आफत बनी ई-रजिस्ट्री
17-Oct-2015 06:54 AM 1234885

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा भले ही रजिस्ट्री में होने वाले फर्जीबाड़ों पर लगाम लगाने के लिए ई रजिस्ट्री की व्यवस्था पूरे प्रदेश में एक साथ लागू कर दी गई है। लेकिन ई-रजिस्ट्री आम लोगों के लिए सुविधा की जगह आफत बन गई है। लगभग तीन माह बाद भी ई-रजिस्ट्री की व्यवस्था पटरी पर नहीं आ सकी। परेशान लोग अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन कोई उन्हें संतोषजनक जवाब भी नहीं दे रहा। दरअसल ई-रजिस्ट्री से न तो सर्विस प्रोवाइडर खुश हैं, न ही जमीन बेचने वाले तथा खरीदने वाले और न ही विभाग के अधिकारी। जमीन माफिया के काकस के सामने सब फीके पड़े हैं। यही नहीं स्वयं सरकार का सूचना प्रौद्योगिकी विभाग भी खुश नहीं है। भले ही शासन द्वारा रजिस्ट्री की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाए जाने की पहल की हो लेकिन अवैध वसूली करने वालों ने नया तरीका खोज लिया है। जब तक जेब नहीं भरी जाती लोगों को सर्वर डाउन होने एवं अन्य लोगों के नम्बर होने के कारण घंटों इंतजार में खड़ा रखा जा रहा है। जो लोग दलालों के जरिए आ रहे है उनके काम जल्द किए जा रहे है। उनको बिना किसी बिलंब के उनके दस्तावेजों को सत्यापित कराए जाने का खेल चल रहा है। जिससे शासन की मंशा पर पलीता लगता हुआ नजर आ रहा है। इस मामले में वाणिज्यिक कर विभाग के प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव कहते हैं कि जमीनों की रजिस्ट्री का फर्जीवाड़ा रोकने के लिए ई-रजिस्ट्री की व्यवस्था शुरू की गई है। इससे इसमें  पारदर्शिता आएगी। लेकिन विभाग के ही अफसर और रियल इस्टेट का कारोबार करने वाले लोग नहीं चाहते थे कि यह योजना शुरू हो अब जब यह योजना लागू हो गई है तो उसमें व्यावधान उत्पन्न किया जा रहा है। यही कारण है की कभी सर्वर डाउन तो कभी कंप्यूटर खराब होने का बहाना करके लोगों को परेशान किया जा रहा है।
रजिस्ट्रार आफिस के नाम वसूली
भले ही शासन द्वारा रजिस्ट्री की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाए जाने की पहल की हो लेकिन अवैध वसूली करने वालों ने नया तरीका खोज लिया है। जब तक जेब नहीं भरी जाती लोगों को सर्वर डाउन होने एवं अन्य लोगों के नम्बर होने के कारण घंटों इंतजार में खड़ा रखा जा रहा है। जो लोग दलालों के जरिए आ रहे है उनके काम जल्द किए जा रहे है। उनको बिना किसी बिलंब के उनके दस्तावेजों को सत्यापित कराए जाने का खेल चल रहा है। जिससे शासन की मंशा पर पलीता लगता हुआ नजर आ रहा है। लोगों की लगातार मिल रही शिकायतों के बाद जब  पाक्षिक अक्स ने कुछ सर्विस प्रोवाइडरों से उनके मोबाइल पर चर्चा की तो उन्होंने ई रजिस्ट्री से लेकर किराए नामे तक की जो फीस बताई वह आश्चर्य चकित करने वाली थी। कोहेफिजा के  एक सर्विस प्रोवाइडर कुरैशी ने बताया कि एक दुकान का किरायानामा ई रजिस्टर्ड कराने के लिए रसीद की जो फीस लगेगी उसके अलावा ऊपर से हमें दो से ढाई हजार रूपए देने होंगे। जब उनसे पूछा गया कि और कोई खर्चा लगेगा तो वह कहते हैं कि हां, रजिस्ट्रार को भी 1000-1500 रूपए देने होंगे। इसी तरह हबीबगंज में रेखा मालवीय नामक सर्विस प्रोवाइडर को फोन लगाया गया तो उन्होंने कहा आप मेरे पति से बात करें और उन्होंने अपना सेलफोन अपने पति को दे दिया। उन्होंने बताया कि किरायानामा की फीस क्या होगी यह तो कागज देखकर ही बताऊंगा। जब उनसे पूछा गया की आपकी फीस क्या होगी तो उन्होंने कहा आप ऊपर से 4000 रूपए दे देना, बाकि सब मैं देख लूंगा। जब उनसे पूछा गया कि क्या रजिस्ट्रार कार्यालय में भी कुछ देना पड़ेगा तो उन्होंने कहा हां, लेकिन यह भी बोले की कितना देना होगा यह फोन पर नहीं बताऊंगा। ऐसे ही कुछ अन्य सर्विस प्रोवाइडरों ने भी इसी तरह की प्रक्रिया थी। जिसका आशय यह था कि जहां एक किरायानामा के लिए हजार-बारह सौ रुपए खर्च होते हैं उसके लिए वह ऊपर से चार से पांच हजार रुपए और खर्च करना पड़ेगा।
ये तो चंद उदाहरण है। प्रदेशभर में ई-रजिस्ट्री के नाम पर लोगों को इसी तरह ठगा जा रहा है। यह व्यवस्था पूरी तरह दलालों के हवाले है। ऐसे में समझ में नहीं आ रहा है कि सरकार ने आखिर इस व्यवस्था को लागू क्यों किया है जिसका फायदा आम जनता को न मिल सके। एक सर्विस प्रोवाइडर ने बताया कि पंजीयन कार्यालय का स्टाफ अब भी बिना रिश्वत काम नहीं करता है। किसने कितनी रजिस्ट्री कराई हैं, उनकी संख्या व प्लॉट की कीमत तथा लोकेशन के हिसाब से स्टाफ को पैसा देना पड़ता है। ऐसे में हमें पंजीयन कार्यालय के आस-पास ही रहकर काम करना पड़ता है। कर चोरी व भ्रष्टाचार को रोकने के लिए राज्य सरकार द्वारा शुरु की गई ई रजिस्ट्री ने आम आदमी की न केवल परेशानियां बढ़ा दी है बल्कि भ्रष्ट्रचार भी कम होने की जगह बढ़ गया है। इसकी वजह बने हैं वे सर्विस प्रोपाइडर जिन्हें सरकार ने इसके लिए नियुक्त किया है। अकेले भोपाल में 413 सर्विस प्रोवाइडर नियुक्त किए गए हैं। लेकिन इनमें से कई सर्विस प्रोवाइडरों ने अभी तक अपना खाता तक नहीं खोला है। इनमें से तो ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी क्रेडिट लिमिट ही नहीं बनाई है। शासन ने इनकी नियुक्ति के वक्त इन्हें कम से कम 5 रजिस्ट्री रोज करवाने का टारगेट दिया था जो कागजी साबित हुआ। क्योंकि इस हिसाब से राजधानी में कम से कम 2,065 रजिस्ट्री रोज होनी चाहिए, जबकि सबसे अधिक एक दिन की रजिस्ट्री का आंकड़ा 276 है जो 14 अक्टूबर को दर्ज किया गया।  दरअसल, सर्विस प्रोवाइडर शासन की इस प्रक्रिया का पालन करने को तैयार नहीं है। शासन की पूरी पारदर्शिता को दरकिनार कर सर्विस प्रोवाइडर रजिस्ट्री कराने वाले से निर्धारित राशि से 3 से 4 गुना राशि वसूल कर रहे हैं। सर्विस प्रोवाइडरों का कहना है कि संबंधित सब रजिस्ट्रार को पैसा नहीं देंगे तो सर्वर की गड़बड़ी अथवा अन्य गड़बड़ बताकर ही तो आपकी रजिस्ट्री नहीं होगी। आपके चक्कर में हम रजिस्ट्री कार्यालय के चक्कर नहीं लगाएंगे। मांग के अनुसार राशि नहीं देने पर सर्विस प्रोवाइडर रजिस्ट्री कार्यालय अथवा दूसरे सर्विस का नाम बताकर आम आदमी को भगा देते हैं। सर्विस प्रोवाइडरों का कहना है कि यदि हम रजिस्ट्रार को पैसा नही देते हैं तो वह पहले रजिस्ट्री का प्रिंट मांगते हैं और उसमें गलतियां बताकर सुधारने को कहते हैं। पैसा नहीं मिलने पर कभी सर्वर खराब हो जाता है कभी फोटो सही स्केन नहीं होती कभी कोई पेज में गड़बड़ी कर दी जाती है।
ई-रजिस्ट्री योजना लागू करने के समय यह दावे किए गए थे कि इस योजना के लिए जो संपदा नामक सॉफ्टवेयर बनाया है, उसकी यह खूबी होगी कि इसके माध्यम से स्टाम्प ड्यूटी की चोरी नहीं हो पाएगी, मगर विभाग का यह दावा भी अब खोखला सिद्ध हुआ है। ई-रजिस्ट्री योजना में स्टाम्प ड्यूटी की चोरी के मामले भी शुरू हो गए हैं। इंदौर की श्रीमती सुभद्रा ने गोमटगिरि के पास कोडियाबड़ी में अपनी 5000 स्क्वेयर फीट भूमि का टुकड़ा अपने भाई श्रीप्रसाद जैन, के पुत्र के नाम से दान देने का निर्णय लिया, उसके लिए बाकायदा विधिवत रूप से पॉवर ऑफ अटर्नी भी लिखी गई। उक्त भूमि का पंजीयन दस्तावेज पेश किया गया तो सॉफ्टवेयर ने ढाई प्रतिशत की स्टाम्प ड्यूटी मांगी। उक्त दस्तावेज को छूट वाला दस्तावेज सॉफ्टवेयर ने चिहिन्त किया। चूंकि दस्तावेज बनाने के पूर्व पक्षकार वकील पी. द्विवेदी से चर्चा कर चुके थे और उनके द्वारा ही यह दस्तावेज तैयार हुआ है। यह दस्तावेज सब-रजिस्ट्रार प्रदीप मिश्रा के यहां पंजीयन हेतु पहुंचा। दस्तावेज की जांच की गई तो यह गड़बड़ी सामने आई कि यह दस्तावेज छूट वाला दस्तावेज नहीं है और इसमें ढाई प्रतिशत के और स्टाम्प लगना शामिल हैं। इस पर उन्होंने सब-रजिस्ट्रार के सामने ही अतिरिक्त रूप से ढाई प्रतिशत और स्टाम्प लगाए और दस्तावेज का पंजीयन किया। करीब 1 लाख रु. अतिरिक्त राशि का भुगतान भी पंजीयन के दौरान किया गया। बताया जाता है कि सॉफ्टवेयर की गड़बड़ी के चलते पूरे प्रदेशभर के रजिस्ट्रार कार्यालयों में स्टाम्प ड्यूटी की चोरी के मामले की शिकायतें आने लग गई हैं।  ई-रजिस्ट्री योजना रजिस्ट्रार कार्यालय के अधिकारियों के लिए गले की हड्डी सिद्ध हो रही है।

सरकार के लिए भी महंगी है ई-रजिस्ट्री
ताबड़तोड़ तरीके से लागू की गई ई-रजिस्ट्री योजना की खामियों के साथ-साथ इस पर होने वाले खर्च से भी सरकार को राजस्व का तगड़ा फटका सहना पड़ रहा है। अब तक मैन्युअल रजिस्ट्री में जो दस्तावेज मात्र 3 से 5 रुपए में तैयार हो जाता था वह ई-रजिस्ट्री योजना में 429 रुपए के करीब का पड़ रहा है। रजिस्ट्रार कार्यालय के जानकारों ने ई-रजिस्ट्री से तैयार होने वाले दस्तावेजों का पूरा ब्यौरा तैयार करते हुए इसकी शिकायत सरकार को की है। ई-रजिस्ट्री योजना में जो खर्चा जोड़ा गया है उसमें एक दस्तावेज को तैयार करने में 429 रुपए का खर्च हो रहा है। यह खर्च सरकार को खुद वहन करना पड़ रहा है, क्योंकि ई-रजिस्ट्री योजना के संचालन के लिए उसने विप्रो कंपनी को करोड़ों रुपए का ठेका दिया है। इस खर्च में बिजली, कम्प्यूटर, ई-मेल, इंटरनेट, कागज, फोटोकापी सहित अन्य चीजों को शामिल किया गया है। कुल मिलाकर अगर 429 रुपए के हिसाब से एक दस्तावेज का हिसाब सालभर का निकाला जाए तो सरकार को इन दस्तावेजों को तैयार करवाने में ही 120 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा है। शिकायत में यह भी कहा गया है कि मैन्युअल रजिस्ट्री की व्यवस्था के दौरान दस्तावेज को तैयार करने में मात्र 3 से 5 रुपए का खर्च होता था, इसका वहन भी वकीलों द्वारा किया जाता था।
उद्योग और पर्यटन व्यवसाय भी प्रभावित
ई-रजिस्ट्री की जटिल प्रक्रिया का असर आने वाले समय में प्रदेश के उद्योग और पर्यटन व्यवसाय को भी प्रभावित करेगा। दरअसल, सरकार ने मप्र के पर्यटन स्थलों पर चल रहे रिसोर्ट्स को भी ई-रजिस्ट्री कराने का निर्देश जारी किया है, जबकि अभी तक ये बिना लाइसेंस के ही चल रहे थे। रिसोर्ट्स संचालकों को ई-रजिस्ट्री कराने में भी कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन रजिस्ट्री की मोटी फीस और जटिल प्रक्रिया उन्हें परेशान कर रही है। उनका कहना है कि अगर हम सरकारी प्रक्रिया का पालन करते हैं तो इस प्रक्रिया में जो भी खर्च होगा वह हम पर्यटकों से ही वसूलेंगे। ऐसे में तो प्रदेश में घूमना-फिरना भी महंगा हो जाएगा और प्रदेश सरकार का राजस्व भी घटेगा। बताया तो यहां तक जा रहा है कि ई-रजिस्ट्री की इस जटिल और महंगी प्रक्रिया के कारण ग्वालियर का ताज होटल बंद होने की कगार पर पहुंच गया है। इसी तरह पर्यटन स्थलों पर होटल या अन्य व्यवसाय कर रहे लोग भी अब पलायन करने की तैयारी कर रहे हैं। यही समस्या उद्योगों की भी है। एक तरफ मुख्यमंत्री देश-विदेश में घूम-घूमकर निवेशकों को आकर्षित कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ उद्योग विभाग ने औद्योगिक क्षेत्र के रखरखाव का खर्च बढ़ा दिया है। प्रदेश शासन के निर्देश पर उद्योग विभाग ने औद्योगिक भूमि पर संचालित हो रहे लघु उद्योगों से पहले से 14 से लेकर 106 गुना संधारण शुल्क वसूल करने की तैयारी कर ली है। गोविंदपुरा इंडस्ट्रीयल एसोसिएशन और महाकोशल उद्योग संघ ने इसका विरोध शुरू कर दिया है। एसोसिएशन का कहना है कि प्रदेश का औद्योगिक विकास सुनिश्चित करने मुख्यमंत्री ने मेक इन एमपीÓ का नारा दिया है। प्रदेश में उद्योगपतियों को बढ़ाने तरह-तरह की योजनाएं लागू करने के प्रयास हो रहे हैं। वहीं उद्योग विभाग ने लघु उद्योगों से एक फीसदी के बजाए अब 14 से लेकर 106 गुना संधारण शुल्क वसूली करने को तैयार है। इस तरह उद्योगपतियों पर आर्थिक बोझ बढऩे से व्यापार भी छिन जाएगा। उनका कहना है कि वरिष्ठ अधिकारी वास्तविक स्थितियों से अनजान होकर, उद्योगपतियों से चर्चा किए बिना ही निर्णय कर लेते हैं। जबकि एकतरफा निर्णयों का उद्योगों के विकास पर विपरीत असर होता है। महाकोशल उद्योग संघ ऐसे निर्णयों का खुले मंच पर आकर विरोध करेगा।
-कुमार राजेन्द्र

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