तस्वीर नहीं बदली तो तकदीर कैसे बदलेगी
02-Oct-2015 07:13 AM 1234836

जादी के करीब 70 दशक बात देश की 70 फीसदी आबादी की तस्वीर और तकदीर बदलने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़े अभिमान के साथ सांसद आदर्श ग्राम योजनाÓ शुरू की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर के गांवों को आदर्श बनाने का सपना दिखाया। सांसदों को गांव आदर्श बनाने का जिम्मा दिया। बड़े ही जोर-शोर से गांवों को गोद लिया गया। इन गांवों के विकास के बड़े-बड़े वादे और दावे किए गए। ...लेकिन साल बीतने को है, गांवों को दिखाए गए सपने अधूरे के अधूरे ही हैं। गांवों की तस्वीर वैसी ही है, जैसी 15 महीने पहले थी। यह केवल पाक्षिक अक्स का आंकलन नहीं है, बल्कि यह दर्द है भोपाल में संपन्न हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट सांसद आदर्श ग्राम योजनाÓ की पहली कार्यशाला में शामिल हुए सरपंचों का। उनके दर्द की बानगी यहां देखने को भी मिली। उम्मीद थी कि गांव गोद लेने वाले कम से कम 100 सांसद तो कार्यशाला में शामिल होंगे हींं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और आधे सांसद भी नहीं पहुंच सके। इस कार्यशाला में करीब एक सैकड़ा सरपंच शामिल हुए और अधिकांश को यह मलाल था कि जब भी गांवों के विकास की बात होती है हमारे माननीय मुंह क्यों मोड़ लेते हैं। वह कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान देश के विकास में गांवों की उपयोगिता समझते हैं, लेकिन सांसद और विधायक नहीं।
उल्लेखनीय है कि मप्र विधानसभा में आदर्श गांव को लेकर देशभर के सांसद, अफसर और सरपंचों को बुलाकर मंथन किया गया। वर्कशाप में तय हुआ कि 200 सांसदों द्वारा गोद लिए गए 692 गांवों की बुकलेट बनाकर सबको दी जाएगी। साथ ही ऐसे प्रयास होंगे ताकि गांव के लोगों का दिल व दिमाग बदले। विकास चहुंमुखी हो। लेकिन इस कार्यशाला में सबसे बड़ी बात यह देखी गई कि सांसद गांवों का विकास नहीं होने के लिए कलेक्टरों को दोष देते रहे। जनप्रतिनिधियों ने कहा कि गोद लिए गए गांव को देखने के लिए कलेक्टरों के पास समय नहीं है। नोडल ऑफिसर का पता नहीं हैं। पैसे की कमी है। सीएसआर का फंड जिन जगहों पर नहीं मिल पा रहा, वहां हालत और खराब है। ऐसे में आदर्श ग्राम कैसे बन पाएंगे। अगर राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकास के लिए भले ही सांसद आदर्श ग्राम योजना शुरू की है, लेकिन सांसदों के सामने भी धर्म संकट है। कार्यशाला में आए एक सांसद ने अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए कहा कि एक सांसद का चुनाव क्षेत्र काफी बड़ा होता है। वह अपने आप को सिर्फ एक गांव के विकास तक कैसे सीमित रख सकता है क्या हम एक सांसद को ग्राम प्रधान बना देना चाहते हैं दरअसल, सांसद दोराहे पर खड़े हैं। या सांसदों को यह समझ में आ गया है कि पूरे क्षेत्र का विकास तो कर नहीं सकते तो कम से कम एक ही गांव पर ध्यान केन्द्रित करो।
इस तरह से पांच साल बाद जब क्षेत्र के लोग सवाल पूछेंगे कि उन्होंने काम क्यों नहीं किया तो वे बहाना बना सकते हैं कि उनका समय एक गांव में ही चला गया और उन्हें दूसरे गांवों पर ध्यान देने का समय ही नहीं मिला। किंतु यदि वे एक गांव के लोगों को भी विकास के मामले में संतुष्ट नहीं कर पाए तो इस कार्यक्रम की पोल खुल जाएगी। सवाल यह भी है कि कौन किन मानकों पर तय करेगा कि विकास हुआ अथवा नहीं उदाहरण के लिए गांव में पक्की सड़क बने अथवा गांव की आंगनबाड़ी ठीक से चले, विकास की प्राथमिकता में कौन सी चीज पहले होनी चाहिए? इसकी प्रबल सम्भावना है कि शुरुआती उत्साह के बाद हमारी संवेदनहीन, भ्रष्ट व अकार्यकुशल व्यवस्था एक गांव में भी कोई ठोस सकारात्मक परिणाम न दे पाए। सांसद एक ऐसी व्यवस्था का हिस्सा है जिसमें उसे कार्यपालिका का सहयोग उपलब्ध है। ऊपर से लेकर नीचे तक एक व्यवस्था है जिसमें जिले में मुख्य विकास अधिकारी, खण्ड विकास अधिकारी व ग्राम पंचायत विकास अधिकारी हैं जो विकास के लिए जिम्मेदार हैं। सांसद चाहे तो विकास कार्य कराने के लिए इनकी सेवा ले सकता है। इसके अलावा जन प्रतिनिधियों की अपनी व्यवस्था है। वह उस व्यवस्था के अंदर रहकर ही काम करना चाहता है।

सांसद आदर्श ग्राम योजना में करीब 800 गांव के विकसित होने पर अन्य गांव को भी प्रेरणा मिलेगी और इससे ग्रामीण विकास की प्रगति की रफ्तार अपेक्षा अनुरूप और तेज होगी।
बीरेन्द्र सिंह, केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री
मध्यप्रदेश देश का दिल है, आज यहां ग्रामीण विकास पर जो चर्चा हुई है, उससे विकास की लहर कश्मीर से कन्याकुमारी तक चलेगी। लेकिन अफसोस ऐसी सरकार यूपी में नहीं है।
जगदम्बिका पाल, सांसद, उत्तर प्रदेश
कार्यशाला में प्रदर्शित नवाचारों और ग्राम विकास के अनुभवों का लाभ सुदूर ग्रामों तक पहुंचेगा। ग्रामीण विकास के क्षेत्र में पिछले वर्षों में मध्यप्रदेश ने नई ऊंचाइयां हासिल की हैं।
गोपाल भार्गव,  पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री, मप्र
यह कार्यशाला मिल का पत्थर साबित होगी। जो सांसद इस कार्यशाला में नही आ सके उन्होंने एक सुनहरा मौका खो दिया है। सांसदों की सक्रियता से अन्य गांवों में भी विकास होगा।
आलोक संजर, सांसद, भोपाल
-बृजेश साहू

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^