16-Oct-2015 11:12 AM
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बलौदाबाजार के कंस निषाद ने रायपुर रेलवे स्टेशन पर बताया, हम 55 मजदूर एक साथ गांव छोड़कर जा रहे हैं। साथ में 15 बच्चों भी हैं। हम लोग फैजाबाद में ईंट बनाने का काम करेंगे। एक हजार

ईंट बनाने पर 400 रुपये मिलते हैं। दो मजदूर मिलकर एक दिन में दो हजार से ज्यादा ईंट बना लेते हैं। हम लोग छह महीने वहां काम कर लौट आएंगे।Ó राज्य के बेमेतरा, बालोद, कवर्धा, गरियाबंद, दुर्ग, धमतरी सहित कई और जिलों से भी किसान-मजदूरों के पलायन की खबरें लगातार आ रही हैं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले तीन साल में 95 हजार 324 लोग अपना घर-बार छोड़ चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा पलायन जांजगीर चाम्पा जिले से हुआ है।
सच तो यह है कि इसी साल अब तक एक लाख से ज्यादा लोग राज्य से निकल चुके हैं। इससे जाहिरहै कि मनरेगा लागू रहने के बावजूद निम्नवर्ग के लोगों को अपने राज्य में पर्याप्त काम नहीं मिल रहा है। छत्तीसगढ़ विधानसभा में राजस्व मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय ने नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव के एक सवाल के लिखित जवाब में प्रदेश से मजदूरों के पलायन की बात स्वीकारी है। उन्होंने बताया है कि सूबे में बीते तीन वर्षो में 95 हजार 324 लोगों ने अधिक मजदूरी के लालच में या परंपरागत ढंग से पलायन किया है। राजस्व मंत्री के जवाब में सर्वाधिक 29 हजार 190 पलायन जांजगीर चाम्पा जिले से होना बताया गया है। नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में मनरेगा का रिकार्ड बताता है कि पिछले नौ माह से जिले के किसी भी ग्रामीण को रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया। वहीं इन ग्रामीणों के साथ-साथ मनरेगा में कार्यरत कर्मचारियों व अधिकारियों को भी 6 से 10 माह तक का बकाया मानदेय नहीं मिला है। विडंबना यह है कि एक ओर दंतेवाड़ा जिला मनरेगा के तहत उत्कृष्ट कार्य करने पर दिल्ली में प्रधानमंत्री से पुरस्कृत हुआ तो दूसरी तरफ बगल के सुकमा जिले में रोजगार के लाले पड़े हैं। सूबे के एक और जिले बलौदा बाजार के आंकड़े तो और भी चौंकाने वाले हैं। यहां पिछले एक माह से 500 से अधिक मजदूरों का प्रतिदिन पलायन हो रहा है। पलायन के लिए चर्चित लवन क्षेत्र में अब तक कुल 20 हजार मजदूरों का पलायन हो चुका है। इस कारण गांवों की गलियां वीरान हो गई हैं।
लगभग 15 गांवों के सैकड़ों मकानों में आज ताले लटके हैं। अगर पलायन का यह सिलसिला यूं ही जारी रहा तो ज्यादातर गांव वीरान नजर आएंगे। ग्राम हरदी व दतान के लगभग 300 मजदूर हाल ही में उत्तर प्रदेश के फैजाबाद, अयोध्या पहुंचे हैं। इन्हें वहां ईंट-भट्टों पर काम मिला है। गैरसरकारी संगठन ग्राम विकास समिति के महासचिव राजेश मिश्रा ने कहा, छोटा राज्य बनने के बाद भी मजदूरों को कोई खास लाभ नहीं मिला है। इसलिए बड़ी संख्या में मजदूर प्रदेश से पलायन करते हैं।ÓÓ उन्होंने कहा, आर्थिक विकास के आंकड़े जमीनी हकीकत से दूर ठंडे कमरों में बैठकर गढ़े जाते हैं, इसलिए छत्तीसगढ़ी किसान-मजदूर अपने गढ़ से दूर चले जाते हैं। सुकमा जिले में ऐसी 14 ग्राम पंचायतें हैं, जहां मनरेगा योजना शुरू होने के बाद से एक भी कार्य स्वीकृत नहीं किया गया। यहां के बाशिंदों को यह भी नहीं पता कि मनरेगा किस चिडिय़ा का नाम है। कोंटा ब्लॉक के लोकेश बघेल ने बताया कि यह नक्सल प्रभावित इलाका है और गांवों तक पहुंचने के लिए सड़कें नहीं हैं। इसलिए यहां योजनाओं के बारे में किसी को कुछ पता नहीं चलता। गौरतलब है कि 13वें वित्त आयोग के तहत इन्हीं क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने के लाखों के कार्य कागजों मेंÓ ही संपन्न हो गए थे। सुकमा जिले में एक ओर जहां पिछले साढ़े 9 माह में एक दिन भी रोजगार नहीं मिला तो दूसरी ओर जिले में पदस्थ पीओ से लेकर रोजगार सहायकों को 6 से 10 माह तक का मानदेय तक नहीं मिला है।
-रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला