17-Oct-2015 08:03 AM
1234808
बिहार विधानसभा चुनाव के टिकट बंटवारे में राज्य की आधी आबादी की वाजिब हिस्सेदारी भी प्रमुख दलों ने छीन ली है। पिछले विधानसभा की तुलना में अधिक टिकट की बात तो दूर, पार्टियों ने

इस बार सीटिंग महिला विधायकों का भी टिकट काट दिया है। वर्तमान विधानसभा में 14 फीसदी महिला विधायक हैं। वहीं, इस बार प्रमुख दलों ने सिर्फ 10 फीसदी महिलाओं को टिकट दिया है। पिछली बार प्रमुख दलों के टिकट का ये आंकड़ा करीब 18 फीसदी तक था। भारत में महिलाओं की स्थिति और नीति नियामक संस्थाओं में उनके प्रतिनिधित्व का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि देश में कुल 4,896 सांसदों और विधायकों में महिला प्रतिनिधियों की संख्या मात्र 418 है, जो केवल नौ फीसदी है।
हम गर्व कर सकते हैं। देश में सबसे अधिक महिला विधायकों की भागीदारी बिहार में है। दिल्ली की तुलना में दोगुने से भी अधिक। लेकिन वर्तमान में जिस तरह दलों ने टिकट बांटे हैं, उससे हम ज्यादा समय तक इस पर गर्व नहीं कर सकेंगे। लोकसभा और विधानसभा में 33 फीसदी महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक अभी लंबित है। 108 वें संविधान संसोधन विधेयक को राज्यसभा ने 9 मार्च 2010 को पास कर दिया। लोकसभा में इस पर अभी तक विवाद चल रहा है। समाजवादी पार्टी और राजद लगातार इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं। जहां तक बिहार का सवाल है तो 2005 के विधानसभा के दो चुनावों में 1990 की तुलना में महिलाओं का वोट 9 फीसदी गिरा। तब कानून-व्यवस्था प्रमुख मुद्दा था। फरवरी 2005 में महिलाओं के मत प्रतिशत में 11 फीसदी गिरावट आई। पर 2010 में महिलाओं का मत प्रतिशत पहली बार पुरुषों से ज्यादा रहा। भाजपा-जदयू गठबंधन की वापसी में इस शांत लहर (साइलेंट वेव) की मुख्य भूमिका मानी गई। 34 महिलाएं चुनाव जीतीं। इस चुनाव में पुरुष मतदाताओं का मतदान प्रतिशत 51.1 रहा तो महिलाओं का मतदान प्रतिशत 54.5 फीसदी। महिलाओं ने बूथों पर ही दबंगई नहीं दिखाई चुनावी मैदान में भी अपना दबदबा बढ़ाया। 2010 में सर्वाधिक 307 महिला प्रत्याशी थीं। 34 जीतीं। 1957 में भी 34 महिलाएं विधानसभा पहुंची थीं। उम्मीदवारी और जीत के अनुपात को देखें तो यहां भी महिलाओं ने पिछले चुनाव में पुरुषों को पीछे छोड़ दिया है। बिहार कांग्रेस महिला अध्यक्ष अमिता भूषण कहती हैं कि विधायिका में महिलाओं को उचित भागीदारी मिलनी चाहिए। कांग्रेस तो हमेशा महिला आरक्षण विधेयक के समर्थन में रही है। अभी बिहार की जो परिस्थिति है उसमें भी कांग्रेस ने 41 में 5 महिलाओं को टिकट दिया है। वहीं भाजपा महिला मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष निवेदिता सिंह कहती हैं कि महिलाओं को संसद और विधानसभा में 33 फीसदी आरक्षण मिलना चाहिए। लेकिन इसके लिए लाया गया संशोधन विधेयक कुछ राजनीतिक पार्टियों के कारण ठंडे बस्ते में चला गया है। इस कारण से चुनाव में महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पर रहा है। रालोसपा महिला मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष यशोदा कुशवाहा कहती हैं कि रालोसपा में महिलाओं की उपेक्षा हुई है। पार्टी ने दो टिकट दिया है। सक्रिय महिला कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज किया है। सेंटर फॉर सोशल रिसर्चÓ की निदेशक रंजना कुमारी कहती हैं, पुरुष राजनेता नहीं चाहते हैं कि महिला आरक्षण बिल पास हो। यह उनकी राजनीतिक प्राथमिकता में नहीं है। वे कहती हैं, और जिला स्तर पर महिलाओं के बेहतर काम करने से उन पर दबाव बढ़ा दिया है। वहां महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है। इससे राष्ट्रीय स्तर के पुरुष नेताओं को भय हो गया है कि यदि महिलाओं को मौका दिया गया तो वो पुरुषों से अच्छा काम करेंगी और उनके हाथों से सत्ता निकल जाएगी।
चुनावी मैैदान में स्वीपर से फैशन डिजाइनर तक
बिहार विधानसभा के चुनावों में समाज के विभिन्न वर्गों से संबंध रखने वाले उम्मीदवार भाग्य आजमा रहे हैं। जहां तक महिलाओं का संबंध है, उनमें भी अत्यधिक विविधता देखने को मिल रही है। इनमें मुसहर समुदाय से संबंध रखने वाली मजदूर और स्वीपर उम्मीदवार से लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त फैशन डिजाइनर और कालेज अध्यापिका उम्मीदवार तक शामिल हैं। दरभंगा (देहाती) से माक्र्सी (लेनिनवादी) पार्टी की उम्मीदवार शनीचरी देवी मुसहर समुदाय से संबंध रखने वाली एक खेत मजदूर हैं जबकि राम नगर से भाजपा प्रत्याशी महादलित समुदाय की 65 वर्षीय भगीरथी देवी हैं और वह पश्चिमी चंपारण जिले में नरकटियागंज के एक ब्लाक डिवैल्पमैंट कार्यालय में स्वीपर का काम करती थीं। तीन बार विधायक रह चुकी मात्र पांचवीं कक्षा पास भगीरथी देवी इस बार फिर अपना भाग्य आजमा रही हैं। उनका कहना है, अपने कार्यालय में काम करते हुए हमने देखा कि किस प्रकार यहां अपना काम करवाने के लिए आने वाले गरीब लोगों, विशेषकर महिलाओं को, अधिकारियों द्वारा परेशान और अपमानित किया जाता है। यह सब देख कर मुझे बहुत पीड़ा होती थी और उसी दिन हम सोच लिए थे कि राजनीति में जाएंगे और बाबू लोगों को सबक सिखाएंगे।ÓÓ इसी कारण 1980 में नौकरी छोडऩे के बाद से भगीरथी देवी ने नरकटियागंज ब्लाक में महिला संगठन खड़े करने और महिलाओं को घरेलू हिंसा, दलितों पर अत्याचार और पुरुषों के बराबर वेतन के मुद्दे पर जागरूक करना शुरू कर दिया।
-आर.एम.पी. सिंह