17-Sep-2015 07:03 AM
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समाजवाद के भगवा संस्करण के साथ भाजपा ने बिहार में महागठबंधन को एक झटका तो जरूर दे दिया है। विरोधाभास की खोखली राजनीति में विरोधियों में खुजलीÓ पैदा करना भी रणनीति का

अहम हिस्सा होता है और इस फ्रंट पर भाजपा सफल होती दिख रही है। मोदी और मुलायम के बीच की मुलायमियतÓ ने अच्छे-अच्छे राजनीतिक विश्लेषकों का आंकलन बिगाड़ दिया है। कहां कल्पना एक महाविलय की और तत्काल व्यवस्था गठबंधन की, और फिर अभिभावक मुलायम सिंह आखिरकार कठोरता से अलग भी हो गए। अलग ही नहीं हो गए, अलग से मोर्चाबंदी भी शुरू कर दी। समाजवादी पार्टी बिहार में महागठबंधन से अलग होकर और जरूरत पड़ी तो तीसरा मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ेगी। क्या ये बताने की जरूरत है कि किसको फायदा होगा और किसको नुकसान। मगर यहां नफा नुकसान वोटों का मत जोडि़ए। यहां संदेशों की राजनीति है। ये झटका धरातल पर उतना बड़ा नहीं है जितना कि दिख रहा है।
बिहार में मुलायम सिंह के साथ होने का सिर्फ और सिर्फ एक मतलब था, मोदी के खिलाफ एकजुटता। महागठबंधन के सीट बंटवारे से नाराज समाजवादी पार्टी के बिहार अध्यक्ष ने मुलायम सिंह को सत्ताइस सीटों की सूची सौंपी थी। लालू और नीतीश चाहते तो थोड़ा-बहुत एजस्ट करके उन्हें टिका सकते थे, लेकिन मुलायम सिंह को फोर ग्रान्टेड लिया गया और नेताजी शायद यही चाहते भी थे।
मुलायम सिंह यादव यानि नेताजी पर नजर रखने वाले जानते हैं कि वो भारतीय राजनीति के इतिहास में सबसे चतुर खिलाडिय़ों में से एक हैं और नेताजी जानते हैं कि उन्हें अपने पत्ते कब तक फेंटते रहना है और कब कहां फेंकना है। लोकसभा चुनाव के बाद देश की बदली राजनीतिक परिस्थितियों में नेता जी जो पत्ते फेंक रहे हैं वो 2017 के यूपी चुनाव में खुलकर सामने आएंगे। सीधे तौर पर कुछ भी कहना मुश्किल है क्योंकि नेताजी भी सीधे तौर पर कुछ नहीं कहते। लेकिन नेताजी मानते हैं कि अगर आप राजनीति में हैं और आपके हाथ में सत्ता की ताकत नहीं हैं तो ये एक तरह से वक्त की बर्बादी है। केन्द्र सरकार के तोते (सीबीआई) से यूपी के राजनेताओं का खौफ भला कौन नहीं जानता और यूपी में अखिलेश की सरकार ने ऐसा कोई काम नहीं किया है जिससे 2017 के चुनाव में वापसी की उम्मीद बंधे।
समाजवादी पार्टी के इस निर्णय से महागठबंधन को सबसे बड़ा नुकसान पूवांचल में ही संभावित है, इसके कारण भी स्पष्ट हैं। पहली अहम बात यह है कि इस इलाके में यादव-मुस्लिम समुदाय में पप्पू यादव की पकड़ को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। साथ ही इस क्षेत्र का यादव समुदाय लालू यादव के साथ कभी भी बहुत सहज नहीं रहा है, शरद यादव की जीत और लालू यादव की हार से इसे समझा जा सकता है।
दूसरी अहम बात.. जो इस क्षेत्र में लोगों के बीच अपने बिताए गए अनुभव के आधार पर मैं कह रहा हूँ, इस इलाके के यादव खुद को बिहार के अन्य इलाकों के यादवों से, प्रबुद्ध, ऊपर का और अभिजात्य मानते हैं और इसी संदर्भ में एक लोकोक्ति भी काफी प्रचलित है रोम का (में) पोप और मधेपुरा का (में) गोप। इस इलाके का यादव समुदाय बिहार के अन्य इलाकों के यादवों की तुलना में पहले से समृद्ध भी रहा है और यादवों की सही मायनों में जमींदारी बिहार में कहीं भी रही है तो वो इसी इलाके में रही है और इसी पृष्ठभूमि की मानसकिता के साथ इस इलाके के यादव समुदाय का एक बड़ा हिस्सा मुलायम सिंह परिवार को अपने विस्तृत व प्रोग्रेसिव स्वरूप के रूप में भी देखता है।इस संदर्भ में तीसरी सबसे अहम बात यी है कि अगर समाजवादी पार्टी अपने पूरे दम-खम के साथ चुनावों में उतरती है और उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव के सघन चुनावी दौरे बिहार में होते हैं तो यादव समुदाय के युवा तबके का एक बड़ा हिस्सा अगर समाजवादी पार्टी के साथ खड़ा हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं ! बिहार के युवा यादवों की एक बड़ी आबादी अखिलेश यादव को अपने रोल-मॉडल के रूप में देखती है और संवाद के दौरान ये खुले तौर पर कहती है कि लालू जी के दोनों पुत्रों में अखिलेश वाली बात नहीं है।
चौथी अहम बात जो दिखती है वह यह कि अगर ओवैसी की पार्टी पूर्वांचल बिहार या बिहार के अन्य मुस्लिम बहुल या निर्णायक संख्या वाले मुस्लिम आबादी के क्षेत्रों से अपने उम्मीदवार खड़े करती है ( अगर सूत्रों से मिल रही जानकारी और ओवैसी के किशनगंज के सम्बोधन को आधार मानें तो ये लगभग तय ही है ) और तारिक अनवर के नेतृत्व में एनसीपी समाजवादियों के साथ आती है तो ऐसे में मुस्लिम मतों में चतुष्कोणीय विभाजन का नुकसान महागठबंधन के हिस्से में ही जाते दिखता है और वोट बंटने का भाजपा को सीधा फायदा होता दिखता है। बिहार के भिन्न इलाकों से मिल रही खबरों, जानकारियों एवं अपने और अपनी टीम के लोगों के द्वारा आम जनता से किए गए सीधे संवादों के विश्लेषण के पश्चात मैं ये कह सकता हूँ कि व्यापक संदर्भ में देखा जाए तो जैसी परिस्थितियाँ बन रही हैं, सारी विचारधारा को ताखे पर रखकर जंग में सब कुछ जायज हैÓ का पालन करते हुए जैसे बिल्कुल ही नए और चौंकाने वाले समीकरणों के साथ भाजपा चुनावी समर में आगे बढ़ रही अगर इनमें कोई बड़ा फेरबदल चुनावों के पहले नहीं होता है तो आज की तारीख में बिहार में महागठबंधन की सत्ता में वापसी की राह में अनेकों रोड़े हैं और सत्ता हाथों से जाती ही दिखती है।
-लखनऊ से मधु आलोक निगम