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02-Oct-2015 08:33 AM 1234901

प्रदेश में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए सरकार ने पांच नए मेडिकल कॉलेज बनाने के लिए जमीन तो दे दी लेकिन फंड के अभाव में कॉलेजों का निर्माण अधर में लटका हुआ है। इन कॉलेजों का निर्माण 2017 में पूरा होना है, लेकिन अभी तक तो कुछ कॉलेजों की बिल्डिंग निर्माण के लिए टेंडर भी नहीं हुए हैं। इससे संभावना जताई जा रही है कि प्रदेश में अगले साल भी नए मेडिकल कॉलेज शुरू नहीं हो पाएंगे। दरअसल, प्रदेश सरकार इन कॉलेजों का निर्माण बीओटी मॉडल से कराना चाहती है, लेकिन केन्द्र टेंडर प्रक्रिया से। इसलिए केंद्र और राज्य के नियमों के फेर में कॉलेज भवनों के निर्माण का कार्य अटक गया है।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में सरकार विदिशा, रतलाम, दतिया, शहडोल और खंडवा में मेडिकल कॉलेज खोलने जा रही है। सरकार ने इन कॉलेजों में डीन की नियुक्ति भी कर दी है ताकि वे यहां इन कॉलेजों के पत्राचार और बिल्डिंग निर्माण की देखभाल कर सके, लेकिन अभी तक इन कॉलेजों के निर्माण के लिए फंड मुहैया नहीं कराया गया है। यही नहीं इन कॉलेजों के निर्माण के लिए टेंडर की प्रक्रिया वर्ष 2014 में प्रारंभ कर दी गई थी। परंतु सरकते-सरकते अब यह हाल हो गया कि 2016 सिर पर आ खड़ा हुआ है और कॉलेजों की नींव तक नहीं डल पाई है। बताया जाता है कि अभी तक केवल टोकन मनी दी गई है। निर्माण कार्यों का पूरा बजट अगले बजट वर्ष 2016 में किया जाएगा। ऐसे में सवाल उठता है कि जब पैसा ही नहीं रहेगा तो कॉलेज कैसे बनेंगे। बताया जाता है कि कुछ दिन में ही मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया इन कॉलेजों के निर्माण की वस्तु स्थिति जानने के लिए दौरा करने वाली है। न तो बिल्डिंग का निर्माण हुआ है और न ही होस्टल का ऐसे में इस निरीक्षण के दौरान एमआईसी की टीम को क्या दिखाया जाएगा। अब नवागत प्रभारी संचालक डॉ. जी.एस.पटेल को समझने में वक्त लगेगा। और कुछ ही दिन में यहां पर डॉक्टर के ऊपर एक आईएएस की नियुक्ति हो जाएगी। दतिया और खंडवा में 100-100 सीट मेडिकल कॉलेज पीडब्लयूडी का पीआईयू (प्रोजेक्ट क्रियान्वयन इकाई) 189 करोड़ रूपए प्रति यूनिट की लागत से बनाएगा। एमपीआरडीसी ने पहले शहडोल में 100 सीटर 456.69 करोड़, रतलाम में 150 सीटर 412.69 करोड़ और विदिशा में 150 सीटर मेडिकल कॉलेज के लिए 439.58 करोड़ में पीपीपी मोड पर मेडिकल कॉलेज बनाने का प्रस्ताव दिया था। तात्कालिन प्रमुख सचिव तिर्की के प्रस्तावित लागत पर विरोध के बाद यही राशि क्रमश: 251.46, 298.80 और 311.24 करोड़ कर दूसरा प्रस्ताव 27 जनवरी को समिति की बैठक में लाया गया। इस बार भी तिर्की ने कड़ी आपत्ति उठाई, लेकिन बैठक में मौजूद सभी आला अफसरों ने उन्हें चुप करा दिया। सभी ने कहा कि आप तो कैबिनेट के लिए प्रस्ताव बनाकर लाओ हम मंजूर करवा देंगे। बताया जाता है कि अंतत: अब  विदिशा में निर्मित होने वाले कॉलेज के लिए 3 सौ करोड़, दतिया कॉलेज के लिए 150 करोड़, रतलाम कॉलेज के लिए 298 करोड़, शहडोल कॉलेज के लिए 249 करोड़ और खंडवा कॉलेज के लिए 172 करोड़ का बजट रखा गया है। संभावना जताई जा रही है कि प्रदेश के लिए स्वीकृत विदिशा, रतलाम, दतिया, शहडोल और खंडवा मेडिकल कॉलेज 2016-17 के सत्र से शुरू नहीं हो पाएंगे। इसकी मुख्य वजह कॉलेजों का भवन निर्माण भूमिपूजन के डेढ़ साल बाद भी शुरू नहीं होना है। अभी यह भी तय नहीं है कि निर्माण कब शुरू होगा और कौन करेगा। इस स्थिति में प्रदेश में मौजूदा सत्र से एमबीबीएस की बढऩे वाली 300 से 450 सीटें उलझती नजर आ रही हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने ठीक विधानसभा चुनाव से पहले 2013 में विदिशा, रतलाम और शहडोल में मेडिकल कॉलेज स्वीकृत किए थे। उसी समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तीनों कॉलेजों का भूमिपूजन करते हुए अगले एक साल में कॉलेज शुरू होने की घोषणा की थी। वित्तीय वर्ष 14-15 में केंद्र की यूपीए सरकार ने पूरक बजट में इन कॉलेजों के लिए 80 फीसदी राशि में से 179 करोड़ रुपए आवंटित भी कर दिए थे। 20 फीसदी राशि प्रदेश सरकार को देना है। तीनों जगह कॉलेज भवन बनाने के लिए टेंडर फाइनल हो गए हैं। मप्र रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन को यह काम मिला है। यह सारी प्रक्रिया पूरी होने बाद अब मामला केंद्र और राज्य के नियमों के बीच उलझ गया है। दोनों सरकारों की निर्माण शर्ते अलग-अलग हैं। चिकित्सा शिक्षा संचालनालय के अधिकारियों के मुताबिक इसमें बड़ी दिक्कत यह आ रही है कि रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन पूरे काम बिल्ड ऑपरेट एंड ट्रांसफर (बीओटी) तरीके से करता है। यानी, निर्माण के बाद संचालन भी निर्माण करने वाली कंपनी के पास रहता है। प्रदेश में कॉरपोरेशन द्वारा बनाए गए टोल नाके भी इसी तर्ज पर चल रहे हैं। राज्य सरकार का कहना है अपने हिस्से की राशि लगाने के बाद मेडिकल कॉलेजों का संचालन भी वह खुद करेगी, पर केन्द्र इसके लिए मानने को तैयार नहीं है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि बीओटी मोड पर अनुदान देने का प्रावधान नहीं है। इस वजह से इन कॉलेजों का निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पा रहा है। गौरतलब है कि इन जिलों के जिला अस्पतालों को नए मेडिकल कॉलेजों से संबद्ध किए जाएंगे, जिससे अलग से अस्पताल नहीं बनाना पड़ेंगे।
दो और मेडिकल कॉलेज
को केंद्र से हरी झंडी
लंबी खींचतान के बाद आखिरकार शिवपुरी और छिंदवाड़ा में मेडिकल कॉलेज खुलने का रास्ता साफ हो गया है। केंद्र सरकार ने दोनों मेडिकल कॉलेज के एमओयू पर हस्ताक्षर कर दिए हैं, वहीं राज्य सरकार से डीपीआर भेजने को कहा है, जिससे प्रति मेडिकल कॉलेज के निर्माण पर आने वाले खर्च 189 करोड़ में से 75 प्रतिशत राशि यानि 141.75 करोड़ रूपए आवंटित करने का शेड्यूल बन सके । चिकित्सा शिक्षा विभाग ने दोनों मेडिकल कॉलेजों की डीपीआर बनाने की कवायद शुरू कर दी है। संभावना है कि दोनों मेडिकल कॉलेजों के निर्माण की जिम्मेदारी हाउसिंग बोर्ड को सौंपी जा सकती है। मेडिकल कॉलेज बनाने राज्य सरकार को 25 प्रतिशत राशि यानि 47.25 करोड़ रुपए अपनी ओर से मिलाना होगा। उल्लेखनीय है कि सरकार ने पहले शिवपुरी-छिंदवाड़ा के स्थान पर सतना-सिवनी का एमओयू प्रस्ताव भेजा था, लेकिन इसकी जानकारी लगते ही छिंदवाड़ा सांसद कमलनाथ और गुना सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा से मुलाकात कर प्रस्ताव का विरोध किया था। इसके बाद दोनों जिलों में विरोध को देखते हुए सरकार ने छिंदवाड़ा-शिवपुरी में मेडिकल कॉलेज खोलने की कवायद शुरू की थी।

देरी पर मुख्यमंत्री नाराज
विदिशा, रतलाम और शहडोल में मेडिकल कॉलेज के निर्माण कार्य के लिए अब तक एजेंसी तय न होने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नाराजगी जाहिर की है। हाल ही में मंत्रालय में आला अफसरों की बैठक में उन्होंने कहा कि जल्द से जल्द मेडिकल कॉलेज का निर्माण शुरू किया जाए। यह तीनों मेडिकल कॉलेज पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड पर बनाए जाने हैं, लेकिन टेंडर में इनकी दरें 40 फीसदी अधिक आने से मामला उलझ रहा है। दरअसल एमपीआरडीसी के एमडी मनीष रस्तोगी ने ज्यादा दरें आने पर टेंडर निरस्त कर दिए हैं। सूत्रों का कहना है कि अब इन कॉलेजों के निर्माण को लेकर फिर से टेंडर बुलाए जाएंगे यदि इस बार भी दरें अधिक आईं तो इन्हें सरकार खुद बनाने का निर्णय ले सकती है। इस पूरी प्रक्रिया में चार से पांच माह का समय लग सकता है।
जूनियर के हाथ में नए कॉलेजों की कमान
मेडिकल कॉलेजों के निर्माण के लिए अभी ठीक से खाका भी तैयार नहीं हो पाया है, वहीं सरकार ने रतलाम, दतिया और खंडवा के कॉलेजों के लिए डीन की नियुक्ति कर दी है। मप्र के स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा के निर्वाचन क्षेत्र दतिया में मेडिकल कॉलेज का डीन जिस डॉक्टर को बनाया गया है तो वो पहले से ही दागी है। उस पर फर्जी जाति प्रमाण पत्र से नौकरी प्राप्त करने का अधिकार है। जीआरएमसी में पैथौलॉजी विभाग में पदस्थ डॉ. राजेश गौर पर आरोप है कि प्राध्यापक रहते हुये टॉपर छात्रा को दुर्भावनावश प्रायोगिक परीक्षा में फैल कर दिया था, जिस पर जीवाजी विश्व विद्यालय ने इन्हें ब्लेकलिस्टेड कर दिया था। आरोप है कि अनुसूचित जाति का न होते हुये भी इस जाति के प्रमाण पत्र पर नौकरी कर रहे हैं, लेकिन आज तक गजराराजा मेडीकल कॉलेज ने यह प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं कराया है। हालांकि जब आदिमजाति कल्याण विभाग में इस नाम से बने एसटी के जाति प्रमाण पत्र की जांच की गई तो यह साबित हो गया कि उक्त जाति ग्वालियर जिले में अनुसूचित जाति की श्रेणी में नहीं आती। उच्च न्यायालय के आदेश पर अपर कलेक्टर ने सर्टिफिकेट की जांच की थी। जिसमें जाति प्रमाण पत्र फर्जी पाया गया था। प्रमाण पत्र ग्वालियर में किसने बनाया यह जांच चल रही है। इसके बाद दागी डॉक्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जानी है। वहीं चिकित्सा शिक्षा विभाग ने रतलाम मेडिकल कॉलेज के लिए डीन (प्रभारी) डॉ. लक्ष्मी मारू को बनाया है। वे महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज इंदौर में प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ चिकित्सा प्राध्यापक थीं और सिविल सर्जन डॉ. आनंद चंदेलकर को मेडिकल कॉलेज का अधीक्षक बनाया है। वहीं डॉ. आरके माथुर को खंडवा मेडिकल कॉलेज का कार्यवाहक डीन बनाया गया है।
-कुमार राजेन्द्र

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