02-Oct-2015 08:12 AM
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देश के हृदय प्रदेश की राजधानी भोपाल के लाल परेड मैदान पर आयोजित दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन के चिन्ह अभी भी देखने को मिल रहे हैं लेकिन विडंबना यह देखिए कि तीन दिन तक हिंदी में

बोलेंगे, हिंदी में लिखेंगे, हिंदी में सरकारी काम करने की कसमें खाने के बाद हम बीस दिन में ही सारी कसमें भूल गए। यही नहीं हिंदी को बढ़ावा मिलेगा इस सोच के साथ विश्व हिंदी सम्मेलन को कामयाब बनाने और मेहमानों की खातिरदारी करने के लिए करीब 30 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च भी किए गए जो तय बजट 15 करोड़ रुपए का दोगुना है। लेकिन इतनी बड़ी रकम खर्च होने के बाद भी देश की कौन कहे प्रदेश में ही हिंदी दोराहे पर है।
एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हिंदी का डंका बजा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में ही हिंदी भाषा अपनी प्राथमिकता खोती जा रही है। हिंदी भाषा को नौकरशाहों ने माध्यमिक बना दिया है और अंग्रेजी भाषा आगे चली गई है। विश्व हिन्दी सम्मेलन में मुख्यमंत्री ने संकल्प दिलाया था की प्रदेश के सरकारी काम हिंदी में होंगे, लेकिन विभागों ने अभी तक वेबसाइट भी नहीं बदली। विश्व हिन्दी सम्मेलन में हिन्दी के नाम पर कसीदे गढऩे वाली सरकार की असलियत यह है कि वे खुद अंगे्रेजी के बिना काम करने में असमर्थ हैं। हिन्दी को बढ़ावा देने वाली सरकार की आधे से ज्यादा वेबसाइट्स अंग्रेजी हैं। ऐसे आधे से ज्यादा विभाग है, जिनकी वेबसाइट अंग्रेजी में चल रही है। प्रदेश में खास तौर पर 59 विभागों की वेबसाइट को प्राथमिकता से संचालित किया जाता है। इनमें 25 से ज्यादा ऐसे विभागों की वेबसाइट ही अंग्रेजी में चल रही है।
आलम यह है कि हिन्दी सम्मेलन में शामिल होकर जिन मंत्रियों ने हिंदी को बढ़ावा देने का संकल्प उनके विभाग की वेबसाइट्स अंग्रेजी में चल रही है। कुछ विभागों की वेबसाइट में हिन्दी और अंग्रेजी का इसस तरह समावेश है कि जानकारी लेना मुश्किल है। इनमें वित्त, संस्कृति, स्वास्थ्य, खाद्य, उच्च शिक्षा और गृह विभाग हैं। वहीं उद्योग, जल संसाधन, नवीन एवं नवकरणीय उर्जा, वन, राज्य वन विकास निगम, वन फेडरेशन, ईको टूरिज्म, चिकित्सा शिक्षा, आवास एवं पर्यावरण, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, पीडब्ल्यूडी, विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी, तकनीकी शिक्षा, पर्यटन, परिवहन और वाणिज्यकर की वेबसाइट अभी तक अंग्रेजी में ही है। हालांकि नगरीय प्रशासन एवं विकास, महिला बाल विकास, किसान कल्याण, पशुपालन, विमानन, सहकारिता, उर्जा, सामान्य प्रशासन, लोकसेवा प्रबंधन, सूचना प्रौद्योगिकी, विधि, खनिज, नर्मदा घाटी, जनसंपर्क, धार्मिक एवं धर्मस्व और खेल आदि ऐसे विभाग हैं जिनकी वेबसाइट्स हिंदी में है। अंग्रेजी या किसी भी विदेशी भाषा से नफरत करना ठीक नहीं है लेकिन उस भाषा की गुलामी करना अपने आपका पतन करना है। आजकल हमारा सारा देश इसी पतन के गर्त में गिरा जा रहा है। आज भारत का कोई भी नागरिक चाहे राष्ट्रपति बन जाए या प्रधानमंत्री, चाहे अरबपति बन जाए या खरबपति, चाहे किसी विश्वविद्यालय का कुलपति बन जाए या उप-कुलपति, वह ज्यों ही अंग्रेजी की दुर्गा के सामने आता है, चूहा बन जाता है। हमारा सारा भारत अंग्रेजी की चूहेदानी बन गया है। हमें विश्वास है कि इस बार हिंदी के दोनों सपूत(मोदी-शिवराज)देश की तकदीर बदलेंगे। वे अनिवार्य अंग्रेजी की बेडिय़ां तोड़ेंगे? गांधी, लोहिया, गोलवलकर और दीनदयाल के विचारों को कंठहार बनाएंगे। घोर निराशा के वातावरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान ने एक दीप-स्तंभ प्रज्वलित कर दिया है। लेकिन इस दीए को झंझावात से बचाने की जिम्मेदारी जिन पर है वे अगर असंवेदनशील बने रहे तो यहा दीया कब बुझ जाएगा किसी को पता नहीं? सम्मेलन के लिए विदेश मंत्रालय ने जितना बजट रखा था, उतना तो सम्मेलन वाली जगह पर टेंट लगाने में खर्च हो गया। वीआईपी मेहमानों के लिए चैंबर, टॉयलेट, एसी सहित कई और अरेंजमेंट भी किए गए थे। करीब 100 एसी और शानदार लाइटिंग की गई थी। इस वजह से 10 लाख रुपए की बिजली फूंक दी गई। सम्मेलन खत्म होने के बाद विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह ने कहा था कि इस सम्मेलन के लिए मंत्रालय ने 10 से 15 करोड़ रुपए का बजट रखा था। अगर खर्च ज्यादा होगा, तो विदेश मंत्रालय और मध्य प्रदेश सरकार मिलकर भुगतान करेंगे। विदेश मंत्रालय के सचिव अनिल वाधवा का कहना है कि इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है, लेकिन यदि कोई समस्या आ रही है तो विदेश मंत्रालय के वित्त विभाग से बातचीत कर कोई हल निकाला जाएगा। बताया जाता है कि 15 करोड़ रुपए तो सिर्फ मेहमानों को खाना खिलाने में खर्च कर दिए गए। मध्य प्रदेश सरकार को 12 करोड़ रुपए दे भी दिए गए थे। लेकिन सबसे बड़ी बात है कि इतना खर्च के बाद भी प्रदेश में हिंदी अपनी ही जगह रूकी पड़ी है। सम्मेलन में सरकार ने मेहमानों को 800 रुपए प्रति प्लेट का डिनर और 600 रुपए प्रति प्लेट का लंच कराया। नाश्ते के लिए एक प्लेट का रेट 250 रुपए था। होटल और मेहमानों के आने जाने के लिए टैक्सी का इंतजाम करने में ही करीब 4 करोड़ रुपए खर्च हो गए हैं। मेहमानों के लिए 310 टैक्सी और होटलों में इतने ही कमरे बुक कराए गए थे। हर टैक्सी का रोज का किराया 1000 से 1500 रुपए था, वहीं होटल के कमरों का किराया भी 3 से 4 हजार रुपए तय था।
-धर्मवीर रत्नावत