02-Oct-2015 08:27 AM
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महाराष्ट्र में मराठवाड़ा के तीन जिले भीषण सूखे के चपेट में है। इस साल जनवरी से अब तक बीड, उस्मानाबाद और लातूर के 400 से ज्यादा किसान मौत को गले लगा चुके हैं। सूखाग्रस्त जिलों में

बारिश नहीं होने के कारण खरीफ की फसल पूरी तरह से चौपट हो चुकी है। किसानों का अरोप है की क्षेत्र में सूखे के लिए चीनी मिल मालिक जिम्मेदार हैं।
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ ऐसे क्षेत्र हैं जहां संपत्ति, सत्ता, वैभव केवल कुछ लोगों के हाथों में सिमट गई है। हमारे जनप्रतिनिधियों को सोने के कपड़ों और मर्सिडिज से फुर्सत नहीं जबकि किसान आत्महत्या के लिए मजबूर है। सभी ने इस देश में मराठा अस्मिता, मराठी मानुष, मराठी भाषा के नाम पर कितनी दफे राजनीति होते देखी है। बड़े-बड़े कद्दावर नाम है जो मुंबई में बैठ कर पूरे महाराष्ट्र के सम्मान की बात करते हैं, लेकिन जो मराठी अस्मिता विदर्भ में दम तोड़ रही हैं, जो मराठी मानुष मराठवाड़ा में आत्महत्या कर रहा है, उनकी ओर झांकने की जहमत यही लोग नहीं उठाते। आप लातुर से लेकर ओस्मानाबाद और फिर बीड का उदाहरण ले लीजिए, यहां के विधायक और सांसद बड़े-बड़े राजनीतिक घराने से आते हैं। उनके घर, रहन-सहन के तौर तरीकों को देख लीजिए तो अनुमान नहीं होगा कि आप एक सूखाग्रस्त इलाके में हैं। सत्ता में भागीदारी ने इनके सगे-संबंधियों के लिए भी कामयाबी के रास्ते खोल दिए। उमरगा विधानसभा क्षेत्र के एमएलए बासवराज पाटिल के भाई बापुराव पाटिल का ही उदाहरण ले लीजिए। बापुराव यहां वि_ल साई चीनी मिल के मालिक हैं। घर में 55 लाख की मर्सिडिज खड़ी है। लेकिन पूछे जाने पर कहते हैं कि उनका सपना किसी इंपोर्टेड गाड़ी को लेने का था। किसानों की हालत पर वह चिंतित हैं इसलिए केवल 55 लाख की गाड़ी से काम चला रहे हैं, उनकी नजर में यह कार तो पुणे से सटे चाकन में एसेंबल की जाती है, इसलिए इसे आप इपोर्टेड नहीं कह सकते।
फिर हम पुणे के दत्ता फुगे की कहानी क्यों भूल जाते हैं। दो साल पहले वह 3.5 किलो सोने से बना शर्ट खरीदने के कारण चर्चा में आए थे जिसका दाम 1.25 करोड़ बताया गया था। महाराष्ट्र में ऐसी कहानियां कई और हैं। लेकिन इसी महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों की तस्वीर दिल दहलाने वाली भी है। मराठवाड़ा इस साल भी सुखे से जूझ रहा है। क्षेत्र के कुछ जिलों में इस साल 50 फीसदी से भी कम वर्षा हुई है। कहा जा रहा है कि पिछले 100 वर्षों में सबसे कम बारिश इस साल हुई है। आलम यह कि पानी के टैंकर की बदौलत जैसे-तैसे जिंदगी सरकते हुए आगे बढ़ रही है। लेकिन सवाल है कि आखिर क्यों पिछले पाच-सात वर्षों में इस क्षेत्र में सूखा का रूप और भयंकर होता गया। क्या बड़े-बड़े चीनी मिलों के मालिक, उनको मिल रहा राजनीतिक साथ और मुनाफे का बाजार इसके लिए जिम्मेदार नहीं?
यह बात हैरान करती है कि पिछले चार वर्षों में खराब बारिश के बावजूद मराठवाड़ा क्षेत्र में पिछले सीजन के मुकाबले इस बार गन्ने की खेती में उछाल आया है। इस बार पिछली दफा से 40,000 हेक्टेयर ज्यादा गन्ने की खेती हुई है। अब सूखे के पीछे के कारण को समझने की कोशिश की जाए तो मामला बहुत हद तक साफ हो जाता है। दूसरे पारंपरिक फसलों जैसे उरद दाल, मूंग, ज्वार या बाजरा के मुकाबले गन्ने की खेती के लिए 10 गुना ज्यादा पानी की जरूरत होती है। इसलिए उसकी पूर्ति के लिए बांधों के पानी को गन्नों के इन खेतों की ओर मोड़ दिया जाता है। चीनी मिलों में भी पानी की खपत बहुत ज्यादा होती है। नतीजा यह कि पानी का दोहन हद से ज्यादा हो रहा है। इसे चीनी मिलों के मालिकों का दबाव कहिए या किसानों को गन्ने की खेती से होने वाले फायदों के दिखाए गए सुहाने सपने, इस कारोबार ने यही के लोगों के लिए बड़ा खतरा पैदा कर दिया। नतीजा यह हुआ कि चीनी मालिक पैसे से खेल रहे हैं। उनके घरों के बाहर मर्सिडिज खड़ी है और किसान आसमान की ओर देख रहा है। जाहिर है, एक ऐसे क्षेत्र में जहां पानी की कमी पहले ही चिंता का विषय है, वहां ऐसी खेती से सूखे के हालात ही पैदा होंगे। यही कारण है कि साल दर साल महाराष्ट्र में आत्महत्या करने वाले किसानो की संख्या बढ़ती जा रही है। साल-2013 में पूरे महाराष्ट्र में जहां 1,296 किसानों ने आत्महत्या की थी, वहीं पिछले साल यह संख्या बढ़ कर 1,981 तक पहुंच गई। इस साल 1,300 से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। यह केवल सरकारी आंकड़े हैं। अगर इनकी तह में जाया जाए तो क्या पता यह आंकड़े और भी डराने वाले हो सकते हैं।
उस्मानाबाद जिले के एनसीपी विधायक राणा जगजीत सिंह पाटिल ने स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों से बातचीत के आधार पर कहा कि इस बार सूखे ने 100 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। पाटिल ने कहा कि सूखे के चलते पिछले तीन साल में 200 से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। उस्मानाबाद के कलंब तहसील में खमसगांव के 72 वर्षीय बुजुर्ग हरिभाऊ हनुमंत भेंगरे कहते हैं कि महाराष्ट्र में सन 1972 में सदी का सबसे बड़ा सूखा पड़ा था लेकिन इस साल का सूखा उससे ज्यादा भयानक है। बीड जिले में ज्यादातर किसान गन्ना तोडऩे वाले मजदूर हैं। सूखे के कारण उन्हें पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा है। एनसीपी नेता और समाजसेवी भारत भूषण क्षीरसागर कहते हैं कि अकेले बीड जिले से करीब 1.80 लाख लोग मुंबई, पुणे, औरंगाबाद और हैदराबाद पलायन कर चुके हैं।
-बिन्दु ऋतेन्द्र माथुर