सत्ता जाते ही गायब हो गए सेनापति
17-Oct-2015 08:28 AM 1234880

केंद्र में 10 साल तक सत्ता में रही कांग्रेस के लिए हर मुकाम पर मोर्चा लड़ाने वाले उसके सेनापति सत्ता जाते ही नेपथ्य में चले गए हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि पार्टी को जीवित रखने के लिए कांग्रेस ने बुराड़ी सम्मेलन के बाद अपना संविधान फिर से बदलना पड़ा।  इस बदलाव से  सोनिया गांधी कांग्रेस के इतिहास में सबसे अधिक यानी अठारह साल तक अध्यक्ष रहने का रिकार्ड बनाएंगी। कोई नहीं जानता कि यह कार्यकाल और कितने साल रहेगा। लेकिन सवाल उठ रहा है कि आखिरकार ऐसी क्या मजबूरी है कि सोनिया को फिर से अध्यक्ष बनना पड़ा। जबकि कांग्रेस जब सत्ता में थी तो राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की लगातार आवाज उठती रहती थी। ऐसे में एक और सवाल उठता है कि जिस राहुल को कांग्रेस के रणनीतिकार देश के प्रधानमंत्री बनाने के लिए लगातार आवाज उठा रहे थे, क्या वे कांग्रेस का अध्यक्ष बनने लायक नहीं हैं? दरअसल, केंद्र में सत्ता जाते ही पार्टी के रणनीतिकार गायब हो गए हैं इससे सोनिया गांधी कांग्रेस और राहुल के भविष्य के साथ कोई खिलवाड़ नहीं करना चाहती हैं। इसलिए कांग्रेस, जिसे महात्मा गांधी ने लोकतांत्रिक राजनीतिक दल बनाया था, वह अब जबकि भारत में लोकतंत्र की जड़ें गहरी हो रही हैं, तब कांग्रेस मां-बेटे की पार्टी बनकर रह गई है।
7, रेसकोर्स रोड से अपने रिटायरमेंट होम 3, मोतीलाल नेहरू मार्ग पर पहुंचने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह लोगों की नजर से और दूर हो गए हैं। हालांकि, बजट सत्र के दौरान राज्यसभा में वह रोज आते थे, सदन की कार्यवाही देखते और फिर चुपचाप चले जाते। पिछले दिनों में उनका पहला प्रमुख राजनीतिक बयान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की ओर से दी गई इफ्तार पार्टी में आया, जहां उन्होंने कहा कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के घर में जासूसी से जुड़ी रिपोर्ट्स अगर सही हैं तो इसकी जांच होनी चाहिए। सिंह अपना ज्यादा वक्त घर में पढऩे, टीवी न्यूज देखने, दोस्तों और घर पर आने वालों से मिलने-जुलने में बिताते हैं। कांग्रेस वर्किंग कमेटी के मेंबर हैं, लेकिन पार्टी की गतिविधियों में सक्रिय नहीं हैं।
सत्ता की खुमारी से सबसे पहले बाहर आने वालों में पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी शामिल हैं। मोदी सरकार बनने के कुछ ही दिनों के भीतर उन्होंने होम मिनिस्टर राजनाथ सिंह को लेटर लिखकर अनुरोध किया कि उनके इर्दगिर्द से सुरक्षा हटाई जाए और उन्हें एक छोटा आवास दिया जाए। हालांकि जिन पदों पर वह रह चुके हैं, उसके आधार पर उन्हें बड़ा बंगला मिलना चाहिए। राजनाथ ने सुरक्षा घेरा हटाने का एंटनी का अनुरोध हालांकि स्वीकार नहीं किया, लेकिन एंटनी के जोर देने पर सरकार ने उन्हें छोटा घर दे दिया है। इस बीच, एंटनी ने कांग्रेस की हार के कारणों पर एक रिपोर्ट तैयार की है। सीडब्ल्यूसी के मेंबर हैं। पिछले दिनों सुर्खियों में तब आए, जब उन्होंने कहा था कि सेक्युलरिजम पर कांग्रेस के जोर के चलते पार्टी को अल्पसंख्यकों के समर्थक के रूप में देखा जा रहा है।
अरुण जेटली के आम बजट पेश करते ही भले यह चर्चा उठी हो कि इस पर पी चिदंबरम की नीतियों की छाप है, लेकिन चुनाव के बाद से चिदंबरम सुर्खियों से दूर ही रहे हैं। बताया गया कि फीफा वल्र्ड कप के दौरान वह अपने बेटे कार्ति के साथ ब्राजील गए थे। तमिलनाडु के चुनावी दंगल से दूर रहे चिदंबरम ने कहा भी था कि वह अब ऐसे कई काम करना चाहते हैं, जो पिछले 10 वर्षों में व्यस्तता के चलते नहीं कर सके थे। इन दिनों चिदंबरम अखबारों में लेख लिख रहे हैं। पार्टी की गतिविधियों में वह कहीं नजर नहीं आ रहे हैं।
कपिल सिब्बल यूपीए के सबसे ज्यादा दिखने वाले मंत्रियों में शामिल थे। हालांकि वह हाल में तब सुर्खियों में आए, जब खबर आई कि वह बेहद मोटा किराया देकर एक मकान में शिफ्ट होने वाले हैं। वकालत में जैसी सफलता सिब्बल को मिली है और जितनी फीस वह लेते हैं, उसे देखते हुए यह किराया मामूली ही है। सिब्बल अब लीगल प्रैक्टिस में लौट गए हैं। दिल्ली और खासतौर से अपने पुराने इलाके चांदनी चौक में राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर रखते हैं। अभी हाल ही में व्यापमं मामले में उन्होंने दिग्विजय सिंह की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में जिरह भी की थी। हालांकि सिब्बल मोदी सरकार के खिलाफ लगातार बयान दे रहे हैं। लेकिन पार्टी को मजबूत आधार देने के लिए वे सक्रिय नजर नहीं आ रहे हैं।
महाराष्ट्र की सोलापुर लोकसभा सीट पर मिली हार ने सुशील कुमार शिंदे की पॉलिटिकल स्क्रिप्ट बदल दी। सोनिया गांधी ने इससे पहले शिंदे को संकेत दिया था कि अगर महाराष्ट्र में पृथ्वीराज चव्हाण को सीएम पद से हटाने की जरूरत महसूस हुई तो शिंदे उनकी पसंद होंगे। हालांकि शिंदे ने यह कहते हुए इस पद के लिए अनिच्छा जताई कि लोकसभा चुनाव में उनकी हार को देखते हुए ऐसा कदम राजनीतिक रूप से सही नहीं होगा। बहरहाल, शिंदे खुद को महाराष्ट्र तक सीमित रखे हुए हैं। शिंदे सीडब्ल्यूसी मेंबर हैं। कांग्रेस में ऐसे लोगों की संख्या कम ही है, जो ऐसे नेता को चुका हुआ मान रहे हों, जिसे सोनिया गांधी ने एक बार अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की ऑटोबायोग्राफी दी थी।
लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के जहाज में बचे 44 सवारों में से एक विरप्पा मोइली भी हैं। हालांकि, फॉर्मर ऑइल मिनिस्टर अब खुद को प्रोफेशनल मोर्चे पर ही मसरूफ रखे हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट में अपना कानूनी कामकाज बढ़ाने के इरादे से उन्होंने मोइली ऐंड असोसिएट्स की दिल्ली ब्रांच भी खोल ली है। मोइली ने किताबें भी लिखी हैं। बताते हैं कि वह रोज सुबह 4 बजे जग जाते हैं और पढऩे-लिखने का काम सुबह 7 बजे तक करते हैं। कन्नड़ भाषा में लिखी उनकी किताब द्रौपदी को पुरस्कार मिला था। यह जल्द ही हिंदी और अंग्रेजी में प्रकाशित होने वाली है। बताया जा रहा है कि मोइली प्रशासन और शासन में नई चुनौतियों के बारे में दो और किताबें लिख रहे हैं। मोइली सीडब्ल्यूसी मेंबर हैं। यह कोई राज नहीं है कि कर्नाटक कांग्रेस के दूसरे नेताओं की तरह मोइली की नजर भी इस बात पर है कि सीएम सिद्दारमैया कितनी तेजी से पार्टी और सरकार पर अपनी पकड़ खो रहे हैं।
अहमद पटेल कांग्रेस के फिसलन भरे पावर कॉरिडोर में कुशलता से खुद को बचाए हुए हैं और अपनी साख भी बढ़ाते जा रहे  हैं। उनका दर्जा बढ़ाते हुए राज्यसभा में उन्हें विपक्ष का नेता बनाया गया है। यूपीए शासन में अधिकांश समय सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल ने इस बात का पूरा इंतजाम कर रखा था कि उनके अलावा कोई और सोनिया के करीब न आ सके। अभी भी वे इसी भूमिका में हैं। राजनीतिक विश£ेषकों को कहना है कि उनका पार्टी के भविष्य से कोई मतलब नहीं है। इसलिए वे केवल सोनिया-राहुल पर होने वाले हमलों का जवाब देने सामने आते हैं।
राहुल गांधी की पार्टी के अंदर के रिफॉम्र्स के पीछे की सोच माने जाने वाले जयराम रमेश के चाहने वाले मानते हैं कि राहुल अभी भी इन बदलावों और प्रयोगों की जारी रखेंगे। साथ ही वह रमेश की पार्टी की गतिविधियों से दूर होने और पार्टी के वॉर-रूम न जाने की बातों पर भी उनका बचाव करते हैं। हालांकि इस बात की जोरदार चर्चा है चुनाव के बाद टीम राहुल में कुछ दरारें पड़ गई हैं। रमेश अधिक ऐक्टिव नहीं नजर आ रहे। कुछ कांग्रेसी नेता सवाल कर रहे हैं कि क्या रमेश अब भी पीआर फर्म जेनेसिस बर्सनमार्सटेलर के दफ्तर जा रहे हैं। इसी फर्म ने पार्टी की पब्लिसिटी कैंपेन संभाली थी। रमेश इन दिनों फिर चर्चा में हैं।  हिमाचल हाईकोर्ट द्वारा उन्हें नोटिस जारी किया गया। यह नोटिस पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल द्वारा पूर्व केन्द्रीय मंत्री जय राम रमेश के खिलाफ हाईकोर्ट में दायर मानहानि के मामले में किया गया है। अदालत ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश को 18 नवम्बर को व्यक्तिगत तौर पर या अपने वकील के माध्यम से कोर्ट में तलब किया है।
कांग्रेस की बड़ी हार के बीच भी कमलनाथ ने अपनी साख बचाए रखी थी। वह चुनाव के बाद ऐक्टिव भी नजर आ रहे थे लेकिन लोकसभा में पार्टी नेता का पद न मिलने के बाद वह थोड़े सुस्त पड़ गए हैं। उन्हें लोक लेखा समिति (पीएसी) का अध्यक्ष पद भी नहीं मिला। शायद यही वजह है कि वह आजकल लोकसभा में कम ही दिख रहे हैं। पर्दे के पीछे के खेल में माहिर कमलनाथ पार्टी को संकट से उबारने के लिए अहम हो सकते हैं और ऐसे में उनकी व्यस्तता बढ़ सकती है।

आखिर चापलूसी से कब तक चलेगा काम
कभी-कभी कांग्रेस के नेताओं की आत्मा जग जाती है। तब वे विवेक संपन्न नेता की तरह बोलते और व्यवहार करते हैं। ऐसे नेताओं में एक पी. चिदंबरम भी हैं। याद करें तो पाएंगे कि लोकसभा के चुनावों में पराजय के कई महीने बाद उन्होंने एक बयान दिया कि गांधी परिवार (नेहरू परिवार पढ़ें) के बाहर का भी कोई शख्स पार्टी का अध्यक्ष बनाया जा सकता है।Ó इस बयान पर कांग्रेस अध्यक्ष ने तब कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की। वैसे भी सोनिया गांधी की ओर से प्रवक्ता ही बोलते हैं। वे तो खास अवसरों पर ही बोलती हैं। बोलती कम, आदेश ज्यादा देती हैं। जब कांग्रेस के किसी प्रवक्ता ने चिदंबरम के बयान पर कोई टिप्पणी नहीं की तो उम्मीद जगी कि कांग्रेस में थोड़ा खुलापन आ सकता है। उसके दरवाजे और खिड़कियां खुल सकती हैं। नए हवा का झोंका तब कांग्रेस में महसूस किया जा सकता है। कांग्रेस में इस तरह के बयान का इतिहास रहा है। ऐसे बयान से बदलाव के संकेत उभरते हैं। थोड़ा पीछे जाएं तो याद किया जा सकता है कि पीवी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व में लोकसभा के चुनाव की पराजय के बाद कमलनाथ ने एक बयान दिया था। बात 1996 की है। कमलनाथ ने तब कहा था-टीम हार रही है तो उसके कप्तान को इस्तीफा दे देना चाहिए।Ó लोकतांत्रिक पीवी. नरसिम्हा राव ने अध्यक्ष पद छोड़ा। सीताराम केसरी अध्यक्ष बने। पी. चिदंबरम इस समय चुप हैं। कमलनाथ अपना कहा भूल गए हैं। पीवी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व में जो हार हुई थी वह इतनी बुरी नहीं थी, जितनी कि मां-बेटे के नेतृत्व में हुई है। 2014 की पराजय के बाद ऐसी मांग किसी ने नहीं उठाई। सिर्फ चिदंबरम ने एक संभावना व्यक्त की। कांग्रेस कार्यसमिति ने उस पर विराम लगा दिया है। इतना ही नहीं हुआ है। यह इस बात की सूचना है कि कांग्रेस के लोकतांत्रिक बनने की राह अंधे मोड़ पर अटक गई है।  कांग्रेस इसे राजनीतिक विवेक के अवसर रूप में बदल सकती थी। अगर कांग्रेस इसे समझे तो उसे असली गांधी से सीखना होगा और नकली गांधी का परित्याग करना होगा।
-दिल्ली से रेणु आगाल

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