02-Oct-2015 07:37 AM
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राजनीति संभावनाओं का खेल है, यहां कुछ भी असंभव नहीं। सियासत में कुछ भी स्थायी नहीं होता। यही उसका स्वभाव है। न दोस्ती, न दुश्मनी। पांच साल पहले भाजपा और जदयू मिलकर

चुनाव लड़े और प्रचंड बहुमत से जीते भी। दोनों का एजेंडा एक था। दूसरी तरफ लालू और रामविलास थे। कांग्रेस अकेले दम मैदान में उतरी थी। एक-दूसरे के साथी-सहयोगी रहे राजनीतिक दल और नेता इस बार उलट भूमिकाओं में नजर आ रहे हैं। अलग-अलग खेमें में एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं और जो कभी घूर विरोधी थे वे अब सहयोगी की भूमिका में आ गए हैं। वोटों को लेकर कोई भी दल या गठबंधन आश्वस्त नहीं लगता। गठबंधन की राजनीति जरूरत और मजबूरी बन गई है।
बिहार विधानसभा चुनाव में सभी पार्टियों का दावा बिहार का विकास करने का है। लेकिन जिस आधार पर पार्टियों ने अपने उम्मीदवारों को टिकट बांटे हैं वो कुछ और ही कहानी बयां कर रही है। सभी पार्टियों ने जातीय समीकरण का पूरा ध्यान रखते हुए टिकट बांटे हैं। एनडीए ने सबसे ज्यादा अपने आधार वोट सवर्णों को टिकट दिया तो महागठबंधन ने यादवों पर भरोसा जताते हुए 62 यादव उम्मीदवारों को उतारा है। बीजेपी ने 153 उम्मीदवारों में से 74 सवर्णों को टिकट दिया है। इनमें सबसे ज्यादा 39 राजपूत, 19 भूमिहार, 13 ब्राह्मण और 2 कायस्थ हैं। वहीं यादव वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए एनडीए ने 22 यादवों को भी टिकट दिया है। महागठबंधन ने बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए 34 सवर्ण उम्मीदवार उतारे हैं। दलित-महादलित वोट बैंक पर दोनों गठबंधनों की नजर है। महागठबंधन ने 24 महादलितों को टिकट दिया है बीजेपी ने 12 को। बिहार में जाति की राजनीति करने का आरोप लगाकर नीतीश कुमार ने भले ही एनडीए पर निशाना साधा, लेकिन खुद भी उन्होंने जातीय आधार पर ही उम्मीदवारों का ऐलान किया। सबसे ज्यादा टिकट मिले हैं यादव जाति के लोगों को। लालू की पार्टी ने आरजेडी ने सबसे ज्यादा 48 यादवों को टिकट दिया तो नीतीश ने 14 यादव के अलावा 30 कोइरी-कुर्मी उम्मीदवार उतारे हैं। बिहार में महागठबंधन के आधार वोट के टिकटों का समीकरण देखें तो मुस्लिम, यादव, कुर्मी, कोइरी से 135 लोगों को टिकट दिया गया है। आरजेडी ने 16 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे तो वहीं बीजेपी ने मात्र 2 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है जबकि कांग्रेस ने 10 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं।
बिहार के चुनाव में जाति, धर्म, और साम्प्रदायिकता का समीकरण ऐसा है कि कोई भी दल अकेले चुनावी समर में उतरने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। प्राय: सभी दल किसी न किसी के सहारे चुनावी मैदान में हैं। पुराने राजनीतिक समीकरण टूट रहे हैं और नए राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं। दो प्रमुख गठबंधन मुख्य रूप से चुनाव में आमने-सामने होंगे। पहला भाजपा के नेतृत्व वाला राजग जिसमें रामविलास पासवान की लोजपा और जदयू से बगावत करने वाले उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तानी आवाज़ मोर्चा शामिल है, दूसरा जदयू के नेतृत्व वाला राजद और कांग्रेस का महागठबंधन। इसके अलावा छह वामदलों ने संयुक्त रूप से चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान किया है, मुलायम की अगुवाई में एक नया मोर्चा भी चुनावी समर में होगा। इस मोर्चे का नाम है समाजवादी सेक्युलर फ्रंट। इस बीच बिहार के कद्दावर नेता एवं राजद के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ झा और बिहार विधान परिषद के सदस्य जदयू के नेता मुन्ना सिंह भी अपनी-अपनी पार्टियां छोड़कर सपा में शामिल हो गए हैं। इन गठबंधनों की लड़ाई के बीच ओवैसी की पार्टी ने बिहार के सीमांचल क्षेत्रों के मुस्लिम बहुल जिलों में विधानसभा चुनाव लडऩे की घोषणा कर चुनावी जंग को दिलचस्प बना दिया है। सपा की अगुवाई वाले मोर्चे और ओवैसी को राजनीतिक विश्लेषक भाजपा के ट्रम्प कार्ड के रूप में देख रहे हैं। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि ओवैसी की पार्टी आईएमआई और तीसरा मोर्चा, महागठबंधन के वोट बैंक (यादव-मुसलमान) में ही सेंध लगाएगा।
परिवारवाद का बोलबाला
बिहार के चुनावी रण में रिश्ते का घालमेल चरम पर है। अपने रसूख के हिसाब से हर नेता अपनी दूसरी पीढ़ी को आगे लाने की होड़ में है। इसमें न तो लालू पीछे हैं और न ही मांझी। बीजेपी के भी कई नेता अपने प्रभाव का जादू चलाकर अपने नौनिहालों को टिकट दिलाने में कामयाब हुए हैं। 243 सीटों की बिसात पर सभी पार्टियां अपना-अपना मोहरा सजा रही हैं। पार्टी दूसरे उम्मीदवारों के लिए भले ही मानदंड तय करे, लेकिन रिश्तेदारों के लिए बस रिश्ता ही बड़ा और पुख्ता पैमाना है। बिहार चुनाव में महागठबंधन की ओर से 242 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी गई है। हर सीट पर उठापटक, जोड़-तोड़ के बावजूद लिस्ट में अपनों के नाम शामिल किए गए। लालू प्रसाद ने अपनी विरासत दोनों बेटों को सौंपने का मन बना लिया है। लालू के दोनों बेटे लालटेन की रोशनी में विधानसभा की देहरी पार करने को तैयार खड़े हैं। बड़े बेटे तेज प्रताप को महुआ से और छोटे बेटे तेजस्वी को राघोपुर से उम्मीदवार बनाया गया है। उधर, हिन्दुस्तान अवाम मोर्चा के मांझी भी चुनावी मैदान में ताल ठोककर खड़े हैं। अपने परिवार के लिए तीन सीटों पर पहले ही कब्जा कर लिया है। दो सीटों पर वे खुद उम्मीदवार हैं और तीसरी सीट अपने बेटे संतोष कुमार सुमन को सौंप दिया है। मांझी मखदुमपुर और इमामगंज से खुद चुनाव लड़ रहे हैं और उनके बेटे संतोष कुटुंबा से उम्मीदवार बनाए गए हैं। वहीं हिन्दुस्तान अवाम मोर्चा के बिहार अध्यक्ष शकुनी चौधरी ने अपने बेटे रोहित कुमार को खगडिय़ा से टिकट दिलवा दिया है। चुनावी समर में रिश्तों के रस में बीजेपी भी सराबोर है। बक्सर के सांसद अश्विनी चौबे अपने बेटे अरिजीत को भागलपुर से टिकट दिलवाने में सफल रहे हैं। राज्यसभा सांसद डॉक्टर सीपी ठाकुर ने बेटे विवेक ठाकुर को ब्रह्मपुर से टिकट दिलवा दिया है। बीजेपी नेता गंगा प्रसाद ने अपने बेटे संजीव चौरसिया को दीघा सीट से विधानसभा भेजने का बंदोबस्त कर लिया है। बिहार में नेता विपक्ष नंद किशोर यादव भी अपने बेटे नितिन किशोर को टिकट दिलाने की कोशिश में हैं। सारण के सांसद जनार्दन सिंह भी बेटे प्रमोद को टिकट दिलवाने की पुरजोर कोशिश में लगे हैं। सासाराम के सांसद छेदी पासवान भी बेटे को बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़वाना चाहते हैं। एनडीए के साथी रामविलास पासवान ने तो अपने बेटे चिराग पासवान को पार्टी की संसदीय बोर्ड का चेयरमैन बना दिया है। इसके अलावा पासवान ने अपने भाई पशुपतिनाथ पारस को अलौली सीट से एलजेपी का उम्मीदवार बनाया है। पासवान के भतीजे प्रिंस राज को भी सियासी राजकुमार बनाने के लिए चुनाव में उतार दिया है। पासवान की रिश्तेदार सरिता पासवान को सोनबरसा से एलजेपी का उम्मीदवार बनाया गया है। इसके अलावा पासवान की मेहरबानी अपने एक और करीबी विजय पासवान पर भी रही। उन्हें त्रिवेणीगंज से उम्मीदवार बनाया गया है।
अक्टूबर-नवंबर में होने वाले बिहार असेम्बली इलेक्शन के लिए बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंकने की तैयारी कर ली है। पार्टी प्रेसिडेंट अमित शाह खुद इसकी कमान संभालने पटना पहुंच चुके हैं। शाह अगले सात दिनों तक रुकेंगे। वे यहां होटल मौर्या में बीजेपी के 180 प्लस मिशन के लिए कैंपेन स्ट्रेटजी फाइनल करेंगे। बताया जा रहा है कि बिहार के लिए जो स्ट्रेटजी बनाई जा रही है वह पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी के लिए बनाई गई स्ट्रेटजी से भी ज्यादा बड़ी और कारगर होगी। शाह बीजेपी के नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं से कई दौर की बैठक करेंगे। पार्टी के कई बड़े नेता भी पटना पहुंच रहे हैं। बीजेपी सूत्रों के मुताबिक शाह ने वर्कर्स से इलेक्शन कैंपेन में ज्यादा फोकस अपने स्टार कैंपेनर्स की रैलियों पर करने को कहा है। इनमें पीएम मोदी, भीड़ को खींचने वाले विभिन्न बीजेपी शासित प्रदेशों के सीएम और स्वयं अमित शाह शामिल हैं। मोदी की 20 से 22 रैलियां कराने का प्लान बनाया जा रहा है। बीजेपी ने नए वोटर्स को रैलियों में लाने पर जोर दिया है। पार्टी का मानना है कि हर बूथ से 10 वोटर अपने आसपास रैलियों में शामिल होते हैं। यही लोग दूसरी रैलियों में भी जाते हैं, जिसे रोका नहीं जा सकता। इसलिए वर्कर्स को नए लोगों को रैलियों में लाना होगा। बीजेपी की प्लॉनिंग आगे भी सवाल-जवाब के सेशन पर है। पार्टी पहले भी इसका इस्तेमाल कर चुकी है। पार्टी वर्कर लोगों के साथ इस सेशन पर फोकस कर रहे हैं। लोकतंत्र में हर चुनाव महत्वपूर्ण होता है, लेकिन बिहार के दोनों गठबंधनों के लिए इस चुनाव के खास मायने हैं। इससे सिर्फ बिहार की भावी सत्ता का स्वरूप ही नहीं तय होगा, इसके नतीजे देश के भावी राजनीतिक समीकरण का भविष्य भी तय करेंगे।
-आरएमपी सिंह