हथियारों के सौदों पर मोदी की मधुर कूटनीति
02-Oct-2015 08:24 AM 1234817

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश यात्रा पर एक बार फिर अमरीका गए जहां उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया और सुरक्षा परिषद में सुधार के साथ स्थाई सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी पर बल दिया। निवेशकों को भारत आकर्षित करने के लिए नरेंद्र मोदी सिलिकॉन वैली भी गए और अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से उनकी मुलाकात हुई है। भारत के टेक्नोसैवी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगर अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान खुद को न्यूयॉर्क-वॉशिंगटन डीसी के सुपरिचित दायरे तक सीमित रखने के बजाय कैलिफोर्निया और सिलिकॉन वैली की यात्रा करने का निर्णय लिया तो यह स्वाभाविक ही था। यहां मोदी दुनिया के शीर्ष निवेशकों और बिजनेस लीडर्स से व्यक्तिगत रूप से मिले। यह भारत को एक इंवेस्टमेंट डेस्टिनेशन के रूप में प्रचारित करने की दिशा में बहुत अच्छा कदम था, क्योंकि इस क्षेत्र में भारत चीन, पूर्वी एशिया और पूर्वी यूरोप से कड़ी प्रतिस्पर्धा कर रहा है। मोदी को विदेश यात्राओं पर जाना खासा पसंद है और उन्होंने हथियारों के सौदों पर मधुर कूटनीति की कला सीख ली है। हालांकि उनकी कूटनीतिक मुहिम के लिए ये थोड़ी शर्म की बात भी है।
प्रधानमंत्री के अमरीका की सात दिन की यात्रा पर जाने से एक दिन पहले भारतीय कैबिनेट ने 3.2 अरब डॉलर की लागत से अमरीकी सीएच 47 एफ चिनोक और एएच 64 ब्लॉक 3 अपाचे लड़ाकू हेलीकॉप्टर खऱीदने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी थी। इस सौदे की चर्चा साल 2014 में तब हुई थी जब प्रधानमंत्री मोदी राजकीय यात्रा पर अमरीका गए थे और तब इसे भारत-अमरीका संबंधों में नई ऊंचाई बताकर प्रचारित किया गया था। अगस्त 2015 में भारतीय वायुसेना ने तीन और भारी-भरकम सी 17 ग्लोबमास्टर विमान खरीदने के प्रस्ताव को हरी झंडी दिखा दी थी। वर्ष 2011 के अनुबंध के मुताबिक़ क़ीमत 4.7 अरब डॉलर थी और भारत के पास 10 के अलावा छह अतिरिक्त सी 17 विमान खऱीदने का विकल्प था। बीते साल 1.9 अरब डॉलर का सैन्य साजो-सामान खरीदने के बाद भारत अमरीका से हथियार खरीदने वाले देशों की सूची में 24वें स्थान से उठकर शीर्ष पर पहुंच गया है।
मोदी की विदेश यात्रा से ठीक पहले भारत सरकार की ओर से बड़े रक्षा सौदों की घोषणा अब एक नियमित आदत सी बन गई है। प्रधानमंत्री मोदी जब पहली विदेश यात्रा पर जापान गए थे, तब मीडिया में यह खबर छाई हुई थी कि जापान ने भारत की अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र से जुड़ी छह संस्थाओं को फॉरेन एंड-यूज़र्स लिस्टÓ से हटा दिया है जिससे रक्षा तकनीक में परस्पर सहयोग में मदद मिलेगी। शिन मायवा यूएस2 विमान खरीदने का बहुप्रतीक्षित समझौता पूरा हो चुका है। एक संयुक्त बयान में कहा गया कि दोनों पक्ष यूएस-2 को भारत में ही बनाने पर काम करेंगे। इसमें विमान की तकनीक भी भारत को देने की बात कही गई है। मोदी की जर्मनी यात्रा से पहले इसी साल अप्रैल में जर्मनी की रक्षा मंत्री तीन दिन के दौरे पर भारत आईं जिसमें उन्होंने क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के साथ रक्षा मुद्दों पर ध्यान के अलावा द्विपक्षीय संबंधों को भी प्रगाढ़Ó बनाने की बात कही थी। जर्मनी की रक्षा मंत्री ने भारत की पश्चिमी नौसेना कमान मुख्यालय का भी दौरा किया था और भारत के नौसैनिक विस्तार संबंधी जरूरतों पर चर्चा की थी।
आमतौर पर ऐसा होता नहीं है लेकिन जिस सरकार में सैन्य साजो सामान की खरीद एजेंडे में शीर्ष पर हो, उसमें ऐसा होना हैरानी की कोई बात नहीं है। तभी तो भारत में जर्मन राजदूत रहे माइकल स्टेनर कहते हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अप्रैल में जर्मनी की यात्रा ने दोनों देशों के संबंधों को नया आयाम दिया है।Ó इसी साल अप्रैल में मोदी जब फ्रांस गए थे तो उन्होंने 36 रफाएल लड़ाकू विमान जल्द से जल्द खरीदने के फैसले पर मंज़ूरी की मोहर लगाई थी। इसके लिए दोनों देश एक समझौते पर अलग शर्तोंÓ के साथ दस्तखत करेंगे। सब कुछ योजना के हिसाब से हुआ तो इस पर 7 अरब डॉलर से ज्यादा की लागत आएगी। अमरीका और इसराइल जैसे पश्चिमी देशों से हथियार खरीदने से पहले तक हथियारों के आयात पर भारत एक तरह से रूस पर ही निर्भर था। शायद यही वजह है कि अन्य देशों से हथियार खरीदने पर रूस अक्सर अपनी नाख़ुशी का इजहार करता रहता है। दिसंबर 2014 में राष्ट्रपति पुतिन से मुलाक़ात के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि भारत, रूस के साथ रक्षा, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष, ऊर्जा, व्यापार और निवेश के मामले में संबंधों को प्रगाढ़ बनाने की दिशा में काम करेगा। भारत ने रूस से 290 से अधिक एसयू-30 एमकेआई और पांचवी पीढ़ी के पीएकेएफ़एटी-50 लड़ाकू विमान खरीदने के लिए बड़े सौदे किए हैं जिन्हें संयुक्त रूप से विकसित किया जा रहा है। इसके बावजूद भारत के बदलते रुख की वजह से रूस को प्रतिक्रिया देनी पड़ी है। खबरें हैं कि रूस अब पाकिस्तान को जंगी हेलीकॉप्टर बेचने पर विचार कर रहा है। संदेश साफ है कि रूस मोदी की हथियार मामलों में कूटनीति से खुश नहीं है।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक, प्रमुख हथियार आयात करने का भारत का आँकड़ा वर्ष 2010 से वर्ष 2014 के बीच पहले के पांच वर्ष की तुलना में 140 प्रतिशत बढ़ा। इस अवधि में हथियारों के आयात में भारत अव्वल रहा। दुनियाभर में आयात होने वाले कुल हथियारों का 15 प्रतिशत हिस्सा भारत को आयात होता है जो चीन से तीन गुना से भी अधिक है। चीन के हथियार आयात में वर्ष 2005 से वर्ष 2009 और 2010 से 2014 के बीच 42 प्रतिशत की कमी आई। ऐसा लगता है कि भारत हथियारों के मामले में नया सऊदी अरब बन रहा है जो बड़े पैमाने पर हथियारों की खरीद के लिए जाना जाता है।
-दिल्ली से रेणु आगाल

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