोर्चे पर भी टीम पूरी तरह बिखरी नजर आई। यही वजह है कि दो मैच जीतने के बावजूद भी एक टीम के तौर पर एकजुट होकर अच्छा प्रदर्शन करने में टीम इंडिया नाकाम रही।
धोनी और कोहली अकेले चमके, टीम हारती रही
इस सीरीज के शुरू होने से पहले ही धोनी-कोहली के बीच विवाद और टीम के दो धड़े में बंटने के आरोप लग रहे थे। ये बात इस सीरीज में काफी हद तक दिखी भी और लगभग हर मौके पर टीम बंटी हुई नजर आई। जैसे टी-20 सीरीज गंवाने और फिर पहले वनडे में भी हार के बाद जब धोनी की आलोचना अपने चरम पर थी तो इंदौर वनडे में धोनी ने अकेले दम पर 92 रनों की पारी खेलते हुए टीम को जीत दिला दी लेकिन यहां भी धोनी को टीम के बाकी बल्लेबाजों का साथ नहीं मिला और अकेले धोनी ही जीत के स्टार बनकर उभरे। यही हाल चेन्नई वनडे में मिली टीम की जीत में भी रहा, जहां विराट कोहली ने अकेले ही 138 रनों की धमाकेदार पारी खेली और उनके साथ अंजिक्य रहाणे ने भी अच्छी बैटिंग की। रहाणे को कोहली कैंप का खिलाड़ी माना जाता है। यानी जब धोनी की आलोचना हुई तो उन्होंने खुद को बचाने के लिए अपनी बैटिंग से इंदौर वन डे जिता दिया और इसके बाद जब कोहली पर जानबूझकर खराब बैटिंग करने और धोनी का साथ न देने का आरोप लगा तो उन्होंने चेन्नई में सेंचुरी जड़कर अपने आलोचकों को गलत साबित करने की कोशिश की। लेकिन खेमों में बंट चुके टीम के ज्यादातर स्टार खिलाड़ी पूरी सीरीज के दौरान फ्लॉप रहे, रोहित शर्मा को छोड़ दें तो, धवन से लेकर रैना तक बाकी बल्लेबाज अपनी छाप छोडऩे में नाकाम रहे। बोलिंग में भी मोहित शर्मा हों या भुवनेश्वर, वे कभी भी मोर्कल और स्टेन जैसा प्रभाव नहीं छोड़ पाए। किसी मैच में ऐसा लगा ही नहीं कि पूरी टीम मिलकर मैच जीतने के लिए खेल रही है, बल्कि ऐसा लगा कि लोग एकदूसरे को कमतर साबित करने और खुद के लिए खेल रहे हैं। खासकर टीम के कप्तान और उपकप्तान का खेल तो कुछ ऐसा ही नजर आया। पूरी सीरीज के दौरान दोनों के बीच मनमुटाव के कारण टीम के बंटे होने की खबरें छाईं रहीं और सच में टीम बंटी हुई ही नजर आई। भले भारत इस सीरीज में दो मैच जीता लेकिन टीम इंडिया यह सीरीज 5-0 से हारी है!