मन की आंखें हजार होती हैं
17-Oct-2015 08:21 AM 1235006

रवींद्र जी के पिता अलीगढ़ में आयुर्वेदाचार्य थे। रवींद्र जी जन्म के समय ही दृष्टिहीन थे। उनके परिवार के मित्र मोहनलाल आंखों के प्रसिद्ध डॉक्टर थे। वह जब बाल रवींद्र की आंखों का ऑपरेशन करने गए तो उन्होंने घर वालों को बता दिया कि बालक की दृष्टि कमजोर है और कभी ठीक नहीं होगी। रवींद्र महज पांचवीं तक स्कूल जा पाए, इसके बाद घर पर अपने भाई से सुन-सुन कर उन्होंने पढ़ाई की। लेकिन उनमें हीन भावना कभी नहीं आई। वे दोस्तों के साथ अंताक्षरी खेलते, अपना लिखा गाना गाते। इसके बाद परिवार वालों के कहने पर किस्मत आजमाने कोलकाता चले गए। कोलकत्ता में उन्होंने संगीत की शिक्षा ली और बचे वक्त में महफिलों में गाना गाया। वहीं हिंदी फिल्म निर्माता राधेश्याम झुनझुनवाला से उनकी मुलाकात हुई और उनका हौसला पा कर उन्होंने मुंबई की फिल्मी दुनिया में कदम रखा। उन्होंने कभी किसी से दृष्टिहीनता को लेकर शिकायत नहीं की और ना ही अपने लिए किसी खास चीज की मांग की। वह मानते थे कि अगर आप अपना काम जानते हैं, तो शारीरिक अपंगता कभी आपके आड़े नहीं आती।
सन 1974 में आई चर्चित फिल्म चोर मचाए शोर का संगीत बहुत लोकप्रिय हुआ था। सिप्पी साहब रवींद्र जैन से कुछ अलग पैपी किस्म का काम चाहते थे। फिल्म के नायक शशि कपूर और सिप्पी साहब को रवींद्र जी जो भी धुन सुनाते, वो रिजेक्ट कर देते। रवींद्र जी खीझ गए। मन बना लिया कि फिल्म छोड़ देंगे। जब वह सिप्पी जी से फिल्म छोडऩे की बात करने गए, तो उन्होंने कहा, जो तुम्हारे दिल में है, वो धुन सुनाओ। रवींद्र जी ने बेमन से ले जाएंगे, ले जाएंगे, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे को गुनगुना दिया, यह सोच कर कि वह फिर से खारिज कर दिए जाएंगे। पर यह धुन सुन कर शशि कपूर और सिप्पी साहब उछल पड़े और बोले यही तो चाहिए था हमें। इस फिल्म के बाद रवींद्र जी का नाम अग्रणी संगीतकारों की फेहरिस्त में आ गया। रवींद्र जी लता मंगेशकर की आवाज के पुजारी थे। उनका कहना था कि इतनी पवित्र और सधी हुई आवाज और किसी की है ही नहीं। लता जी ने उनकी फिल्म लोरी का गाना जो दर्द दिया तुमने गाया। लता जी यह सुन कर हतप्रभ रह गई कि रवींद्र जी ने कभी शास्त्रीय संगीत की तालीम नहीं ली। उनसे खुश हो कर लता जी ने अपनी फीस के तीन हजार में से दो हजार रुपये उन्हें लौटा दिए। यह फिल्म रिलीज नहीं हो पाई, इसलिए यह गाना भी नहीं चला। इसके बाद उन्हें कई और मौके मिले। राजश्री प्रोडक्शंस की फिल्म सौदागर में रवींद्र जी तेरा मेरा साथ रहे गवाना चाहते थे, पर लता जी अत्यंत व्यस्त थी। आखिरकार उनका समय मिला। रवींद्र जी ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था, रिकॉर्डिंग से ठीक पहले मुझे टेलीग्राम मिला कि मेरे पिता का अलीगढ़ में देहांत हो गया है। मैं पशोपेस में था। अलीगढ़ जाने का मतलब था, रिकॉर्डिंग रद्द कर देना। मैंने सोचसमझ कर यह कठोर निर्णय लिया कि मैं रिकॉर्डिंग करूंगा, इसके बाद अलीगढ़ जाऊंगा। इस रिरेकॉडिंर्ग के दौरान मैं भीतर रो रहा था, उम्मीद नहीं थी कि वह गाना इतना अच्छा बन पड़ेगा। रवींद्र जी को काम के दौरान हंसी-ठिठोली पसंद नहीं थी। वे बड़े से बड़े गायक को टोक देते थे। लेकिन उनकी खुशमिजाजी का जिक्र भी उनके साथ काम करने वाला हर कोई करता था। दो जासूस का संगीत देते समय रवींद्र जैन ने फिल्म के हीरो राज कपूर से गुजारिश की थी कि वह कभी उनके साथ भी काम करना चाहेंगे। राज जी जब उनसे मिलते,कहते-आपको कहने की जरूरत नहीं है। हम खुद गुणीजन के पास आएंगे। राम तेरी गंगा मैली से पहले राज कपूर ने रवींद्र जैन को दिल्ली में एक शादी में एक राधा-एक मीरा गाते सुना, तो तुरंत उनके हाथ में सवा रुपये रखते हुए कहा, अब यह गाना मेरा हो गया। इस तरह से वे राम तेरी से जुड़े और हिना फिल्म की भी धुन बनाई। रवींद्र जैन का भक्ति संगीत से भी गहरा नाता था। उन्होंने 1980 के दशक में आशा भोसले के एल्बम ओम नमो शिवाय के लिए संगीत तैयार किया, जिसमें भगवान शिव पर आठ भजन थे। 1990 के दशक में एक एल्बम रिलीज हुआ था गुरु वंदना। इसमें कुल सात भजन थे, जिसमें तीन भजन रवींद्र जी ने गाए थे। इसके अलावा उन्होंने कई लोकप्रिय जैन भजन बनाए और गाए। इस कड़ी में रवींद्र जैन का सबसे बड़ा काम है रामानंद सागर के धारावाहिक रामायण में संगीत निर्देशन और गायन। जो लोग फिल्में नहीं देखते थे या फिल्मी गाने नहीं सुनते थे, वे भी इस सीरियल की वजह से रवींद्र जैन के प्रशंसक बन गए। रामानंद सागर के धारावाहिक श्रीकृष्ण में भी रवींद्र जैन द्वारा दिया संगीत काफी लोकप्रिय हुआ। उन्होंने इसके अलावा भी कई धार्मिक धारावाहिकों में संगीत दिया। फिल्मों के अलावा अपने शास्त्रीय नृत्य के लिए विख्यात हेमा मालिनी से भी रवींद्र जैन का गहरा नाता था। यह रिश्ता शुरू हुआ था हेमा मालिनी के टीवी सीरियल च्नुपुरज् से। इस सीरियल के लिए रवींद्र जी ने कुछ सेमी-क्लासिकल गाने बनाए थे। हेमा मालिनी और रवींद्र जैन के ये साथ बाद में भी बना रहा। हेमा जी की कई नृत्य-नाटिकाओं-महालक्ष्मी, दुर्गा, नृत्य मालिका, रामायण, कृष्ण बलराम और राधा कृष्ण के लिए रवींद्र जी ने संगीत तैयार किया। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, सच कहूं तो मुझे अपने साथ के लोगों की तरह कभी भी संघर्ष नहीं करना पड़ा। मेरे गुरुजी ने मुझे अपने घर में रखा था। वह मेरा बहुत ख्याल रखते थे। जिस दिन मैं बांबे पहुंचा, उस दिन मुझे एक निजी आयोजन में गाना था। फिल्म इंडस्ट्री में नई प्रतिभा की तलाश कर रहे लोगों तक पहुंचने में उससे मुझे बहुत मदद मिली। पहली फिल्म मिलने से पहले तक मैं मुशायरों और कार्यक्रमों में जाकर अच्छे पैसे कमाने लगा था।

-मुंबई से महेश

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