16-Oct-2015 10:29 AM
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टना जंक्शन के पास करबिगहिया के एक होटल में बैठे युवकों के बीच बिहार चुनाव पर बेबाक बहस चल रही थी। यहां पहले से खाने पर बैठे रोहिला निवासी दिनेश प्रसाद ने चुनावी तान छेड़ दी थी।

रोटी चबाते हुए उन्होंने युवकों से पूछा वोट देने आए हैं क्या? जवाब में युवकों ने हां कहा। दिनेश ने कहा इहे चुनाव में मजा बा। आधी भोजपुरी आधी खड़ी भाषा में अपनी बात रखते हुए दिनेश ने कहा, नेतवन का नया-नया नाम एक दूसरे नेता ही दे रहे हैं। शैतान, ब्रह्मपिशाच, नरभक्षी, अहंकारी, जुमलेबाज आदि नामकरण हो गए हैं। नेता नामकरण पर ही अटक कर रह गए हैं। इहे इ बार चुनावी मुद्दा जो नेता जनता को परोस रहे हैं। बात राजनेताओं से शुरू हुई राजनीतिक दलों से होते हुए नेताओं तक पहुंची। इसके बाद युवक भी सीधे जातीय गणित समझाते हुए हार-जीत के दावे में जुट गए। इस चर्चा में सब एक बात पर राजी थे वह था कि वोट जातीय आधार पर पड़ेगा। बेगूसराय निवासी किशुन ने होटल वाले से पूछा लहर किसकी है। जिसके जवाब में होटल मालिक बोला सब नेता लहरिये बनावे में जुटल हवें। लहरिया केकर बा इ त लोगे बतइहें, वोटवा देके। बाप रे बाप गांव-गांव में हेलिकाप्टर उतर रहल बा। होटल मालिक की ये बातें सुनने के बाद शेखपुरा निवासी जीतन बोल पड़ा बिहार में जइसे वोट पड़त रहल वइसे ही पड़ी। दलन के जातीय समीकरण ही काम करी। बेगूसराय निवासी रामप्रवेश ने बात आगे बढ़ाई बोला ऐही बार चुनाव चिह्न लेके बड़ा झमेला बा वोट इधर उधर भी जाई। रामप्रवेश ठेठ गंवई भाषा में अपनी बात कह रहा था। उसका आशय था कि जिसकी पसंद नरेंद्र मोदी हैं और सीट हम, रालोसपा या लोजपा को गया है तो वह कमल का फूल ढूंढ़ता ही रह जाएगा। टेलीफोन, छत का पंखा, समझने में वोटर गड़बड़ा सकते हैं। महागठबंधन का ठीक है तीनों दल पुराने हैं इनके निशान पंजा, तीर और लालटेन सब पहले से जानते हैं।
इस बार के चुनाव में महिलाएं भी खुलकर चर्चा कर रही हैं। पटना जंक्शन के बाहर हनुमान मंदिर के चबुतरे पर कुछ महिलाएं आपस में बात कर रही थीं, इसी दौरान दिल्ली से आए कुछ युवक भी वहां आकर बैठ गए। महिलाओं को चुनावी चर्चा करते सुन एक युवक ने उनसे पूछा कि आपको क्या लगता है, वोट किसे मिलना चाहिए। देखिए, वोट तो उसे ही मिलना चाहिए जो यह समझे कि जनता का मूड क्या है। जो नेता जनता का मूड नहीं बूझ सके उ नेता तो हारबे न करेगा। एक और आवाज उभरी, हम इ तो मानते हैं कि उन्होंने काम बहुत किया मगर बहुत कुछ न देखना पड़ता है। जैसे कि सबको आरक्षण दिये जा रहे हैं। बगल से किसी ने सवाल किया, का कीजिएगा मैडम आरक्षण तो संविधान में दिया गया है और गरीब-गुरबा बिना आरक्षण के कैसे आगे बढ़ेगा। मैडम का जवाब- आप बढिया शिक्षा दीजिए ना, आरक्षण तो दसे साल के लिए दिया गया था। अब देखिए ना, धर्म के नाम पर आरक्षण की बात हो रही है। अच्छा ता ई बताइये मैडम, कोई पार्टी ऐसी है जो इ कहे कि आरक्षण हटाएंगे। नहीं है न। तब वोट किसको दीजिएगा। जवाब मिला, का करेंगे। गदहा में जो खच्चर होगा उसी को देंगे। आप ठीके बोल रहे हैं, सब पोलिटिएशन एक ही जैसे हैं। अच्छा ई बताइये मैडम, अब तो सांझ में महिलाओं का घर से निकलने में कोई खतरा नहीं है न।
महिला ने जवाब दिया-सांझ में क्या, अब तो रातों में डर नहीं लगता है। मगर वोट एक्के बात पर थोड़े पड़ता है। मैडम बोलती हैं, जानते हैं, पिछला कॉम्बिनेशन बहुत अच्छा था मगर अब तो समझ में नहीं आता। पहले सोचे थे कि दिल्ली में बड़ी पार्टी को और बिहार में बिहार की पार्टी को देंगे वोट। लेकिन अब सोचना पड़ रहा है। इसी बीच एक ठहाका भी लगा, क्या बोलते थे जी मां-बेटे की सरकार। हालांकि जो बेचारे सरकार चला रहे थे वो तो बहुत अच्छे आदमी थे।
बहस फिर बिहार पर। काम तो उन्होंने बहुत किया मगर इ बताइये कि आप बेकाम के खिलाफ लड़े और, उसी से मिल गये। हम जानते हैं कि उन्होंने काम बहुत किया, ईमानदार भी पूरे हैं लेकिन...। इसी बीच साथ की महिला ने कहा कि खाली हमही लोग नहीं न दे रहे वोट। सबका अपना-अपना सपोर्टर है। अच्छा इ बताइये कि अगर उम्मीदवार महिला हो तो आप उन्हें वोट दीजिएगा। अरे नहीं, देखना पड़ेगा। वैसे तो मुख्यमंत्री भी महिला रही हैं। वोट सिर्फ महिला के नाम पर तो नहीं दूंगी। हम जानते हैं कि कितनी महिला मुखिया हैं लेकिन किसी काम की नहीं। मेल हो या फीमेल, कैंडिडेट बढिया होना चाहिए। इसलिए वोट तो काम करने वाले को ही देना पड़ेगा।
ये चुनावी चर्चाएं इस बात का संकेत दे रही हैं कि नेताओं के वादे और नारे से जनता भी कंफ्यूज है। यही कारण है कि इस बार जितने भी चुनावी सर्वे आए हैं वे एक नहीं रहे हैं। अभी तक जो तस्वीर सामने आई है उसके अनुसार बिहार चुनाव दो शख्सियतों के टकराव में बदल गया है और यह बात तब उजागर होती है जब अक्सर मतदाता अपनी पसंद मोदी या नीतीश की शक्ल में पेश करते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान सिर पर है और ऐसे वक्त में शख्सियतों के इस टक्कर में उम्मीदवारों का चुनाव और चुनाव क्षेत्रों को पेश मुद्दे जैसी दीगर चीजें नेपथ्य में ही दिख रही हैं। जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा नीत राजग की कमान संभाल रखी है, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मतदाताओं को यह यकीन दिलाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं कि बिहार के नेतृत्व के लिए उनसे बेहतर कोई नेता नहीं है।
मुंगेर विधानसभा क्षेत्र में जब दूकानदार भूमिका प्रसाद से मुख्यमंत्री पद के लिए उसकी पसंद के बारे में पूछा गया तो उन्होंने ठेठ बिहारी लहजे में कहा, नीतीशे हैं (नीतीश ही हैं)।ÓÓ प्रसाद की दलील थी कि बिहार के मुख्यमंत्री पद के लिए नीतीश से अच्छा कोई नेता नहीं है। जब उससे मोदी के विकास के नारे के बारे में पूछा गया तो उसका जवाब था, मोदी जी बिहार नहीं ना चलाएंगे।ÓÓ एक साल पहले, 2014 में लोकसभा चुनाव में मोदी और नीतीश के टकराव में जदयू नेता को धक्का लगा था और उनकी पार्टी राज्य में तीसरे स्थान पर चली गई थी। अब, राजद के साथ गठबंधन कर नीतीश विधानसभा चुनाव में नए तेवर के साथ आए हैं। उधर, भाजपा ने अपने राज्यस्तरीय नेताओं को उच्च स्तरीय चुनाव प्रचार से अलग रखा है और वोटों की दौड़ में भगवा पार्टी नीतीश-लालू महागठबंधन से राजग को आगे निकालने के लिए मोदी के अग्निबाणों पर भरोसा किए है। भाजपा प्रमुख अमित शाह एकमात्र पार्टी नेता हैं जिन्हें भगवा पार्टी के बड़े बड़े होर्डिंग में मोदी के साथ जगह मिल रही है। इन होर्डिंग में दोनों कमल पर वोट डाल कर बिहार को विकास की राह पर लाने का आह्वान कर रहे हैं। बिहार के विभिन्न हिस्सों में लोगों के एक हिस्से से बातचीत में यह दिखता है कि मोदी के प्रति बड़ा आकर्षण बना हुआ है, लेकिन नीतीश के पास लोगों के बीच साख है, खास तौर पर गरीबों के बीच। कालेज शिक्षक रमाकांत पाठक कहते हैं, मोदी जी जितनी बड़ी भीड़ आकर्षित कर रहे हैं, वैसी भीड़ लंबे अरसे से किसी राष्ट्रीय नेता ने आकर्षित नहीं की है। उनकी अपनी शैली है। लोग नीतीश जी के किए काम की भी तारीफ करते हैं।ÓÓ आधिकारिक उम्मीदवार के सवाल पर भाजपा नीत राजग खेमे में असंतोष है और यह कई जगहों पर, मसलन, चकई और भागलपुर में उनकी जीत की संभावना को प्रभावित कर सकता है। राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि जहां किसी भी गठबंधन के पक्ष में कोई स्पष्ट लहर नहीं है, सिर्फ मोदी की अपील जैसे कारक उन्हें जीतने में मदद कर सकते हैं। यही कारण है कि मोदी सघन चुनाव प्रचार अभियान चला रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि अपनी तकरीबन दो दर्जन चुनावी रैलियों से वह चुनावी पासा पलट सकते हैं। नीतीश के चुनाव प्रचार को ले कर बहुत हो-हल्ला नहीं है, लेकिन वह अपने ही अंदाज में इस चुनाव को मुख्यमंत्री के रूप में अपने काम-काज पर जनमतसंग्रह में बदल रहे हैं। इस तरह, वह अपने सहयोगी लालू प्रसाद के जातीय मुद्दे से अलग हैं और राजद के 15 साल के शासन को ले कर कथित नकारात्मकता से भी खुद को अलग रखे हुए हैं। नीतीश अपनी रैलियों में नारा दे रहे हैं कि बिहार बिहारी चलाएगा बाहरी नहीं।ÓÓ इस तरह, वह जता रहे हैं कि अगर राजग जीता तो मोदी बिहार का शासन नहीं चलाएंगे, बल्कि कोई स्थानीय ही चलाएगा लेकिन उनसे अच्छा कोई बिहारी नेता
नहीं है।
-इन्द्रकुमार