दिलचस्प है जॉली एलएलबी
03-Apr-2013 10:43 AM 1234782

फिल्म जॉली एलएलबीÓ हमारी न्यायिक प्रणाली में व्याप्त खामियों को उजागर करने में कामयाब रही है। फिल्म की कहानी बहुचर्चित संजीव नंदा बीएमडब्ल्यू कांड पर आधारित है। निर्देशक सुभाष कपूर दो घंटे की इस फिल्म में बहुत कुछ और कह सकते थे यदि उन्होंने कहानी में अरशद वारसी के रोमांस को जबरन ना ठूंसा होता। इससे कहानी भटकती सी लगी। इसके अलावा कहानी की मांग ना होने के बावजूद आजकल जिस तरह से आइटम सांग को फिल्मों में डाला जाने लगा है वह अब दर्शकों को बोर करने लगा है।
जगदीश त्यागी उर्फ जॉली (अरशद वारसी) मेरठ की कचहरी में वकालत का काम शुरू करता है लेकिन वह जिस भी केस को हाथ में लेता है उसमें हार जाता है। उसका सपना बहुत बड़ा वकील बनने का है लेकिन किस्मत उसका साथ नहीं दे रही। वह निराश होकर दिल्ली में अपने जीजा (मनोज पाहवा) के पास चला जाता है और यहां पर अपनी वकालत शुरू कर देता है। लेकिन यहां भी उसे सफलता नहीं मिलती। उसके पास पैसे बिल्कुल नहीं है जिसके चलते उसे बेकार के काम भी करने पड़ते हैं। एक बार तो पांच आतंकवादियों में से एक के भाग जाने पर वह हजार रुपए लेने के चक्कर में अपने चेहरे पर काला नकाब डालकर शिनाख्त परेड में शामिल होकर पुलिस की मदद करता है। जॉली की नजर एक बार कोर्ट में कामयाब वकील राजपाल (बोमन ईरानी) पर पड़ती है तो वह उसकी भारी भरकम टीम और शानो शौकत देखकर भौंचक रह जाता है और उस जैसा स्टेटस पाने की सोचने लगता है। राजपाल अदालत अपने उस मुवक्किल के केस को लडऩे के लिए आया था जिस पर आरोप है कि उसने अपनी महंगी गाड़ी से सड़क पर सो रहे छह मजदूरों को कुचल दिया। आरोपी रईसजादा है और पुलिस को प्रभावित कर लेता है जिसके चलते केस कमजोर कर दिया जाता है और अदालत में राजपाल आसानी से इस केस को जीत जाता है। राजपाल की जगह पाने का ख्वाब बुन रहे जॉली के मन में एक तरकीब सूझती है और वह इस हिट एंड रन मामले को फिर से खोलने के लिए जनहित याचिका डाल देता है। यह मामला अब सुनवाई के लिए कड़क स्वभाव वाले जज (सौरभ शुक्ला) की अदालत में आता है जहां राजपाल और जॉली के बीच जबरदस्त भिड़ंत होती है और इसके चलते आरोपों से बरी हो चुका व्यक्ति एक बार फिर फंस जाता है। अरशद वारसी कॉमेडियन के रोल में ज्यादा सराहे जाते हैं लेकिन इस फिल्म में उनके काम को देखने के बाद उन्हें गंभीर किस्म की भूमिकाओं के और प्रस्ताव मिलेंगे। उन्होंने वाकई शानदार काम किया है। बोमन ईरानी तो जब जब पर्दे पर आये, छा गये। उनके संवाद भी दमदार रहे। जज की भूमिका में सौरभ शुक्ला ने भी प्रभावित किया। अमृता राव के लिए फिल्म में ज्यादा अवसर नहीं था इसलिए वह कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पाईं। फिल्म का गीत संगीत सामान्य है। फिल्म में दिल्ली की कई खूबसूरत लोकेशनें भी देखने को मिलेंगी। निर्देशक सुभाष कपूर की इस फिल्म को एक बार तो देखा जा सकता है।

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