02-Nov-2015 07:23 AM
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भारत हेवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड (भेल) भोपाल की आर्थिक स्थिति दिन पर दिन खराब होती जा रही है। दरअसल अधिकारियों की लगातार लापरवाही के कारण संस्थान को घाटे पर घाटे का सामना

करना पड़ रहा है। जिस सीमेन्स मोटर की सप्लाई कर भेल हर साल अरबों रुपए की कमाई करता था वह भी उसके हाथ से छिन गया है। इससे भेल भोपाल के हाथ से करीब 2,52,00,00,000 रुपए का काम निकल गया है। बताया जाता है कि अधिकारियों की थोड़ी सी लापरवाही से भेल को होने वाली एक बड़ी कमाई छिन गई है।
भेल के ट्रेक्शन मोटर विभाग निर्मित होने वाली 700 सीमेंस मोटरों का ऑर्डर रेलवे से मिलने वाला था। इस आर्डर के लिए भेल को पार्ट-टू नहीं आने का खामियाजा उठाना पड़ा। वैसे तो भेल कारखाने की आर्थिक हालत ठीक नहीं है। कंपनी का मुनाफा भी साल दर साल गिर रहा है। ऑर्डरों की बेहद कमी है। क्वालिटी में भी गिरावट दर्ज की जा रही है। कारखाने के कुछ ब्लाकों को छोड़कर लगभग सभी ब्लाकों की हालत खराब है। इसमें भी भेल का अहम ट्रेक्शन मोटर विभाग सबसे अधिक पिछड़ा हुआ है। सूत्रों की मानें तो विभाग में काम की बेहद कमी है। वर्तमान में ब्लाक के पास दो से तीन माह का काम बचा हुआ है। जो काम है वह भी स्पेयर पार्टस का है। इसके साथ ही रिपेयरिंग का काम चल रहा है। इस ब्लाक को फिर से पटरी पर लाने के लिए स्थानीय प्रबंधन के साथ कारपोरेट प्रबंधन भी जुटा हुआ है। इसके तहत ब्लाक में ज्यादा से ज्यादा काम आए इसके प्रयास किए जा रहे हैं,लेकिन इसमें प्रबंधन को सफलता हासिल नहीं हो पा रही है। इसकी एक बानगी हाल में भेल के हाथ से निकले रेल्वे की मोटरों से लगाया जा सकता है। सूत्रों ने बताया कि भेल इस आशा में बैठा था कि उसे रेलवे से 700 सीमेंस डिजायन मोटरों का आर्डर हासिल हो जाएगा। यह आर्डर करीब 2600 मोटरों का था। इसके लिए भेल ने अपने दामों को कम किया था। पहले भेल एक मोटर 36 लाख की देता था। प्रतियोगिता बढ़ती देख उसने मोटर की कीमत 22 लाख कोट की थी। लेकिन सीमेंस ने इस ऑर्डर के लिए जो दाम दिए थे वह 18 लाख प्रति मोटर थे। जबकि सीमेंस इन्हीं मोटरों को 30 लाख से अधिक में बनाता आया है। ऑर्डर नहीं मिलने के पीछे बड़ी वजह भ्ेाल का पार्ट-टू नहीं आना है। भेल एल-3 पर पहुंच गया। इधर ऑर्डर नहीं मिलने से ट्रेक्शन विभाग को बड़ा झटका लगा है। इसे कहीं न कहीं ट्रेक्शन की गति में अवरोध माना जा रहा है। अब सवाल यह उठता है कि जब इस विभाग के पास ऑर्डर ही नहीं होंगे तो इसे पटरी पर कैंसे लाया जा सकता है। भेल प्रवक्ता का कहना है कि भेल ऑर्डर के लिए आगे भी प्रतिस्पर्धा करता रहेगा। इसका फायदा जरूर मिलेगा।
जानकारों का कहना है कि भेल भोपाल की मदर इकाई का ब्रेड बटर कहा जाने वाला ट्रेक्शन मोटर विभाग के उत्पादन का ग्राफ पिछले कई सालों से भले ही गिरता जा रहा हो,लेकिन प्रबंधन चाहे तो देशी व विदेशी कंपनियों के कड़े मुकाबले के बाद भी इस विभाग को फिर से खड़ा किया जा सकता है। वर्तमान में विभाग के परफार्मेंस को देखते हुए इस विभाग को ऑर्डर मिलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। एक पूर्व महाप्रबंधक सर्वेश चतुर्वेदी ने जब इस विभाग की कमान संभाली थी तो उन्होंने नई टेक्नोलॉजी लाकर ट्रेक्शन को नई गति प्रदान कर दी, लेकिन इसी बीच उन्हें इस विभाग से हटाकर मानव संसाधन विभाग का मुखिया बना दिया गया। सूत्र बताते हैं कि इस विभाग के इंजीनियरिंग के मास्टर माइंड अपर महाप्रबंधक एके वासने और प्रोडक्शन और प्लानिंग के जानकार अफसर अपर महाप्रबंधक चन्द्रशेखर भी बेहतर परफार्मेंस के बाद महाप्रबंधक पर प्रमोशन नहीं पा सके। फिर भी महाप्रबंधक द्वय ट्रेक्शन मोटर विभाग में जान फंूकने की पूरी कोशिश कर डाली। काफी प्रयास के बाद इसी विभाग के टाम डिवीजन में रेलवे में मोटर नम्बर 9001 पार्ट-1 बन गया। इससे भेल को 190 मोटर बनाने का ऑर्डर भी मिल गया। इसी तरह 135 सीमेंस मोटर कम समय में बनाकर देने के बाद भेल की पार्ट-2 में दावेदारी शुरू हो गई। इसी तरह तीसरे फेस में सीमेंस की थ्री फेस मोटर भी बना डाली। इस तरह बीएचईएल रेलवे में पार्ट-2 का प्रबल दावेदार हो गया था। इसके चलते भेल को रेलवे से करीब 700 मोटर बनाने के ऑर्डर मिलने की संभावना थी, लेकिन पार्ट-2 नहीं आने से भेल के हाथ से यह ऑर्डर छिन गया। जानकार कहते हैं कि अगर भेल को अपनी आर्थिक स्थिति सुधारनी है तो उसे यूनिट के ट्रेक्शन और थर्मल में जान फूंकनी होगी। भेल के चेयरमेन चाहते हैं कि भेल भोपाल यूनिट के ट्रेक्शन और थर्मल जब तक बेहतरीन ग्रोथ
नहीं करेंगे तब तक भोपाल यूनिट अच्छा प्रोफिट नहीं दे सकती। कुछ अधिकारियों के बेहतर परफार्मेस होने के बाद भी उन्हें आगे नहीं बढ़ाया गया। इस बात पर खुद भेल कारपोरेट ने समय रहते ध्यान नहीं दिया। इससे यहां के अफसरों का मनोबल भी गिरा है। सबसे बड़ी बात यह है कि आज भेल के सामने देशी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने इसका फायदा उठाया और यह विभाग डूबने की कगार पर पहुंच गया।
-श्याम सिंह सिकरवार