02-Oct-2015 10:11 AM
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सऊदी अरब में मक्का क्रेन हादसे में मरे हज यात्रियों का जख्म अभी भरा भी नही था की वही पर भगदड़ ने सैकड़ों लोगों की जिंदगी पैरो तले रौंद दिया। मस्जिद के आसपास लाशों का ढेर लगा था।

हालात ये थे कि लोग अपने परिजन की स्थिति पता करने की कोशिशें करते रहे। कोई अस्पताल में चक्कर लगाता रहा तो कोई अपने परिजन को तलाशता रहा। इस हादसे में 769 हज यात्रियों की मृत्यु हो गई और करीब 800 लोग घायल हो गए। मरने वालों में 45 भारतीय हाजी शामिल थे। पिछले दो दशकों में मक्का में होने वाला यह सबसे भीषण हादसा है। मुस्लिम धर्मावलम्बियों के लिए हज यात्रा सबसे पुण्य माना जाता है। हर साल लाखों की तादाद में यात्री हज करने जाते है ताकि पुण्य कमा सके। लेकिन अफसोस की बात है की हर साल छोटे बड़े हादसे सेकड़ों लोगों की हंसती मुस्कुराती जिंदगी पर ग्रहण लगा जाते है। कभी भगदड़ तो कभी मशीन का गिरना कभी दूसरे हादसे।
हादसा उस समय हुआ जब लाखों की तादाद में लोग ब्रिज पर पत्थर फेंके जाने की दिशा में जा रहे थे। ठीक इसी समय दूसरे लोग भी इसी रास्ते पर सामने से आ गए। अचानक अफरातफरी मच गई। लोग सुरक्षित जगह पहुंचने के लिए एक-दूसरे के ऊपर चढऩे लगे। लोग पुल से नीचे गिर रहे थे। वहां अधिकांश लोग नाइजीरिया, नाइजर, चाड और सेनेगल के थे। इनमें बच्चे और महिलाएं भी शामिल थीं। लोग अल्लाह का नाम लेकर मदद मांग रहे थे, लेकिन उनकी मदद करने वाला कोई नहीं था।
सवाल यह भी उठता है की लाखों हज यात्रियों के लिए मक्का जैसे बड़े तीर्थ स्थल पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किये जाते है। बीते ढाई दशक में कई हादसों ने चार हजार से भी अधिक हज यात्रियों की जिंदगी पर ग्रहण लगा दिया है। घायलों का आंकड़ा इससे कई गुना अधिक है। ऐसा नहीं है की हादसे सिर्फ मक्का में ही होते है। दुनियाभर के तमाम देशों में धार्मिक आयोजनों व तीर्थ स्थानों पर हादसे होते रहते हैं लेकिन मक्का में एक स्थान पर लाखों की तादाद में लोग एकत्रित होते है। ऐसे में स्थानीय प्रशासन को ऐसा बंदोबस्त करना चाहिए की भगदड़ का संदेह ही न रहे। मक्का में सबसे अधिक मौत शैतान को पत्थर मरने की रस्म अदा करने के समय ही होती है।
जाहिर सी बात है प्रशासन को स्थिति को पूर्व भांपकर सुरक्षा के कड़े इंतजाम पहले ही करना चाहिए जिससे की ऐसे हादसे न हो। पत्थर मारने की दौड़ में भीड़ को बेकाबू होने का मौका ही क्यों दिया जाता है? प्राचीन जमाने की बात जाने दी जाए, लेकिन आज के दौर में संसाधन बढ़ रहे है तो ऐसे हादसे होना प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर कई सवालिया निशान खड़े करते है। वर्ष 2006 में भी शैतान को पत्थर मारने के दौरान 346 जिंदगियां मौत के मुंह में समां गई थी जिसमे 51 भारतीय थे। इसी महीने में क्रेन हादसा हुआ जिसमे 11 भारतीयों समेत 111 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी। ऐसे विराट आयोजनों को शांतिपूर्ण संपन्न कराने में सरकार और प्रशासन की अहम जिम्मेदारी होती ही है लेकिन श्रद्धालुओं की लापरवाही को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
हमेशा देखा जाता है की भगदड़ मचने का मुख्य कारण लोगों का उतावलापन होता है। पहले पत्थर मारना, पहले दर्शन करना भगदड़ की वजह बनता है। फिर चाहे वह जोधपुर में मेहरानगढ़ का चामुंडा देवी मंदिर का हादसा हो या फिर हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर का हादसा। ईद के एक दिन पहले हज में मची भगदड़ ने सेकड़ों परिवारो के घरों में त्यौहार का रंग फीका कर दिया । ओंझल हो गए है आंखों के वह सपने जो ईद मानाने को लेकर भगदड़ से एक दिन पहले मृत लोगों के परिवार वालों ने देख रखे थे। थम गई वह मुस्कान जो मासूम बच्चों ने दावत को लेकर अपने होंठो पर सजाई थी। प्रशासनिक अव्यवस्थाओं और लोगों की लापरवाही के चलते सेकड़ों जिंदगियां कुर्बान हो गई।
-अरविंद नारद