250 से 1500 करोड़ पहुंच गई परियोजना, काम कुछ नहीं
16-Oct-2015 10:52 AM 1234823

बुंदेलखंड को पानी-पानी करने के लिए बरसों के प्रयास भी नाकाफी हैं। 1982 में जलसंसाधन विभाग ने 258 करोड़ की लागत से क्षेत्र को जल संपन्न बनाने के लिए बड़ी योजना तैयार की, लेकिन यह योजना 33 साल बाद भी कागजों से बाहर नहीं निकली है। सरकारें आईं और गईं, जनप्रतिनिधियों ने भी ग्रामीणों को केवल आश्वासनों के डोज ही दिए, लेकिन जमीन पर एक भी ईंट आज तक नहीं रखी गई।

बुंदेलखंड की प्यास बुझाने के लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकार के अभी तक के प्रयास केवल कागजी साबित हुए हैं। इस कारण आज भी बुंदेलखंड के खेतों की कौन कहे वहां के घरों को भी पानी नहीं मिल पा रहा है। क्षेत्र के खेतों और लोगों को पानी मुहैया कराने के लिए बीना नदी पर बीना परियोजना शुरू की गई थी। सैकड़ों बैठकों और हजारों पत्रों के बाद मामला फिलहाल केंद्रीय वन मंत्रालय के पास अटका हुआ है।  बहरहाल योजना की लागत 6 गुना बढ़कर 1540 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। इस योजना में 34 मेगावॉट बिजली का उत्पादन भी होना है। सर्वे एजेंसी स्कॉट विल्सन इंडिया की रिपोर्ट में नहरों की लंबाई 115 बनाई जाएगी, जिससे 226 गांव लाभान्वित होगें साथ ही सागर जिले के राहतगढ़ ब्लॉक, खुरई, मालथौन व बीना में 25 हजार से ज्यादा किसानों की 97747 हैक्टेर भूमि सिंचित होगी। प्राकृतिक जल प्रपात राहतगढ़ का पर्यटन की दृष्टि से विकास भी किया जाएगा। बताया जा रहा है कि कागजों के नाम पर अब तक 1 करोड़ फंूके जा चुके हैं। परियोजना के तहत परियोजना के शीर्ष भाग का शत-प्रतिशत सर्वे कार्य पूरा हो चुका है। पूरी तरह से डूब में आ रहे गांवों के रहवासियों ने इसका विरोध भी किया है, लेकिन परियोजना कब शुरू होगी यह किसी को पता नहीं है।
परियोजना में राहतगढ़ की बीना नदी पर चार बांध बनाए जाना हैं। मडिय़ा बांध, धसान नदी डायवर्शन, देहरा बांध व चकरपुर बांध के जरिए एक लाख हैक्टेयर जमीन सिंचित करने के लिए यह योजना तैयार की गई। डूब क्षेत्र में करीब 10 हजार हैक्टेयर निजी, वन व अन्य भूमि आएगी। योजना में 69 गांव डूब में आएंगे। 12 गांव पूर्णत: डूब जाएंगें जबकी 18 गांव आंशिक रूप से डूब क्षेत्र में आएंगे तथा रिजरवायर के 39 गांव प्रभावित होंगे। डूब क्षेत्र में आने वाले रायसेन जिले के 20 गांव हैं। इस परियोजना से 1250 वर्ग किमी के भू-जल स्तर में वृद्धि होगी। साथ ही खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि, स्थानीय ग्रामीणों को रोजगार के अवसर, मछली पालन भी होगा। जल संसाधन विभाग के चीफ इंजीनियर सुधीर खरे कहते हैं कि परियोजना की लागत लगभग 1540 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। केंद्रीय वन मंत्रालय में फाइल अटकी है, क्लियरेंस मिलते ही जमीनी कार्य शुरू कर देंगे। 29-30 सिंतबर को दिल्ली में बैठक बुलाई गई थी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। यह विभाग 2008 में परियोजना को सैद्धांतिक सहमति दे चुका है।
परिवहन मंत्री भूपेंद्र सिंह का कहना है कि जिले व आसपास के इलाकों की सिंचाई व बिजली क्षमता को बढ़ाने वाली बीना परियोजना का काम आगे बढ़ा है। वन विभाग ने हाल ही में इस परियोजना के डूब क्षेत्र में आने वाली 1024.44 हेक्टेयर भूमि, जल संसाधन विभाग को सौंपने पर सहमति दे दी है। इस महत्वाकांक्षी योजना के लिए करीब 10 वर्ष से वन भूमि की मांग की जा रही थी। इस बारे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से कई बार चर्चा हुई। अंत: विभाग भूमि को हस्तांतरित करने को राजी हो गया। वन विभाग के अफसरों ने अब इस पूरे प्रपोजल को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भेजा। साथ ही राज्य सरकार ने भी केंद्र सरकार से इस हस्तांतरण को सैद्धांतिक सहमति देने का अनुरोध किया है। भूपेन्द्र सिंह ने बताया कि लोकसभा सांसद रहते हुए मैंने इस मामले को कई बार संसद में उठाया था। उन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि आज बीना-सागर के लिए बिजली और सिंचाई का एक मजबूत स्रोत तैयार होने जा रहा है। जानकारों का कहना है कि बीना परियोजना को जरूरत के मुताबिक वन भूमि का मिलना इस स्कीम का अहम पड़ाव है।
-अरविन्द नारद

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^