02-Nov-2015 09:13 AM
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भारत सरकार द्वारा हाल ही में की गई यह घोषणा कि महिलाएं भी युद्ध-अभियानों में भाग ले सकती हैं, देश के सैन्य हलकों में विस्तृत प्रतिक्रिया का कारण बनी है। पिछले सप्ताह भारतीय वायु सेना की 83-वीं वर्षगांठ के जश्नों के दौरान वायु

सेना के कमांडर अरूप राहा ने भारत सरकार के इस निर्णय के बारे में जानकारी दी थी।
परंपरागत मानसिकता यह है कि बहुत सारे काम महिलाएं नहीं कर सकतीं। पर पुरानी पड़ चुकी इस धारणा के विपरीत महिलाओं ने साबित कर दिया है कि कोई भी काम ऐसा नहीं, जो वे न कर सकें। मगर अब भी कई सेवाओं में उनके प्रति भेदभाव का सिलसिला बना हुआ है। ऐसे में महिला पायलटों को भी लड़ाकू विमान उड़ाने का अवसर देने का वायुसेना का फैसला निस्संदेह सराहनीय है। सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन दिए जाने के फैसले के बाद यह दूसरी महत्त्वपूर्ण पहल है। हालांकि सेना में महिलाएं परिवहन विमान और हेलिकॉप्टर उड़ाती हैं, पर उन्हें लड़ाकू विमान उड़ाने का मौका इसलिए नहीं दिया जाता कि अगर किन्हीं स्थितियों में ये महिला पायलट दुश्मन-देश द्वारा बंदी बनाई गर्इं, तो वह हमारे देश के लिए शर्म का विषय होगा। फिर यह भी कि लड़ाकू विमान उड़ाने के लिए जिस प्रकार की शारीरिक क्षमता की जरूरत होती है, उसे हासिल करने में उनकी सेहत पर प्रतिकूल असर पडऩे की आशंका बनी रहेगी। मगर वायु सेनाध्यक्ष ने कहा है कि जरूरी नहीं कि लड़ाकू दस्ते के हर सदस्य को सीमा के बाहर भेजा जाए, देश के भीतर भी अनेक ऐसे काम हैं, जिनमें इन महिला पायलटों को तैनात किया जा सकता है। फिर, चूंकि वायु सेना का काम तय केंद्रों से संचालित होता है, इसलिए महिलाओं को लड़ाकू विमान उड़ाने का मौका देना खतरनाक काम नहीं माना जा सकता। वायु सेना उनकी तैनाती को लेकर अलग से नियम-कायदे बनाएगी। जाहिर है, इस फैसले से महिला पायलटों का हौसला बढ़ेगा। सेना मुख्य रूप से पुरुषों का महकमा माना जाता रहा है। पर बड़ी तादाद में महिलाओं ने इसमें सेवाएं देकर साबित किया है कि प्रतिरक्षा के मामले में उनका जज्बा कम नहीं। फिलहाल वायु सेना में तेरह सौ से अधिक महिला अधिकारी तैनात हैं, उनमें करीब एक सौ दस को विमान उड़ाने का प्रशिक्षण हासिल है। यों भी लड़ाकू विमान उड़ाने का जो रोमांच होता है, वह सामान्य परिवहन विमान में नहीं होता, इसलिए सेना के लगभग हर पायलट को इसे उड़ाने की इच्छा रहती है। ऐसे में महिलाओं को इससे दूर रखने का कोई औचित्य नहीं। पिछले कुछ सालों में वायु सेना के विमान उड़ाने के प्रति युवाओं में आकर्षण कम हुआ है। यह बात खुद सेना के अधिकारी स्वीकार करते हैं। अब युवा चिकित्सा विज्ञान, प्रबंधन और इंजीनियरिंग आदि की पढ़ाई करने के बाद ऐसे रोजगारों की तरफ अधिक आकर्षित हो रहे हैं, जिनमें जोखिम कम, कमाई अधिक और चमक-दमक वाली जिंदगी जीने का सुख हो। इस लिहाज से भी महिला पायलट वायु सेना की मुश्किलों को आसान करने में मददगार हो सकती हैं। जहां तक शारीरिक दक्षता और कोमल स्वभाव का पक्ष है, अब छिपी बात नहीं है कि जहां कर्तव्य निर्वाह का प्रश्न है, महिलाएं खुद को जरूरत के मुताबिक ढालने से पीछे नहीं हटतीं। वायु सेना प्रमुख ने महिलाओं को लड़ाकू विमान उड़ाने की इजाजत देने का प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय को भेजा है, तो जाहिर है कि उनकी काबिलियत और क्षमता को देखते हुए ही उसकी रूपरेखा तैयार की है।
अरूप राहा ने कहा था- आजकल हमारी महिलाएं हेलीकाप्टर उड़ाती हैं और यात्री समुद्री जहाज़ भी चला लेती हैं। और हम उन्हें लड़ाकू विमानों की पायलट भी बनाएंगे जिससे हमारी युवा महिलाओं को उनकी अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने का अवसर मिलेगा। इस प्रकार, उन भारतीय महिलाओं के लिए नए अवसर पैदा हो जाएंगे जो आजकल वायु सेना से संबंधित जमीनी सेवाओं में इंजीनियरों और हवाई यातायात नियंत्रकों आदि के रूप में काम करती हैं और जो भारतीय वायु सेना में भर्ती सभी सैनिकों का 8.5 प्रतिशत हिस्सा बनती हैं। इस बात के बावजूद, सैन्य विशेषज्ञों ने इस पहल के प्रति कोई खास उत्साह नहीं दिखाया है। अधिकांश सैन्य विशेषज्ञों की राय में भारतीय समाज इस तरह के बदलाव के लिए अभी तैयार नहीं है।
उदाहरण के लिए, एक सैन्य विशेषज्ञ और भारतीय सेना के सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल अशोक मेहता ने कहा-शुरूआत में युद्ध-अभियानों में महिलाओं की भागीदारी का विचार एक बड़े उत्साह का कारण बनता है, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि हमारा भारतीय समाज पश्चिमी समाज जैसा नहीं है। इसलिए इसको अपनाने में थोड़ी बहुत दिक्कत आएगी ही।
-माया राठी