वीजा के लिए इतनी बेताबी क्यों
03-Apr-2013 10:48 AM 1234880

जिस प्रतिनिधि मंडल को अमेरिकी सांसदों का प्रतिनिधिमंडल कहा गया वे भारतीय जनता पार्टी समर्थित अमेरिकी राजनीतिज्ञों का एक प्रतिनिधि मंडल था जो मोदी से आकर गुजरात में मिला और उसके बाद यह प्रचारित किया गया कि अमेरिका के सांसदों ने मोदी को अमेरिका आने का आमंत्रण दिया है। बाद में अमेरिका ने इस कुप्रचार को झुठलाते हुए साफ किया कि मोदी के प्रति अमेरिकी वीजा नीति में किसी प्रकार का कोई बदलाव नहीं आया है। दरअसल वर्ष 2005 में जब विश्व गुजरात बैठक अमेरिका में आयोजित की गई थी उस वक्त मोदी ने वीजा के लिए आवेदन दिया था, लेकिन अमेरिका ने 2002 के दंगों में मोदी की कथित भूमिका का हवाला देते हुए वीजा ठुकरा दिया उसके बाद से अमेरिकी नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। मुस्लिम तुष्टिकरण भारत की ही विशेषता नहीं है अमेरिका भी दुनिया को यह दिखलाना चाहता है कि वह मुस्लिम हितों का बहुत बड़ा संरक्षक है और इस दिखावे को पुष्ट करने के लिए भला मोदी से बेहतर और कौन सा बहाना हो सकता है। अमेरिका मोदी को वीजा न देकर लाखों मुसलमानों के खून से रंगे अपने हाथों को छिपाना चाह रहा है, लेकिन अमेरिका की इस दोगली नीति ने भारत में राजनीतिक भूचाल पैदा किया हुआ है। भारतीय जनता पार्टी मोदी को वीजा न मिलने से इस कदर बौखलाई हुई है मानो मोदी को वीजा मिलने से वे प्रधानमंत्री ही बन जाएंगे। सवाल यह है कि अमेरिकी वीजा मिलने मात्र से मोदी के दामन पर लगे निर्दोष मुस्लिमों के खून के दाग धुल जाएंगे? यह सच है कि भारत की किसी भी अदालत ने नरेंद्र मोदी को सजा नहीं दी है, सजा तो उन लोगों को भी नहीं मिल पाई है जिन्होंने 1984 के सिख विरोधी दंगों में निर्दोष सिखों को जलाकर मार डाला था। उनकी संपत्ति लूट ली थी और उन्हें बेघर कर दिया था। लाशों पर राजनीति करने वाले अपने हितों को सबसे पहले साधते हैं जिस तरह 1984 में साधा गया, 1992 में साधा गया, 2002 में साधा गया और 9/11 के बाद अमेरिका ने अपने हितों को साधा। मुसलमानों का विरोध या उनकी तरफदारी से इसका कुछ लेना-देना नहीं है। भारतीय जनता पार्टी हमेशा यह कहती आई है कि मोदी ने अमेरिकी वीजा के लिए कभी अप्लाई ही नहीं किया और न ही वे अमेरिकी वीजा पाने के लिए बेताब हैं। सच तो यह है कि 2005 में अमेरिका जाने के लिए मोदी ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया, लेकिन यह वही समय था जब अमेरिकी नीतियों का घनघोर विरोध हो रहा था। अमेरिका को मुस्लिम विरोधी करार दे दिया गया था। चारों तरफ सारे मुस्लिम जगत में अमेरिका से नफरत की जा रही थी। ऐसे दौर में अमेरिका को आवश्यकता थी एक ऐसे कदम की जिससे थोड़ा बहुत संतुलन स्थापित हो। इसीलिए मोदी को जानबूझकर वीजा से वंचित किया गया। जिस अमेरिका ने दुनियाभर के खूनी तानाशाहों को अपने यहां पनाह दी उसी अमेरिका ने मोदी को वीजा न देकर मुस्लिम जगत से सहानुभूति प्राप्त करनी चाही। बहरहाल तब से लेकर आज तक लगभग हर वर्ष एक न एक बार मोदी बनाम अमेरिकी वीजा की लड़ाई छिड़ ही जाती है। इस बार भी ऐसा ही देखने में आया जब अमेरिका से आए कुछ सांसदों और व्यापारियों ने मोदी को वहां आने का आमंत्रण दे दिया। इस प्रतिनिधिमंडल ने मोदी की दिल खोलकर तारीफ की। 18 सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व रिपब्लिकन आरोन शॉक कर रहे थे। उन्होंने मोदी के मॉडल की तारीफ भी की, लेकिन बाद में यह खबर आई कि अमेरिकी दल ने इसके लिए पैसा दिया था तो फिर से बवाल मच गया। कांग्रेस ने भी इस मुद्दे को भरपूर भुनाया। लेकिन यह सवाल अभी तक अनुत्तरित है कि मोदी से मिलने के लिए भला ये लोग पैसा क्यों देंगे। मोदी कोई मौत का कुआं तो हैं नहीं जिसमें पैसा देकर तमाशा देखा जाता है। मोदी से मिलने के लिए पैसा दिया गया। इस तरह की रिपोर्टिंग शिकागों के एक बड़े अनाम से अखबार ने की है। दरअसल अमेरिका ने मोदी को वीजा न देकर उन्हें एक अंतर्राष्ट्रीय हस्ती बना दिया है। दुनिया के हर देश में मोदी चिर-परिचित हैं। किसी से पूछों की भारत का प्रधानमंत्री कौन है तो शायद वह न बता सके, लेकिन गुजरात का मुख्यमंत्री कौन है तो तत्काल बता दिया जाता है कि नरेंद्र मोदी, वही नरेंद्र मोदी जिसे अमेरिका ने वीजा देने से इनकार कर रखा है। इस हास्यास्पद परिस्थिति का लाभ हर कोई लेना चाहता है। इसी कारण उस अखबार ने जिसे दूर-दूर तक कोई जानता भी नहीं है, अपनी पहचान स्थापित करने के लिए एक बेफिजूल की न्यूज प्लांट की जिसका कोई आधार नहीं था, लेकिन कांग्रेस ने उस न्यूज को हाथों-हाथ लेते हुए हंगामा कर दिया। इससे यह तो साफ हो गया है कि मोदी का समर्थन और विरोध दोनों ही प्रसिद्धि तो दिला ही सकते हैं, क्योंकि स्वयं मोदी अंकल सैम की मेहरबानी से दुनिया में विख्यात या कुख्यात हो चुके हैं।
बहरहाल मोदी को इससे कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने दिल्ली की गद्दी की तैयारियां अपने ही अंदाज में शुरू कर दी हैं। गुजरात में स्थानीय निकाय के चुनावों में मुस्लिम बहुल सीटों में क्लीन स्वीप करने के बाद मोदी का हौंसला कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है और अब वे राष्ट्रीय स्तर पर अपनी सैकुलर छवि को तराशने में लगे हुए हैं। इसी के तहत आज ही में उन्होंने एक भाषण के दौरान कहा कि उनके लिए धर्मनिरपेक्षिता का अर्थ है देश को सर्वोच्च प्राथमिकता देना। मोदी के इस कथन के कई निहितार्थ निकल रहे हैं। जिसमें से एक बात यह है कि वे उन सभी लोगों को धर्म निरपेक्ष मानते हैं जिनके लिए देश प्रथम है धर्म नहीं। दूसरे शब्दों में कहें तो जो व्यक्ति धर्मनिरेपेक्ष है उसे राष्ट्र सापेक्ष होना चाहिए। मोदी की यह परिभाषा संघ को जंच गई है और उनकी इस परिभाषा ने उन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा मारा है जो धर्मनिरपेक्षता का अर्थ किसी एक समुदाय की सरपरस्ती को मानते हैं। हाल ही में अमेरिकी सांसदों द्वारा मोदी से मुलाकात को भी इसी मिशन से जोड़ा जा रहा है।
नरेंद्र मोदी द्वारा दी गई धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा में देश तथा देश का विकास सर्वोपरि दिखाई देता है। यह परिभाषा विदेशियों को भी आकर्षित कर रही है और वे मोदी के गुजरात में लगातार दौरे कर रहे हैं। इसी कारण मोदी सर्वत्र चर्चा में हैं। चर्चा में रहना ही उनका मूल सिद्धांत है। क्योंकि जो पीआर कंपनी उनकी छवि तराशने में लगी है उसने मोदी को सुझाव दिया है कि येन-केन-प्रकारेण समाचार की सुर्खियों में जरूर बने रहना।

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