नहीं मिले जवाब खड़े हुए कई सवाल
02-Oct-2015 08:40 AM 1234851

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जब पहली बार 18 सितंबर को नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने का एलान किया, तो लोगों के मन में एक उम्मीद थी कि अब नेताजी की मौत का रहस्य खुल जायेगा। लेकिन, 64 फाइलों के सार्वजनिक होने से सवालों के जवाब मिलने के बजाय कई नये सवाल खड़े हो गये। यही वजह है कि नेहरू एंड बोस: पैरालेल लाइव्सÓ के लेखक रुद्रांशु मुखर्जी ने ममता बनर्जी की इस कवायद को खोदा पहाड़ निकली चुहिया की संज्ञा दी है।  मुखर्जी लिखते हैं कि नेताजी ने अपने जीवन काल में सबको हैरान किया। 1930 के दशक में कांग्रेस में महात्मा गांधी का वर्चस्व खत्म कर   सबको चौंकाया, तो 1941 में 24 घंटे उनके घर के बाहर पहरा दे रहे पुलिसकर्मियों को चकमा देकर कोलकाता के एल्गिन रोड स्थित अपने आवास से भाग गये। किसी को कानोंकान खबर तक नहीं हुई कि वह कब अफगानिस्तान के काबुल और जर्मनी के बर्लिन पहुंच गये। फिर सिंगापुर रेडियो से आइ एम सुभाष स्पीकिंगÓ का संदेश देकर लोगों को चौंकाया।

आजादी के नायक 1945 के बाद कभी सामने नहीं आये। रुद्रांशु कहते हैं कि इतिहासकार मानते हैं कि ताइपे में एक विमान दुर्घटना में नताजी की मृत्यु हो गयी। लेकिन, उनके समर्थकों ने कभी इस खबर पर विश्वास नहीं किया। उनका मानना था कि नेताजी भूमिगत हो गये हैं और उचित समय पर प्रकट होंगे। इसके बाद तरह-तरह की कहानियां गढ़ी गयीं। आजादी के लंबे अरसे बाद नेताजी की मौत का रहस्य सामने लाने की मांग उठी, तो सरकारों ने विदेश नीति का हवाला देते हुए इस मांग को मानने से इनकार कर दिया। ममता बनर्जी ने 64 फाइलों को सार्वजनिक किया, लेकिन कोई ठोस तथ्य सामने नहीं आया, जैसा कि लोगों को उम्मीद थी। नेताजी की मृत्यु का सच भी उजागर नहीं हुआ। 12 हजार से अधिक पन्नों की फाइलों में कुछ फाइल ऐसे हैं, जिसमें नेताजी के संबंध में आइबी की साप्ताहिक रिपोर्ट (1946 के शुरुआत तक की) हैं। कुछ खत हैं, जो शरत बोस को नेताजी की कथित विधवा एमिली ने लिखी। लक्ष्मी स्वामीनाथन की वापसी और आजाद हिंद फौज के सैनिकों से जुड़ी कुछ फाइलें भी हैं।
रुद्रांशु कहते हैं कि जिन फाइलों के सार्वजनिक होने से नेताजी से जुड़े तमाम सच सामने आने की उम्मीद थी, उसने कई सवाल खड़े कर दिये हैं। सिर्फ एक नया तथ्य सामने आया है कि तृणमूल कांग्रेस की भूतपूर्व सांसद कृष्णा बोस के पति शिशिर बोस के खतों की वर्ष 1972 तक आइबी ने निगरानी की, क्यों? रुद्रांशु कहते हैं कि जब फाइलों में कोई महत्वपूर्ण जानकारी थी ही नहीं, तो इन्हें गोपनीय क्यों रखा गया? ममता ने क्यों इसे सार्वजनिक किया? रुद्रांशु कहते हैं कि नेताजी के बारे में सच उजागर करना ममता बनर्जी का उद्देश्य नहीं है। ऐसा होता, तो बहुत पहले फाइलें सार्वजनिक हो जातीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 सितंबर को अपने मन की बात में इसे अपने लिए बड़ी खुशी का मौका बताया कि अगले महीने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के 50 से ज्यादा परिजन प्रधानमंत्री निवास आएंगे। लेकिन उन्होंने नेताजी से संबंधित फाइलों का कोई जिक्र नहीं किया। पूरी संभावना है कि नेताजी के परिजन इन फाइलों को जारी करने की मांग प्रधानमंत्री के सामने रखेंगे, जबकि मोदी सरकार इससे इनकार कर चुकी है। तीन हफ्ते पहले केंद्र ने साफ-साफ कहा कि नेताजी से संबंधित फाइलों को जारी नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे दूसरे देशों से भारत के संबंधों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। एक साल पहले खुफिया ब्यूरो ने भी आरटीआई कानून के तहत उसके पास मौजूद फाइलों को देने से मना कर दिया था। पिछले 18 अगस्त को गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने फेसबुक पेज के जरिए पुण्यतिथि पर सुभाष चंद्र बोस को श्रद्धांजलि दी। 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू में हुए विमान हादसे में ही नेताजी की मृत्यु होने की घोषणा की गई थी। लेकिन उनके कई परिजन और अनेक भारतवासी इस बात पर यकीन नहीं करते। जाहिर है, गृह मंत्री की टिप्पणी से नेताजी के ऐसे मुरीद नाराज हुए। यही पृष्ठभूमि है जिसमें बीते 18 सितंबर को पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस सरकार ने नेताजी से जुड़ी 64 फाइलें जारी कर दीं। इसके तुरंत बाद भाजपा महासचिव सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि राज्य सरकार के पास मौजूद ज्यादातर फाइलों का संबंध कांग्रेस सरकार द्वारा नेताजी के परिवार की जासूसी कराने से है, जबकि केंद्र के पास मौजूद फाइलें चार दूसरे देशों से संबंधित हैं। साफ है, ममता बनर्जी ने भले अपनी सरकार के इस फैसले को ऐतिहासिक बताया हो, मगर जारी फाइलों से नेताजी की मृत्यु का रहस्य सुलझने की न्यूनतम संभावना है।
दरअसल, इनसे सिर्फ दो जानकारियां मिलती हैं। अमेरिकी और ब्रिटिश खुफिया संदेशों के हवाले से इनमें ऐसी चर्चा दर्ज है कि 1945 में मौत की घोषणा के बाद भी नेताजी शायद जीवित थे। लेकिन ऐसी चर्चाएं पिछले 70 साल से जारी हैं। दूसरी सूचना यह है कि 1972 तक नेताजी के परिवार की जासूसी हुई। मगर यह जानकारी भी हाल में केंद्र के हवाले से सार्वजनिक हो चुकी है। इसीलिए यह मानने का ठोस कारण है कि ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव से छह महीने पहले इन फाइलों के जरिए राजनीतिक चाल चली है।
कोलकाता से इन्द्र कुमार

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