17-Oct-2015 08:01 AM
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गृह निर्माण मंत्री प्रकाश मेहता ने बताया कि सरकार ने लंबे से लटकी पड़ी परियोजनाओं को विकसित करने के लिए शिवशाही पुनर्वसन प्रकल्प को देने का फैसला किया है। हाल ही में सरकार ने

एसआरए से शिवशाही पुनर्वसन प्रकल्प को 500 करोड़ रूपए देने का निर्देश दिया था। मेहता ने कहा कि हमने एसआरए योजना में तेजी लाने का फैसला किया है और साथ ही सरकार ने एसएसपीपी को सक्रिय कर दिया है। इसके अलावा एसएसपीपी के स्वयं की परियोजनाओं को भी पुनर्विकसित करने का काम करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार बिल्डरों से पूछेगी कि अगर वे परियोजना को पुनर्विकसित करने वाले हैं तो एक समयबद्ध कार्यक्रम तैयार करें। अगर किसी भी तरह की वित्तीय दिक्कत आएगी तो निर्धारित अवधि में परियोजना को पूरा करने के लिए एसएसपीपी के साथ उनका गठजोड़ किया जाएगा।
पूरी नहीं हो सकीं कई परियोजनाएं
बता दें कि पिछले दो दशक में एसआरए ने 24 फीसदी परियोजनाओं को पूरा किया गया है। तब से 2,395 परियोजनाओं को मंजूरी मिली है। इसमें से केवल 597 योजनाओं का लागू किया गया है। साथ ही 1।53 लाख झुग्गी बस्ती में रहने वाले लोगों का पुनर्वास किया है। एसआरए परियोजनाओं का लक्ष्य झोपड़ा वासियों को बेहतर घर मुहैया कराना है, लेकिन एसआरए की योजनाएं मुकदमेबाजी में फंस गईं, नतीजतन कई परियोजनाएं पूरी ही नहीं हो सकीं। दरअसल, मायानगरी मुम्बई के साथ एक बड़ा विरोधाभास अब यह साबित हो गया है कि इस शहर में रहने वाले में से आधे लोग झुग्गी-झोपडिय़ों में रहते हैं। वह भी इस सूरत में कि मुम्बईकरों की सालाना औसत कमाई, देश के बाकी लोगों की तुलना में दोगुनी होती है। कहने का तात्पर्य यह कि इस शहर में जहां एक तरफ धन-दौलत की बारिश होती रही है तो वहीं दूसरी तरफ इसके आधे लोग ऐसी जगहों में अपनी जिंदगी गुजारने पर मजबूर हैं जहां जीने के साधन बहुत ही सीमित मात्रा में होती है और प्राइवेसी नाम की कोई चीज नहीं होती है।
मुम्बई सिर्फ देश में ही पूरे विश्व का इकलौता शहर है जहां पर झोपड़ों में रहने वालों की संख्या बाकी लोगों की तुलना में सबसे अधिक है। अपने देश के दूसरे शहरों की बात करें तो दिल्ली में 18.9 प्रतिशत, कोलकाता में 11.72 प्रतिशत और चेन्नई में 25.6 प्रतिशत लोग झोपडिय़ों में रहते हैं। जबकि मुम्बई में 54.1 प्रतिशत लोग झोपड़ों में रहने को विवश हैं। इसमें सबसे ज्यादा सोचनीय तथ्य यह है कि इन 54.1 प्रतिशत लोग मुम्बई की महज 6 प्रतिशत जमीन पर जीवन-यापन कर रहे हैं। यानि कि इन झोपड़ों की सघनता कितनी ज्यादा इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। इसे दूसरे शब्दों में इस तरह से समझा जा सकता है मुम्बई में कुल 1 करोड़ 19 लाख लोग रहते हैं जिसमें 65 लाख लोग 13 लाख झोपड़ों में रहते हैं। मेट्रोपोलिटन रीजन (कोलाबा से मीरा-भाईंदर और नवी मुम्बई) में मनपा की हद (कोलाबा से दहिसर और मुलुंड से मानखुर्द तक) सिर्फ 10 प्रतिशत का है, मगर इसमें कुल आबादी के 63 प्रतिशत लोग रहते हैं। उल्लेखनीय है कि मुंबई हवाई अड्डे के निकट झुग्गी पुनर्वास परियोजना दोबारा पटरी पर आ गई है। दरअसल मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अधिकारियों को पुनर्वास प्रक्रिया में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं। मुंबई हवाई अड्डे की जमीन पर रहने वाले 70,000 से अधिक परिवारों के पुनर्वास कार्य का विरोध और कानूनी दांव-पेच में अटका हुआ था। पहले चरण में मुंबई हवाई अड्डे के पूर्वी छोड़ कुर्ला क्षेत्र में रहने वाले 17,000 परिवारों का पुनर्वास होगा। पुनर्वास पाने के हकदार परिवारों का पता लगाने के लिए दो साल पहले एक सर्वेक्षण शुरू हुआ था लेकिन यह पूरा नहीं हुआ। राज्य सरकार के एक अधिकारी ने बताया कि सबसे पहले यह सर्वेक्षण पूरा किया जाएगा। बाकी 60,000 परिवारों का भाग्य अब भी लटका हुआ है क्योंकि अभी यह स्पष्टï नहीं है कि कौन सी कंपनी उनके लिए पुनर्वास का काम करेगी।
-बिन्दु माथुर