17-Oct-2015 06:52 AM
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देश की सुरक्षा व्यवस्था से जुड़े संस्थान रक्षा अनुसंधान और विकास संगठनÓ (डीआरडीओ) में फर्जी डिग्रीधारियों की फौज है। इस बाबत संसद में सवाल भी उठ रहे हैं। लेकिन डीआरडीओ और रक्षा

मंत्री इसका ठीक-ठीक जवाब नहीं दे रहा है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन में फर्जी भर्तियां का काम इतने संगठित तरीके से हो रहा है कि किसी को कानों-कान खबर नहीं है। इस बाबत रक्षा मंत्रालय को भी झांसे में रखा जा रहा है। आरटीआई से जो दस्तावेज सामने आए हैं, उससे यही बात निकलकर आ रही है।
दस्तावेजों की जांच-पड़ताल से इसकी जानकारी तो मिल जाती है कि किसी खास वैज्ञानिक ने किस संस्थान से डिग्री प्राप्त की है, लेकिन इस बात का कहीं जिक्र नहीं मिलता है कि डिग्री नियमित पाठ्यक्रम के जरिए प्राप्त की गई है या पत्राचार से। सूत्र बताते हैं कि इस तरह के घालमेल की वजह डीआरडीओ के कुछेक अधिकारी हैं। तथ्य को जांचने-परखने के बाद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि दस्तावेज में डिग्री हासिल करने के माध्यम को छुपाया जा रहा है।
दरअसल, बात 2013 की है। संस्थान से जुड़ी रीता सिंह ने सूचना के अधिकार अधिनियम (आरटीआई) का प्रयोग कर वरिष्ठ तकनीकी सहायक होशियार सिंह, निशा तनेजा, रमेश कोठियाल, नीतू रावत, वीरन्द्र सिंह नेगी, साकेत जैन और सुधार कुमार के बारे में डीआरडीओ से जानकारी मांगी थी। ये वे लोग हैं, जिन्हें डीआरडीओ ने विभागीय परीक्षा में बैठने से मना कर दिया था। वजह यह बताई गई थी कि इनके पास गैर मान्यता प्राप्त डिग्री/डिप्लोमा है। इसके बावजूद वे लोग उच्च पद पर आसीन हैं। आखिर यह कैसे संभव हुआ? एक तरफ डीआरडीओ का कहना है कि उसे भ्रष्टाचार से संबंधित मसलों पर जानकारी देने में कोई आपत्ति नहीं है। पर जब रीता सिंह ने जानकारी मांगी तो डीआरडीओ ने सूचना देने से इनकार कर दिया। उसका तर्क है कि डीआरडीओ को इसका जवाब देने की जरूरत नहीं है। आखिर क्यों? वह भी तब, जबकि मामला सीधे भ्रष्टाचार से जुड़ा है। जिस तरह की लुका-छिपी का खेल डीआरडीओ में खेला जा रहा है, उससे तय है कि दाल में कुछ काला है। यह भारी चिंता की बात है कि देश की सुरक्षा व्यवस्था से जुड़े प्रमुख संस्थान में नियुक्ति की गड़बड़ी को लेकर आशंका जाहिर की जा रही है। इस बाबत संसद में भी सवाल उठ रहे हैं। इसके पीछे तर्क गढ़ा गया है कि सूचना देने से देश की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। डीआरडीओ का यह तर्क हास्यास्पद है। नियुक्ति प्रक्रिया की जानकारी देने से सुरक्षा को लेकर कौन सा खतरा पैदा हो सकता है? इसका उत्तर तो डीआरडीओ के पास ही होगा। लेकिन ऐसे जवाब के लिए केन्द्रीय सूचना आयोग ने डीआरडीओ को खूब फटकार लगाई है, क्योंकि आरटीआई के तहत उसे केवल संस्थान में चल रही परियोजना के बारे में जानकारी न देने की छूट है। न कि भर्ती जैसे मसलों पर। इसके बाद भी डीआरडीओ पर कोई असर नहीं पड़ा रहा है। वह फर्जी नियुक्तियों के मसले पर पर्दा डालने में जुटा है। आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक डीआरडीओ से संबद्ध कई लोगों ने दूरस्थ शिक्षा (पत्राचार) के जरिए उच्च शिक्षा हासिल की है। उसी के आधार पर वे विभागीय परीक्षा पास कर क्लर्क से वैज्ञानिक और न जाने क्या-क्या बन रहे हैं। मगर दिलचस्प बात यह है कि वे लोग जिस विषय में डिग्री लेने का दावा कर रहे हैं, वह संबंधित विश्वविद्यालय में दूरस्थ शिक्षा का हिस्सा नहीं है। कहने का मतलब साफ है कि वह विषय पत्राचार कार्यक्रम में पढ़ाया ही नहीं जाता है। मसलन- दीपक कुमार, लक्ष्मी वर्मा और पुनीत कुमार ने रोहतक स्थित मर्हिष दयानंद विश्वविद्यालय से पत्राचार के जरिए कम्प्यूटर साइंस में परास्नातक किया है। लेकिन कम्प्यूटर साइंस का पाठ्यक्रम मर्हिष दयानंद विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम में नहीं पढ़ाया जाता है। कोई भी इसकी जांच विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर जाकर कर सकता है। वहां दूरस्थ शिक्षा में पढ़ाए जाने वाले विषयों का ब्यौरा दिया हुआ है। पूरे विवरण में कम्प्यूटर साइंस का कोई जिक्र नहीं है। इसी तरह सियाराम, ए. वेंकटेश्वर राव, जी. वेंकटेश और बी. बालूदू ने हैदराबाद स्थित जवाहरलाल नेहरू तकनीक विश्वविद्यालय से बी-टेकÓ की डिग्री हासिल की है। लेकिन, वहां बी-टेक पत्राचार कार्यक्रम का हिस्सा नहीं है। देखने में यह आ रहा है कि डीआरडीओ में ऐसे कई मठाधीश हैं, जिन्होंने पत्राचार के जरिए यह डिग्री हासिल की है। पर सच्चाई यह है कि पत्राचार की पढ़ाई कर इस डिग्री को प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
-रजनीकांत पारे