02-Nov-2015 07:33 AM
1234811
बुंदेलखंड पैकेज अफसरों और नेताओं के लिए ऐसा कमाऊ पैकेज बना कि इन्होंने योजनाओं को कागजों पर तो तैयार कर लिया लेकिन वे जमीन पर नहीं उतर सकीं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि आज भी बुंदेलखंड के छह जिले पन्ना, दमोह, छतरपुर, टीकमगढ़, सागर और दतिया के गांव प्यासे हैं। कुछ गांव में नल-जल योजनाएं शुरू हुईं लेकिन कुछ दिन बाद वे बंद हो गईं। क्योंकि वे मापदंडों के अनुसार नहीं बनी थी। अब जांच में इन योजनाओं में बड़े भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है।
बुंदेलखंड की प्यास बुझाने के साथ ही यहां साल भर पानी उपलब्ध कराने के लिए केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा विशेष पैकेज दिया गया था। इसी पैकेज के एक हिस्से में से 100 करोड़ की राशि से बुंदेलखंड के 6 जिलों में 1269 नलजल योजनाओं का निर्माण किया था। निर्माण कार्यों में हुए भ्रष्टाचार की हाईकोर्ट के आदेश पर मुख्य सचिव ने पीएचई के प्रमुख अभियंता जीएस डामोर की अध्यक्षता में कराई गई जांच में नलजल योजनाओं में भारी भ्रष्टाचार उजागर हुआ है। हालांकि अभी डामोर ने रिपोर्ट मुख्य सचिव को सौंपी नहीं है।
बुंदेलखंड के सामाजिक कार्यकर्ता पवन धुवारा ने छह जिले पन्ना, दमोह, छतरपुर, टीकमगढ़, सागर और दतिया के गांवों में नलजल योजनाओं में हुए भ्रष्टाचार को लेकर हाईकोर्ट में रिट पिटीशन लगाई थी। इस पिटीशन के आधार पर कोर्ट ने मुख्य सचिव से जांच रिपोर्ट मंगाई है। मुख्य सचिव ने पीएचई के प्रमुख अभियंता जीएस डामौर की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय दल बनाया। दल ने छह जिलों में बनाई गईं 1269 नलजल योजनाओं के निरीक्षण के बाद जो रिपोर्ट तैयार की है, वह चौकाने वाली है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 78 प्रतिशत योजनाओं के काम में भ्रष्टाचार हुआ है। यानी 996 योजनाएं चालू ही नहीं हो पाईं, जबकि 272 योजनाएं आंशिक रूप से चालू पाई गईं। बिुंदेलखंड पैकेज की नलजल योजनाओं में करीब 70 करोड़ का भ्रष्टाचार हुआ है। जांच में पाया कि पन्ना में 280, दमोह में 249, छतरपुर में 150, टीकमगढ़ में 200, सागर में 350 और दतिया के लिए 58 नलजल योजनाएं स्वीकृत हुईं थीं। इनमें से आज एक भी योजना ऐसी नहीं है, जो किसी गांव को पानी पिला रही हो। नलजल योजनाओं के लिए तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी एनके कश्यप ने लघु उद्योग निगम से सामग्री का क्रय किया था। जांच में यह सामग्री घटिया पाई गई। कई उपकरण ऐसे खरीदे गए, जिनका उपयोग ही नहीं हुआ। खास बात यह है कि पानी के स्रोत बनने से पहले ही 50 करोड़ की सामग्री खरीदी गई थी। यानी लघु उद्योग निगम भी भ्रष्टाचार में शामिल है।
उधर सामाजिक संस्था सोशल मीडिया फाउंडेशन ने जब आम आदमी के जीवन के लिए बुनियादी अधिकार पानी के बारे में पड़ताल की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। सरकार की साफसुथरी नियत पर अधिकारियों ने पलीता लगाया है। केन्द्र सरकार और प्रदेश सरकार जनता तक साफ पानी पहुंचाने के लिए कई योजनाएं बनाई लेकिन ये योजनाएं महज फाइलों तक ही सीमित रह गई है।
1432 हैंडपंपों ने पानी उगलना बंद कर दिया
राज्य सरकार और बुंदेलखंड पैकेज की नल-जल योजनाओं का बुरा हाल है। सागर जिले की 325 नल योजनाएं पिछले कई महीनों से बंद पड़ी हुई हैं। उधर 1432 हैंडपंपों ने मई महीने से पानी उगलना बंद कर दिया हैं। इस कारण जिले के 1760 गांवों में से 50 फीसदी यानी 950 गांवों के लोगों को अपने गांव में पीने का पानी नहीं मिल रहा है। पानी की जुगाड़ में हर दिन हजारों ग्रामीण पसीना बहा रहे हंै। कोई एक किमी, तो किसी को दो से पांच किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। ग्रामीण अंचल की नल जल योजनाओं को चालू रखने की जिम्मेदारी लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की है। पंचायत प्रतिनिधियों की शिकायत है कि विभाग के ईई, एसडीओ, सब इंजीनियर मैदान में जाकर कोई काम नहीं करते है। उनकी कार्रवाई कागजी होती है। योजना के देख-रेख की जिम्मेदारी पंचायतों को सौंपी गई है। पीएचई के उपयंत्री एनके असाटी कहते हैं कि ट्यूबवेल या मोटर खराबी को सुधारने की जिम्मेदारी पंचायत की है। पंचायतों से जल आवर्धन योजना के तहत अंशदान राशि जमा करने के बाद ही कार्य कराया जाएगा। शाहगढ़ ब्लॉक की विभाग द्वारा पंचायतों में नल जल योजना का विधिवत संचालन बताया जा रहा है जबकि सच्चाई वहां जाकर देखा तो कुछ और सामने आई। बुंदेलखंड पैकेज की कुल 39 में में नल-जल योजना का लाभ विभिन्न दिया जाना शामिल है। पंचायतों से उपयोगिता प्रमाण पत्र ले लिया जबकि हकीकत यह है कि दस वर्ष गुजरने के बाद भी इस योजना का पंचायतों में क्रियान्वयन सही नहीं हो सका। ग्राम पंचायत बगरौधा में पाइप डल गये, और फूट भी गये लेकिन पानी सप्लाई नहीं हो सका।
-रजनीकांत पारे