नेपाल में विभाजन की नींव
17-Oct-2015 08:12 AM 1234798

नेपाल कभी किसी उपनिवेश के अधीन नहीं रहा। अंग्रेजों से लड़ाई में इस देश को भले कुछ हिस्से गंवाने पड़े, लेकिन यहां के लोगों ने अपनी आजादी पर आंच नहीं आने दी। यह मधेसियों के संघर्ष की बदौलत हो सका। मगर, नए संविधान में अपने लिए उपेक्षा और षड्यंत्र का भाव देखकर वही मधेसी अपनी ही सरकार से लडऩे पर आमादा हैं। इन लोगों ने कई अंचलों में सरकारी कार्यालयों के बोर्ड से नेपाल सरकार मिटाकर मधेस सरकार लिख दिया है। इस लड़ाई से नेपाल में विभाजन की नींव पडऩे लगी है। नए संविधान के विरोध में आंदोलन की शुरुआत होते ही मधेसियों ने नेपाल के कपिलवस्तु जिले में टेलीकॉम, विद्युत प्राधिकरण और कृष्णानगर नगर पालिका समेत कई सरकारी कार्यालयों पर मधेस सरकार का बोर्ड टांग दिया है। यह बोर्ड पर बदले गये अक्षरभर नहीं हैं बल्कि नेपाल का भूगोल बदलने की आम भावना है। युवाओं का एक दल हर सरकारी दफ्तर पर मधेस सरकार का बोर्ड टांगने की तैयारी कर रहा है। संभव है कि मधेसी अपने हित के अनुसार संविधान बनाने की भी पहल कर दें। उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के बढऩी सीमा के पार कृष्णानगर में प्रवेश करते ही यह छटपटहाट साफ महसूस की जा सकती है। मधेसी आंदोलन की अगुवाई कर रहे संघीय समाजवादी फोरम नेपाल पार्टी के इलाकाई सांसद अभिषेक प्रताप शाह और तराई मधेस लोकतांत्रिक पार्टी के पूर्व सांसद व पूर्व मंत्री ईश्र्वर दयाल मिश्र समेत कई दिग्गज जन-जन को जोडऩे में लगे हैं।
अगर नागरिकता, राज्यों के स्वरूप और विदेश में शादी के मसले पर नेपाल सरकार अपने नए संविधान पर ही कायम रही तो मधेस के आक्रोश से बड़ी क्रांति जन्म लेगी। अभिषेक प्रताप शाह ने आंदोलन को गति देने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहल की है। वह नैतिक समर्थन के लिए भारतीय सांसदों व मंत्रियों के साथ ही कई संगठनों से संवाद बना रहे हैं। माओवादी आंदोलन के दौरान कृष्णानगर इलाके में बहुत ही खराब माहौल था। कुछ वर्ष पहले माओवादियों के खौफ से पूर्व मंत्री ईश्वर दयाल मिश्र समेत कई नेताओं को सुरक्षा तलाशनी पड़ी थी, लेकिन मधेस के मुद्दे पर इन सबकी एका पहाडिय़ों की चिंता का सबब है। कृष्णानगर से २० किलोमीटर अंदर हाइवे पर जाने के बाद चनरौटा है। यह पहाड़ और तराई का सीमांकन करता है। चनरौटा में मधेसी एका से इतनी बेचैनी बढ़ी है कि हर दिन भारत विरोधी गतिविधि जारी है।
मेची से महाकाली तक मधेस
नेपाल १४ अंचलों और ७५ जिलों में विभक्त है। इनमें तराई के २२ जिलों में नेपाल की ५१.७ फीसद आबादी है। पश्चिम बंगाल की सीमा पर तराई के झापा जिले से लेकर उत्तराखंड की सीमा पर कंचनपुर जिले तक करीब ११५५ किलोमीटर की दूरी में मधेसी अपने नए राष्ट्र की परिकल्पना में जुटे हैं। मेची नदी से लेकर महाकाली तक इसकी सरहद है। झापा, मोरंग, सुनसरी, सिरहा, रौतहट, मोहतरी, धनुषा, बारा, सरलाही, चितवन, दांग, नवलपरासी, कपिलवस्तु, रुपनदेही, बांके, बरदिया, कैलाली और कंचनपुर जैसे जिले मधेसी बहुल हैं।
विचित्र है कि नेपाल के नेतागण इसका आरोप भारत पर मढ़ रहे हैं और ऐसा माहौल बनाया जा रहा है मानो भारत नेपाल को गुलाम बनाने की मानसिकता रखता हो। माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख प्रचंड ने कह दिया कि सुना है भारत हमारी रसद, तेल आदि की आपूर्ति रोक रहा है। हम मोटर के बजाय साइकिल पर चल लेंगे लेकिन उनके तलवे नहीं चाटेंगे। यह नेपालियों के स्वाभिमान का प्रश्न है। हम भारत की जी-हुजूरी नहीं कर सकते। बड़ी विचित्र स्थिति है। भारत ने कभी नहीं कहा कि वह किसी प्रकार की आपूर्ति बंद कर रहा है। न भारत की ओर से कभी नेपाल के स्वाभिमान को चोट पहुंचाने की कोशिश हुई। फिर प्रचंड ने ऐसा क्यों कहा? प्रचंड ऐसा बयान देने वाले अकेले नेता नहीं हैं। भारत-विरोधी माहौल इतना उग्र कर दिया गया है कि जो नेता कल तक भारत के समर्थक माने जाते थे वे भी मुखालफत में बोलने लगे हैं। उदाहरण के लिए, नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के नेता माधव कुमार नेपाल ने कह दिया कि हम पड़ोसी से अच्छे संबंध चाहते हैं, पर यदि कोई हमसे जी-हुजूरी चाहता है तो नेपाल यह करने वाला नहीं। वास्तव में काठमांडो से लेकर पूरे पहाड़ के इलाकों में भारत-विरोधी भावनाएं भड़का दी गई हैं।
यह हर दृष्टि से दुर्भाग्यपूर्ण है। समस्या नेपाल की अंदरूनी है। नेपाल के नेता अपनी विफलताओं का ठीकरा भारत के सिर फोडऩा चाहते हैं। अगर संविधान में दोष हैं, उनकी प्रक्रिया में दोष हैं, उनके विरुद्ध आंदोलन से भारत की सीमा पर समस्याएं हो रहीं हैं, मधेसी भारत से मध्यस्थता की मांग कर रहे हैं तो भारत इसकी अनदेखी नहीं कर सकता। भारत का विरोध करने वाले राजनीतिक भूल रहे हैं कि भारत मधेसियों की भावनाओं को नकार नहीं सकता, खासकर तब जब उनकी मांगें वाजिब हों। श्रीलंका के तमिलों की समस्या जिस तरह भारत की समस्या हो जाती है उससे भी कहीं ज्यादा परिमाण में मधेसियों की समस्या भारत की समस्या हो जाती है। हमारी लाखों बेटियों की ससुराल मधेस में है। वहां की लाखों बेटियां हमारे यहां शादी करके आर्इं। यह कई पुश्तों से चल रहा है। इस तरह रोटी-बेटी का रिश्ता है। भारत कैसे चुप रह सकता है?
-मार्केण्डेय तिवारी

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