नौकरशाही का मोदी मॉडल दिल्ली में नाकाम
17-Oct-2015 08:06 AM 1234773

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार नौकरशाहों से स्पष्ट तौर पर कह रखा है कि उन्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है और अगर उनके वरिष्ठ अधिकारी या संबंधित मंत्री उनकी राह में रोड़ा अटका रहे हों तो वो सीधे उनसे मिल सकते हैं। ये नीति खतरनाक है। प्रोटोकॉल का मुद्दा तो है ही, इससे नौकरशाहों में एक तरह के अंसतोष और भ्रम की स्थिति बन गई है। मोदी की नौकरशाहों के लिए इस हेल्पलाइनÓ ने खास कुछ नहीं बदला है न ही प्रधानमंत्री की हेल्पलाइनÓ या हॉटलाइनÓ का फायदा उठाने वाले नौकरशाहों की संख्या बहुत अधिक है।
दरअसल, मोदी इन नौकरशाहों से निजी वफादारी चाहते हैं। उनकी ये नीति शायद गुजरात जैसे राज्यों में सफल भी रही है, लेकिन भारत जैसे विशाल देश में ये कामयाब नहीं हो सकती। यहां नौकरशाही का काम करने का अपना अलग अंदाज है और वो अपनी रफ्तार से काम करती है। प्रधानमंत्री मोदी उनसे कुछ ज्यादा ही उम्मीद कर रहे हैं। ऐसे संकेत हैं कि नौकरशाही इससे चिंतित है और राजनीतिक दांवपेच में नहीं फंसना चाहती। यानी मोदी का नौकरशाहों के जरिए कामकाज में तेजी लाने का दांव असर नहीं ला रहा है। नौकरशाह सतर्क हैं और संकेत हैं कि कार्यों की गति धीमी पड़ रही है।
हालांकि मोदी ने नौकरशाही को ज्यादा ताकतवर बनाने की बात कही है। लेकिन जमीनी हकीकत पर कुछ अधिक नहीं दिखता कि नौकरशाहों ने मोदी की थ्योरी को अपना लिया है। प्रधानमंत्री कार्यालय के मामले में भी यही स्थिति है। केंद्रीय सचिवालय ने हाल ही में सुझाव दिया है कि काम न करने वाले नौकरशाहों की सेवा समाप्त कर दी जानी चाहिए। हालांकि ये निर्णय लेना प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है, लेकिन ये जरूरी नहीं कि पूरी नौकरशाही उनके कहे पर चलने लगे और उनके कहे मुताबिक निर्णय ले। सही मायनों में भारत का नौकरशाह वर्ग आज कुछ डरा हुआ सा है और ये बताता है कि क्यों भारत की ग्रोथ स्टोरी के लिखने के लिए खास कुछ नहीं है। सवाल ये है कि अगर इन सुझावों को मान लिया जाए तो क्या इनका नौकरशाही पर सकारात्मक असर पड़ेगा? नौकरशाही को विश्वास में लिए बिना सरकार की नीतियों और योजनाओं को परवान चढ़ाना लगभग नामुमकिन है। व्यावहारिकता ये है कि नौकरशाह ख़ुद राष्ट्रीय हित के एजेंडे को लें और सरकार की योजनाओं को बिना किसी डर और पक्षपात के लागू करें। लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। अभी मोदी सरकार नौकरशाहों को प्रोत्साहित करने में इस कदर व्यस्त है कि कभी-कभी तो वो मंत्रियों की भी परवाह नहीं कर रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने केंद्र में भी गुजरात मॉडल को ही लागू किया है, जहां उन्होंने अपने 13 साल के मुख्यमंत्रित्व काल में अपने मंत्रियों के मुकाबले नौकरशाहों पर ज्यादा यकीन किया। यहां उन्होंने नौकरशाहों के प्रति सख्त रुख दिखाया है। इसके दो उदाहरण हैं। सुजाता सिंह को विदेश सचिव पद से चुपचाप हटा दिया गया, जबकि एस जयशंकर को उनके रिटायरमेंट से सात महीने पहले सुजाता सिंह की जगह दे दी गई। इसी तरह अरविंद मायाराम का रातों रात वित्त सचिव पद से तबादला हो गया और कुछ ही हफ्तों के अंतराल में उनके तीन तबादले हुए। इसमें दो राय नहीं कि मोदी सरकार में विरोधी आवाजों की बहुत गुंजाइश नहीं है। शायद यही वजह है कि मोदी सरकार के 15 महीने के कार्यकाल में ही गृह मंत्रालय में तीन गृह सचिव नियुक्त हो चुके हैं।

नया ड्राइवर, गाड़ी पुरानी
आज के सरकारी बाबुओं से बातचीत के बाद एक पुराने गाने की एक पंक्ति याद आती है, गाड़ी का ये मॉडल पुराना लगता है। देश की ब्यूरोक्रेसी उस खटारा गाड़ी की तरह है जिसका नरेंद्र मोदी की शक्ल में ड्राइवर तो नया है लेकिन गाड़ी अब भी पुरानी है। नरेंद्र मोदी कुछ अफसरों की मदद से सरकार चला रहे हैं जो उनकी भूल है। अगर मोदी नाकाम हुए तो बाबुओं के कारण होंगे लेकिन इसके जिम्मेदार वो खुद होंगे। पिछले साल बदलाव के मुद्दे पर सत्ता में आई मोदी सरकार को नौकरशाही और राजनीति में उलझी हुई बताते हुए अमेरिका के एक शीर्ष थिंक टैंक ने कहा है कि हर क्षेत्र में उत्साह नहीं, बल्कि सतर्कता दिखाई देती है। वाशिंगटन के हडसन इंस्टीट्यूट ने एक रिपोर्ट मोदी वन ईयर ऑन में कहा कि बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार को भारतीयों की नई पीढ़ी वोट देकर सत्ता में लाई थी। इस रिपोर्ट में कहा गया कि भारत के नए मतदाता महत्वाकांक्षी हैं और वे तत्काल संतुष्टि और परिणाम चाहते हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह बदलाव और सुधार के मुद्दे पर आई सरकार नौकरशाही और राजनीति में उलझ गई है। रिपोर्ट में कहा गया, हर क्षेत्र में उत्साह नहीं, बल्कि सतर्कता दिखाई दे रही है। चाहे वह अर्थव्यवस्था, रक्षा और स्वास्थ्य का क्षेत्र हो या व्यापार एवं निवेश, ऊर्जा और शिक्षा एवं श्रम का। रिपोर्ट में कहा गया, (फिर भी मोदी सरकार के समक्ष बड़े अवसर मौजूद हैं) नरेंद्र मोदी के लिए निजी तौर पर अभी भी भारी लोकप्रिय समर्थन है, कॉरपोरेट जगत अभी भी बदलाव को लेकर आशान्वित है, वैश्विक माहौल भी सहायक है और भारत का जनसांख्यिकीय लाभ उसके पक्ष में है। इसमें यह भी कहा गया कि मोदी के समर्थक भी सकारात्मक परिणामों के लिए बेताब हैं। नौकरशाही को दुरुस्त करने के लिए मोदी सरकार एक ऐसी योजना पर काम कर रही है, जो सुस्त और कामचोर अफसरों पर भारी पड़ सकती है।
-राजेश बोरकर

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