02-Oct-2015 08:02 AM
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भ्रष्टाचार का खत्म करने के नारे के साथ दिल्ली की गद्दी पर बैठी आम आदमी पार्टी की सबसे महत्वपूर्ण योजना ही भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है।मामला भ्रष्टाचार नियंत्रक हेल्प-लाइन के ठेके का है।

दिलचस्प यह है कि इसी हेल्पलाइन के जरिए केजरीवाल भ्रष्टाचार खत्म करने का दावा कर रहे हैं। लेकिन, दाव उल्टा पड़ गया। हेल्प-लाइन खुद भ्रष्टाचार का शिकार हो गई। इसके ठेके में भारी हेरा-फेरी का आरोप केजरीवाल सरकार पर है। आरटीआई (सूचना का अधिकार) के जरिए पूरी जानकारी इक_ा करने वाले विवेक गर्ग यही दावा कर रहे हैं। दस्तावेज बताते हैं कि केजरीवाल सरकार को पूरे मामले की जानकारी है। उनकी सरपरस्ती में पूरा घोटाला हुआ। इसके बावजूद अरविंद केजरीवाल स्वयं को ईमानदार मुख्यमंत्री कहने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। पांच अप्रैल को तालकटोरा स्टेडियम में वे डंके की चोट पर अपनी ईमानदारी का दावा कर रहे थे। मौका भ्रष्टाचार नियंत्रक हेल्पलाइन के शुरू होने का था। वहां अरविंद केजरीवाल ने कहा कि भ्रष्टाचारियों को बख्शा नहीं जाएगा। लेकिन मौजूदा समय में वे अपने ही जाल में फंस गए हैं। उनकी ही सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप है।
अरविंद केजरीवाल बड़े जनादेश के नशे में मदहोश हैं। उन्हें नियमों की कोई परवाह नहीं है। भ्रष्टाचार रोकने के लिए हेल्प लाइनÓ बनाने के मामले जो तथ्य सामने आए हैं, उससे यही बात निकलती है। इस बाबत आरटीआई कार्यकर्ता विवेक गर्ग ने 27 जुलाई, 2015 को भ्रष्टाचार नियंत्रक शाखा के पास एक शिकायत भेजी है। शिकायत 13 पन्ने की है। उसमें हेल्पलाइन को लेकर हो रही लूट का लेखा-जोखा दस्तावेजों के साथ मौजूद है। दस्तावेज बताते हैं कि केजरीवाल सरकार भ्रष्टाचार नियंत्रक हेल्पलाइन स्थापित करना चाहती थी। इसी को ध्यान में रखते हुए दिल्ली सरकार ने एनआईसीएसआई (नेशनल इफोमेटिक्स सेंटर र्सिवस इंक) को हेल्पलाइन शुरू करने का ठेका दिया, लेकिन इसके लिए कोई निविदा नहीं निकाली गई थी। हालांकि, नियम है कि किसी सरकारी ठेके के लिए निविदा आमंत्रित होनी चाहिए। उसके बाद सबसे उपयुक्त कंपनी को ठेका दिया जाता है। इस मामले में प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। सरकार ने माना है कि हेल्प-लाइन के ठेके में कोई निविदा नहीं निकाली गई। वजह सामान्य वित्तीय कानून की धारा 176 बताई गई। इसी का हवाला देते हुए कहा गया कि एनआईसीएसआई पिछले कई सालों से सरकारी पैनल में है। यहां चौकाने वाली बात यह है कि पैनल में केवल इसी कंपनी को रखा गया है। आखिर इसकी क्या वजह है? इस रहस्य को सरकार छुपा रही है। मगर जिस कानून का हवाला देकर पूरा खेल रचा गया, उस पर भी गौर करने की जरूरत है। नियम 176 के मुताबिक केवल नामांकन के आधार पर परामर्श लेने की बात कही गई है। ऐसा परामर्श भी किसी आपात स्थिति में लेना है। इसका अर्थ यह है कि 176 मात्र परामर्श लेने की बात करता है। वह भी आपात स्थिति में। लेकिन यहां केजरीवाल सरकार ने परामर्श लेने की बजाए ठेका ही दे डाला। आदेश 9 मार्च, 2015 का है। इसमें लिखा है कि आदेश जारी होने के 10 दिन के अंदर कॉल सेंटर स्थापित करना है। मतलब यह है कि 19 मार्च तक भ्रष्टाचार नियंत्रक हेल्प-लाइन के लिए कॉल सेंटर बनना था। लेकिन केजरीवाल सरकार ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने हेल्पाइन की शुरुआत पांच अप्रैल को की। इसी तरह आदेश में यह भी लिखा है कि हेल्प-लाइन शुरू करने से पहले संबंधित कंपनी से नॉन डिस्क्लोजर एग्रीमेंट करना था, पर ऐसा हुआ नहीं। नॉन डिस्क्लोजर एग्रीमेंट करने से पहले ही एनआईसीएसआई को हेल्प-लाइन शुरू करने का निर्देश केजरीवाल सरकार ने दे दिया। नॉन डिस्क्लोजर एग्रीमेंट हेल्पलाइन शुरू होने के 40 दिन बाद यानी 13 मई, 2015 को हुआ। आखिर केजरीवाल सरकार ने आदेश का उल्लंघन क्यों किया?
केयरटेल इंफोटेक लिमिटेड को 13 मार्च, 2015 से 8 अगस्त, 2015 के बीच छह सरकारी ठेके मिल चुके हैं। छह महीने में छह सरकारी ठेके। इस मेहरबानी की वजह क्या है? दूसरे को जवाबदेह बनाने वाली केजरीवाल सरकार इसका जवाब देने को तैयार नहीं है। केयरटेल इंफोटेक लिमिटेड एनआईसीएसआई के पैनेल में है। जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि दिल्ली सरकार ने हेल्प-लाइन का ठेका एनआईसीएसआई को दिया है। दिलचस्प यह है कि एनआईसीएसआई ने वह ठेका केयरटेल इंफोटेक लिमिटेड को दे दिया। शिकायत में दावा किया गया है कि एनआईसीएसआई ने भी ठेका देने के लिए निविदा नहीं मंगाई। केवल पैनल में शामिल होने के आधार पर ठेका दे दिया।
-रजनीकांत पारे