02-Oct-2015 08:45 AM
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एमआईएम की निगाह खास कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर है। यह वही हिस्सा है जहां मुजफ्फरनगर दंगे के बाद काफी सांप्रदायिक धु्रवीकरण देखा गया था। ओवैसी के भड़काऊ भाषणों, याकूब मेमन

को फांसी का विरोध और हिंदुत्व के झंडाबरदारों के खिलाफ उनकी बयानबाजियों ने उन्हें प्रदेश के युवा मुस्लिमों के एक तबके में लोकप्रिय बना दिया है। ओवैसी की एंट्री से एसपी ही नहीं बीएसपी और कांग्रेस के माथे पर भी शिकन पड़ी है। ये सभी पार्टियां मुसलमानों का वोट हासिल करती रही हैं। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, हमें नहीं मालूम की कितना असर पड़ेगा लेकिन एमआईएम का यूपी आना चिंता की बात है।Ó कुछ राजनीतिक पंडितों को लगता है कि एमआईएम कुछ खास प्रभाव नहीं छोड़ पाएगी। पार्टी का हाल अपना दल जैसा होगा। जोरशोर से जिसकी शुरुआत हुई और जिसे मिटते भी देर नहीं लगी। लेकिन, अगर ओवैसी की पार्टी के यूपी आने से कोई खुश है तो वह है बीजेपी। पार्टी को लगता है कि ओवैसी के आने से और अधिक सांप्रदायिक ध्रुवीकरण होगा और इसका फायदा उसे मिलेगा। हिंदू बीजेपी के पीछे गोलबंद हो जाएंगे। साथ ही इससे एसपी, बीएसपी और कांग्रेस के वोट और बंट जाएंगे।
अपने ऊटपटांग बयानों, हिंदू विरोधी गतिविधियों और विवादों के कारण चर्चा में रहने वाले ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एमआईएम) सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी देश में हिंदू-मुस्लिम एकता लिए सबसे बड़ा खतरा माने जा रहे हैं। वे देश में एक ऐसे नासूर का रूप लेते जा रहे हैं जिसके कारण वह जहां भी जाते हैं वहां वर्ग-संघर्ष की स्थिति बनती जा रही है। ऐसे में उन्होंने इस बार बिहार और उत्तरप्रदेश का रूख किया है। उन्होंने बिहार के विधानसभा और उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में ताल ठोंकने की घोषणा कर दी है। इससे बिहार के सीमांचल की राजनीति में हलचल पैदा हो गई है। जहां एक ओर ओवैसी के विरोधी यह कह रहे हैं कि ओवैसी के कारण भाजपा के धर्म के आधार पर वोटरों का ध्रुवीकरण तेज हो जाएगा और इसका प्रत्यक्ष लाभ भाजपा को मिलेगा। वहीं दूसरी ओर सूबे के जाने माने गांधीवादी चिंतक डॉ. रजी अहमद के मुताबिक ओवैसी बिहार के लिए कोई फैक्टर नहीं हैं। उनका यह भी कहना है कि इससे पहले भी भाजपा धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण करने का प्रयास करती रही है। अब ओवैसी के आने से नया कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वहीं जाने-माने समाजशास्त्री अरशद अजमल के मुताबिक ओवेसी के कारण सीधे तौर पर भाजपा को लाभ मिलेगा। इसकी वजह यह है कि जब-जब धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण हुआ है, भाजपा की स्थिति मजबूत हुई है और जिस हिस्सेदारी की बात ओवैसी कह रहे हैं, वह बढऩे के बजाय घटती है। अजमल ने बताया कि विधानसभा में हिस्सेदारी के लिहाज से देखें तो यह बात समझ में आती है।
मसलन मुसलमानों की हिस्सेदारी कब-कब बढ़ी। जैसे वर्ष 1977 में संपूर्ण क्रांति आंदोलन के लहर में भी विधानसभा में मुसलमानों की हिस्सेदारी 7.72 फीसदी थी। सबसे अधिक हिस्सेदारी वर्ष 1985 में सामने आई थी, जब 34 मुसलमान विधानसभा पहुंचे थे। उसके बाद से इस हिस्सेदारी में कमी आई है। लालूप्रसाद के कार्यकाल में मुसलमानों की हिस्सेदारी विधान परिषद में बढ़ी, परंतु विधानसभा में हिस्सेदारी घटकर 9.87 फीसदी रही। हालांकि लालू के बाद जब जदयू और भाजपा की सरकार अस्तित्व में आई तब यह घटकर 6.58 फीसदी हो गई। अजमल के मुताबिक मुसलमानों की हिस्सेदारी उनकी आबादी के लिहाज से बढऩी चाहिए। ऐसी मांग हिन्दू धर्म के कई जातियों द्वारा समय-समय पर की जाती रहती है, इसलिए मुसलमानों की हिस्सेदारी भी बढऩी चाहिए, यह कहना गलत नहीं है, परंतु सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि यदि धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण होते हैं तो इसका नुकसान मुसलमानों को ही होता है। लोकतंत्र में उनकी प्रत्यक्ष हिस्सेदारी घटती है। अब चूंकि ओवैसी सीमांचल की राजनीति चुनाव आने पर कर रहे हैं तो ऐसे में यह सवाल तो उठता ही है कि वे जिस तरह की भाषा और राजनीतिक शैली के लिए जाने जाते रहे हैं, उसका सीधा लाभ तो भाजपा को ही मिलेगा। उधर, उत्तर प्रदेश में देश के सबसे बड़े त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की तैयारी शुरू हो गई है। अल्पसंख्यकों की बैसाखी के सहारे चुनाव जीतने का अरमान पाल रखी सपा और बसपा की खुमारी को असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एमआईएम ने पंचायत चुनाव लडऩे की घोषणा करके उतार दी है। उधर, सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी ने पंचायत चुनावों को देखते हुए प्रदेश की जनता को आकर्षित करने के लिए पूंजी निवेश का महौल बनाने में जुटे हुए हैं, वही इस बार बसपा भी जोरदार तैयारी के साथ मैदान में उतरने जा रही है। अभी पंचायत चुनाव सिर पर है और इस चुनाव को जीतना समाजवादी पार्टी की प्रतिष्ठा के लिए अत्यंत जरूरी है। लेकिन एमआईएम की चुनाव लडऩे की घोषणा के बाद सपा में बेचैनी है।
एमआईएम के पंचायत चुनाव में उतरने की योजना से भाजपा में खुशी और सपा में बेचैनी है। एमआईएम के सूत्रों ने बताया कि असदुद्दीन ओवैसी ने पंचायत चुनाव लडऩे के विचार को हरी झंडी दिखा दी है। अपने उग्र विचारों के लिए मशहूर एमआईएम अपने प्रत्याशियों के चयन और चुनावी रणनीति पर मंथन कर रही है। पंचायत चुनाव यह बता देंगे कि उत्तर प्रदेश में कौन कितने पानी में है। ओवैसी की पार्टी का मानना है कि 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले इस चुनाव का खास महत्व है। ओवैसी लंबे अर्से से राज्य में कदम जमाना चाह रहे हैं। समाजवादी पार्टी की सरकार उन्हें तीन बार रैली करने की इजाजत देने से मना कर चुकी है। हालांकि इफ्तार पार्टियों के नाम पर ओवैसी आगरा और मेरठ जा चुके हैं। दोनों ही शहरों में मुस्लिम मतदाता अच्छी संख्या में हैं। एसपी को लगता है कि एमआईएम उसके भरोसेमंद मुस्लिम जनाधार में सेंध लगाएगी। यही हाल बसपा का भी है। अब देखना है कि दोनों राज्यों में ओवैसी फैक्टर किस-किस की लुटिया डूबोता है।
-विनोद उपाध्याय