हर लाठी का हिसाब होगा और मुकम्मल होगा
02-Oct-2015 10:06 AM 1234855

अदालत की माननीय संज्ञा के लिए जनता में कोई इज्जत बची और ना ही आदेशों पर अंधी हुक्मफरमानी कर रहे प्रशासन और यूपी सरकार में इतनी गैरत बची कि उनके किसी नेता को माननीय कहा जाए? अखिलेश यादव के राज्य का तो विसर्जन हो गया समझो काशी में, अब मुलायम सिंह यादव ने मां का दूध पिया है तो बेटे की सत्ता बचाकर दिखा लें?Ó यही चंद शब्द थे। अदालत और सरकार के लिए। 23 सितंबर को वाराणसी में गंगा में गणपति विसर्जन के खिलाफ लाठीचार्ज में घायल एक शख्स के। लाठीचार्ज की घटना की जानकारी देते हुए पूरा गुस्सा ऐसा कि सुनते सुनते कान गरम, बीपी चरम और मोबाइल पसीने से तर। गालियों का अंबार चढ़ा दिया उन्होंने सत्ताधीशों के सिंहासन पर। काफी देर चुपचाप सुनते रहे, मनाया और समझाया लेकिन वह नहीं माने। बोलते रहे, बीच बीच में सुबकते रहे। हम सुनते रहे, सुनते गए क्योंकि सुनने के सिवाय कोई चारा भी नहीं था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र व धार्मिक नगरी वाराणसी में मूर्ति विसर्जन को लेकर विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। गणपति विसर्जन के दौरान संतों पर लाठीचार्ज का विरोध करते हुए दुर्गा पूजा आयोजन समिति ने नवरात्र में दुर्गा मूर्ति ना बैठाने का ऐलान किया है। विवाद गंगा में मूर्ति विसर्जन को लेकर है। हाईकोर्ट द्वारा गंगा नदी में मूर्ति विसर्जन रोकने के आदेश के बाद प्रशासन ने वाराणसी में गणपति भक्तों और संतों पर लाठीचार्ज की थी। इस घटना में घायल संत स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद अस्पताल से अपने आश्रम पहुंचे और वाराणसी के केदार घाट पर प्रशासन की मौजूदगी में गंगा की मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा का विसर्जन कर अपना विरोध
दर्ज किया।  गौरतलब है कि बीते दिनों वाराणसी के गोदौलिया चौराहे पर गणेश प्रतिमा के गंगा में विसर्जन की मांग को लेकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद अपने शिष्यों सहित धरने पर बैठे थे। 23 सितंबर को पुलिस की लाठीचार्ज में कई संत घायल हो गये थे। अस्पताल से निकलकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सनातनी परंपरा के साथ गणेश प्रतिमा का गंगा में विसर्जन कर अपना विरोध दर्ज किया। इस बीच, उत्तर प्रदेश सरकार ने लाठीचार्ज के मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दे दिए हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक वकील साहब से पूरे मामले पर निष्पक्ष राय मांगी गयी तो उन्होंने कहा, प्रशासन ने ज्यादती की है। अदालत ने मारने-पीटने का कोई आदेश नहीं दिया है। जो तस्वीरें आई हैं, उस पर तो अदालत मामले का संज्ञान लेकर खुद ही वाराणसी जिला प्रशासन को सूली टांग सकता है। यह तो सरासर कानून के खिलाफ काम हुआ है।Ó कानून के एक दूसरे जानकार इलाहाबाद हाईकोर्ट के के पूर्व जज से जब पूछा गया तो उनका जवाब था-अदालत का फैसला प्रदूषण रोकने के संबंध में है, मूर्ति विसर्जन से प्रदूषण फैल रहा है तो प्रतीकात्मक विसर्जन के जरिए रास्ता निकालना भी उपाय हो सकता है, इको फ्रेंडली मूर्तियां बनाकर, मिट्टी और गाय के गोबर के रंग से बनने वाली मूर्तियां, वाटर कलर और कुदरती रंगों से सजी मूर्तियों को अनिवार्य करके भी रास्ता निकाला जा सकता है। दूसरी बात पूजा-अर्चना के मौलिक अधिकार से जुड़ी है, विसर्जन उसी अधिकार से जुड़ी बात है, अदालत के फैसले को चुनौती दी जा सकती है। कल को कोई अदालत चिता की राख के विसर्जन पर बैन का आदेश दे या नदी किनारे दाह संस्कार पर ही प्रतिबंध लगा दे तो क्या आदेश माना जा सकता है?Ó काशी हिंदू विश्वविद्यालय के रिटायर प्रोफेसर ने भी तकलीफ व्यक्त की। कहने लगे-ऐसा बर्बर व्यवहार वाराणसी में संतों के साथ पहले नहीं देखा गया। छोटे छोटे बटुकों को दौड़ा दौड़ाकर पीटा गया। पुलिसिया तांडव सारी हदें पार कर गया, आदेश लागू कराने का ये तरीका तो सत्ता के दुरुपयोग की इंतेहा है। दोषी अफसरों को फौरन सस्पेंंड कर दिया जाना चाहिए।Ó दिल्ली में एक पर्यावरण विशेषज्ञ ने कहा-गंगा को बचाने के लिए कठोर फैसला वक्त की जरुरत है। नदी किनारे प्रदूषण फैलाने वाली सारी चीजें प्रतिबंधित होनी चाहिए।Ó वाराणसी की घटना से आहत पुजारी शंकरदेव ने तो झट जवाब में सवाल पूछ लिया कि-नदी में गिरने वाले सारे गंदे नाले अदालत के आदेश से रुक गए हैं क्या? गोमुख से गंगासागर तक इस नाफरमानी पर कहां कितनी लाठी चली? सीवर का गंदा पानी, टेनरियां, चमड़े की फैक्ट्रियां, कांच उद्योग समेत गंगा नदी के किनारे तमाम उद्योगों के कचरे के विसर्जन पर क्या पुख्ता तौर पर रोक लग चुकी है? अगर नहीं तो फिर वाराणसी में लाठी चार्ज क्यों?Ó  वो यहीं पर नहीं रुके, अदालत और सरकारों को आईना दिखाने की बेताबी में कहने लगे कि दिल्ली में यमुना पुल पर चढिए, और थोडी देर रुकिए, बदबू से चंद लम्हों में निढाल हो जाएंगे आप और हम। सुप्रीम कोर्ट के किसी जज ने कभी क्यों संज्ञान नहीं लिया और दिल्ली में बैठी सरकार के कारिंदों को कभी अपने अफसरों की बीते 60 साल से चल रही लापरवाही पर कभी कार्रवाई की सुध क्यों नहीं? जो सरकारी अफसर और लोग इस प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है, उन्हें सरे आम लाठियों से क्यों नहीं पीटा जाना चाहिए?Ó चलते-चलते शंकरदेव ने कहा, घाव भर जाएंगे लेकिन जो आग दिल में धधकी है, कभी नहीं बुझेगी। सैफई वंश के चिरागों को आप लोग संदेशा भिजवा दीजिए। वाराणसी में चली हर लाठी का हिसाब होगा और मुकम्मल होगा।
-लखनऊ से मधु आलोक निगम

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^