02-Oct-2015 09:48 AM
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मध्य प्रदेश में एक बार फिर से चुनावी माहौल बन रहा है। झाबुआ संसदीय सीट सहित मैहर और देवास विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। लगातार चुनावी जीत हासिल करने वाली भाजपा के साथ ही कांग्रेस के लिए भी ये उपचुनाव अग्रिपरीक्षा से कम नहीं हैं। भाजपा को इन चुनावों में यह दिखाना है कि प्रदेश में हो रहे विकास कार्य तथाकथित भ्रष्टाचार के आरोपों पर भारी है। वहीं कांग्रेस को दिखाना है कि वह प्रदेश में भले ही मृतप्राय है लेकिन उसकी राख में अभी भी आग सुलग रही है और वह कभी भी विकराल स्प धारण कर सकती है। यानी ये तीनों उपचुनाव कांग्रेस और भाजपा के लिए इज्जतÓ के उपचुनाव हैं।
प्रदेश में विधानसभा, लोकसभा, नगरीय निकाय, पंचायत और उप चुनाव में लगातार हार का सामना कर रही कांग्रेस अभी भी बेदम दिख रही है। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव पार्टी में दम भरने के लिए भरपूर कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए अभी हाल ही में उन्होंने प्रदेश कार्यकारिणी की घोषणा की, लेकिन कार्यकारिणी में शामिल होने से वंचित रहने वाले कांग्रेसी बगावत पर उतर गए। हालांकि जैसे-तैसे माहौल को ठंडा कर लिया गया है। अब कांग्रेस के पदाधिकारी तीनों उप चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं, लेकिन अभी भी मैदान में उनका दम नजर नहीं आ रहा है। वहीं सत्तारूढ़ भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार सिंह चौहान के अलावा संघ और संगठन के पदाधिकारी भी मोर्चा संभाल चुके हैं। मुख्यमंत्री ने तो उप चुनाव वाले क्षेत्रों में सौगातों की बारिश भी कर दी है।
आदिवासी बहुल क्षेत्र झाबुआ में तो भाजपा और कांग्रेस के संभावित प्रत्याशी एक ही घर के होने के कारण मुकाबला रोचक होने का अनुमान है, लेकिन इस क्षेत्र के पेटलावद में हुए ब्लास्ट का असर भाजपा पर पड़ सकता है। हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस असर को कम करने के लिए यहां जमकर सरकारी खजाना लुटाया है। उधर कांग्रेस भी इस हादसे का फायदा उठाने में जुट गई है। यहां पर कांग्रेस की तरफ से कांतिलाल भूरिया और भाजपा की तरफ से निर्मला भूरिया का नाम लगभग तय है। वहीं देवास विधानसभा सीट पर होने वाले उप चुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित मानी जा रही है। दोनों पार्टियों में असली मुकाबला मैहर में होने वाला है। मैहर उपचुनाव भाजपा और कांग्रेस के लिए इज्जत का सवाल बन गया है। भले ही अभी उप-चुनाव की तिथियां तय नहीं हुई हैं और प्रत्याशी भी अधिकृत तौर पर घोषित नहीं हुए हैं, लेकिन मैहर की फिजा चुनावी होने लगी है। भाजपा और कांग्रेस पार्टी की सक्रियता बढ़ गई है। दोनों दलों के नेता यहां की नब्ज टटोलने में जुट गए हैं। उधर, संकेत तो यह मिले हैं कि जल्द भी भाजपा मैहर में लगातार मंत्रियों के दौरे करवा कर जनता को अपने पक्ष में लाने की तैयारी कर रही है। भाजपा अंदरखाने से मिली जानकारी को सही माने तो नारायण त्रिपाठी का भाजपा से प्रत्याशी बनना तय है। लेकिन यही प्रत्याशी चयन पार्टी के लिए गले की हड्डी बन सकता है। इसकी जो वजह सामने आ रही है, उसमें वर्षों से पार्टी में रहे मोतीलाल तिवारी और रमेश पाण्डेय जहां अपना राजनीतिक कैरियर छिनता महसूस कर सकते हैं वहीं कुछ आश्वसनों के तहत भाजपा में आए श्रीकांत चतुर्वेदी भी खुद को ठगा सा महसूस करेंगे। ऐसे में इनसे नारायण के पक्ष में बहुत उम्मीद भाजपा के रणनीतिकारों को भी नहीं है। इनका डैमेज कंट्रोल भी खोजा जा रहा है। दूसरी बड़ी समस्या जो भाजपा के सामने आ रही है वह है कि भाजपा का कार्यकर्ता। चूंकि नारायण की मैहर में अपनी अलग धारा है जो भाजपा के कार्यकर्ताओं से ज्यादा भरोसे की उनके लिए है। ऐसे में जब मैदान में नारायण के अपने कार्यकर्ता आते हैं तो भाजपा के कार्यकर्ताओं को दोयम दर्जा महसूस होता है। यह लड़ाई भी कठिन साबित हो सकती है।
कांग्रेस सुस्त बैठी, भाजपा का हो गया आधा प्रचार
उपचुनावों का डंका पिट चुका है और प्रशासन ने वोटिंग मशीनों का परीक्षण भी करा लिया है। बस, लोगों को चुनाव की तारीख घोषित होने का इंतजार है। जब तक चुनाव की तारीख तय नहीं होती तब तक कांग्रेस हाथ में हाथ धरे बैठी है। उधर भाजपा इन क्षेत्रों में आधा से ज्यादा चुनाव प्रचार कर चुकी है। पिछले एक महीने के भीतर मुख्यमंत्री से लेकर प्रदेश के दिग्गज मंत्री यहां का दौरा कर चुके हैं। इसके अलावा दूसरे मंत्री अभी भी लगातार आते जा रहे हैं। जबकि कांग्रेस की ओर से एक परिंदा भी घर से बाहर नहीं निकला है। ऐसे में भाजपा के संभावित प्रत्याशी को इसका पूरा फायदा मिल रहा है।
रणनीति तैयार कर रही कांग्रेस
कांग्रेस इन कमियों को पूरी तरह से नजर में रख कर अपनी रणनीति तैयार कर रही है। जहां तक अभी बात जो कांग्रेस के सूत्रों से सामने आ रही है उसमें कांग्रेस अपना दाव मनीष पटेल पर लगाने सोच रही है। उसका मानना है कि मैहर चुनाव में ब्राह्मण और पटेल वर्ग महती भूमिका निभाता है। ऐसे में यदि पटेल प्रत्याशी हो जाता है तो संभावनाएं काफी हद तक उनके पक्ष में आ सकती हैं। भाजपा के लिये रामनिवास उरमलिया भी गले की हड्डी बन रहे हैं। सांसद खेमे के माने जाने वाले उरमलिया ने जिस तरीके से विरोधी रुख अख्तियार किया है उससे कांग्रेस की बांछे खिली हुई हैं। माना जा रहा है कि वे दबंगी से विरोध करने का साहस रखते हैं तो नारायण से नाखुश ब्राह्मण वोटरों को भी भाजपा से दूर ले जा सकते हैं।
-विकास दुबे