नेशनल पार्क कैसे बन गए टाइगर के लिए काल
02-Oct-2015 10:08 AM 1234906

मध्य प्रदेश में एक बार फिर से बाघों की गणना होगी। भारतीय वन्य प्राणी अनुसंधान संस्थान देहरादून (डब्ल्यूआईआई) ने वन्य प्राणी गणना के लिए राज्य वन अनुसंधान संस्थान जबलपुर (एसएफआरआई) को नोडल सेंटर बनाया है। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी चार साल में देश के बाघों का आंकलन करता है जबकि एसएफआरआई हर साल टाइगर रिजर्व की रिपोर्ट राज्य शासन को भेजेगा। इस बार डब्ल्यूआईआई वन्य प्राणियों की गणना के साथ ही उनकी होने वाली असामयिक मौत के कारणों की भी पड़ताल करेगी। उल्लेखनीय है कि टाइगर स्टेट के रूप में विख्यात मप्र के नेशनल पार्क और अभयारण्य एक बार फिर से बाघों की दहाड़ से गुंजायमान हो रहे हैं। इसलिए आस जगी है की प्रदेश को फिर से टाइगर स्टेट का दर्जा हासिल हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश के 10 नेशनल पार्क तथा 25 अभयारण्यों के आसपास स्थित फार्म हाउस और रिजॉर्ट तस्करों का अड्डा बने हुए हैं। वन विभाग-नेशनल पार्क के अफसरों, सफदपोश लोगों, स्थानीय प्रशासन और तस्करों के गठजोड़ से मध्यप्रदेश में हर साल होने वाला वन्य जीव तस्करी का अवैध कारोबार करीब 7500 करोड़ रुपए से अधिक का है। वन विभाग के मैदानी कर्मचारियों के अनुसार पिछले डेढ़ दशक में प्रदेश में 383 बाघ और 362 तेंदुए के शिकार के मामले सामने आए हैं। यही नहीं नेशनल पार्क तथा अभयारण्यों के पास स्थित रिजॉर्ट में रोजाना वन्य प्राणियों का मांस पर्यटकों की इच्छानुसार परोसा जा रहा है। इसलिए इस बार की गणना के दौरान इनकी भी रिपोर्ट तैयार की जाएगी। प्रदेश में इस बार बाघों की गणना जबलपुर से होगी। वन अनुसंधान संस्थान में वर्तमान सत्र में वाइल्ड लाइफ रिसर्च सेक्शन शुरू हुआ है। इस प्रोजेक्ट से राज्य के वन कार्यालयों से एसएफआरआई का सीधा जुड़ाव हो जाएगा। अब तक देश के सभी राज्यों में वन्य प्राणियों की गणना सिर्फ डब्ल्यूआईआई करता था। अब 9 नेशनल पार्क, 6 टाइगर रिजर्व, 25 सेंचुरी व वन मंडल कार्यालयों से वन्य प्राणियों की रिपोर्ट एसएफआरआई में आएगी। प्रशिक्षित विशेषज्ञ सत्यता प्रमाणित करते हुए राज्य की रिपोर्ट तैयार करेंगे। दो साल तक देहरादून के वैज्ञानिकों की देख-रेख में गणना करनी होगी। वन्य प्राणियों की गणना के लिए एसएफआरआई के सात विशेषज्ञों ने अगस्त में डब्ल्यूआईआई में 15 दिन तक प्रशिक्षण लिया। इनमें कान्हा नेशनल पार्क के एसीएफ राघवेन्द्र विशेन, डॉ. अंजना राजपूत, डॉ. मयंक वर्मा, अनिरुद्ध सरकारी, रिचा सेठ, राकेश जैन व आनन्द राय शामिल हैं। इन्होंने बताया कि मांसाहारी वन्य प्राणियों की गणना के लिए ट्रैप कैमरा और शाकाहारी के लिए ट्रांजिट लाइन के तरीके सीखे गए। आधुनिक सॉफ्टवेयर से रिपोर्ट तैयार करने के लिए एसएफआरआई में राज्य के वन अधिकारियों की ट्रेनिंग होगी। एसएफआरआई के डायरेक्टर डॉ. जी कृष्णमूर्ति ने बताया कि वर्ष 2014 में हुई बाघों की गणना में सतपुड़ा टाइगर रिजर्व की रिपोर्ट को लेकर सवाल उठा था। इसलिए इस बार तमाम तरह की बारीकिया अपनाई जाएंगी। वन मंत्री गौरीशंकर शैजवार का कहना है कि बाघों की गणना के बाद स्थिति स्पष्ट हो जाएगी कि मध्यप्रदेश एक बार फिर से टाइगर स्टेट बनने की कगार पर पहुंच गया है। वह कहते हैं कि प्रदेश में बाघों के संरक्षण और संवर्धन के लिए तमाम उपाए किए गए हैं। इसी का परिणाम है कि पिछले कुछ साल में प्रदेश में बाघों की तादाद बढ़ी है। यह हमारे लिए शुभ संकेत है।

बनेगी अवैध कब्जे वाली जमीनों की कुंडली
प्रधानमंत्री कार्यालय और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की फटकार के बाद  प्रदेश सरकार ने फैसला किया है कि वह प्रदेश के नेशनल पार्कों और अभयारण्यों के आसपास के फार्म हाउसों की कुंडली तैयार करेगी, ताकि अवैध कब्जों को मुक्त कराया जा सके। प्रदेश के टाइगर रिजर्वों में बाघों की जगह रसूखदारों का कब्जा बढ़ता जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार, नेशनल पार्कों तथा अभयारण्यों के पास करीब 24 हजार एकड़ से अधिक वन क्षेत्र पर रसूखदारों ने कब्जा जमा रखा है, जिसका क्षेत्रफल निरंतर बढ़ता जा रहा है। बांधवगढ़ के ताला व मगधी कोर एरिया के घने जंगल में बने रिसोर्ट व फार्महाउस सरकारी, आदिवासियों व जंगल की जमीन पर मनमाना कब्जा कर तान दिया गया। ग्रामीणों का आरोप है राजस्व विभाग का निचला अमला खुलेआम अतिक्रमण को शह दे रहा है। कोर एरिया के बीच में किसी भी तरह का निर्माण पूरी तरह से प्रतिबंधित होने के बाद भी ताबड़तोड़ निर्माण कार्य से यहां बाघों का जीवन खतरे में पड़ गया है। टाइगर रिजर्व का कोर एरिया बाघों का घर होता है। ऐसे क्षेत्र में बाघ किसी भी तरह का मानवीय दखल बर्दास्त नहीं करते हैं, फिर भी जहां मन किया वहां रिसोर्ट व फार्महाउस के नाम पर अतिक्रमण किया गया।
-ज्योत्सना अनूप यादव

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