शिव राजÓ के दस साल कितने बेमिसाल!
02-Oct-2015 07:49 AM 1234984

आज से करीब 2400 साल पूर्व आचार्य चाणक्य ने एक राजा(अब के  प्रधानमंत्री व  मुख्यमंत्री) के कर्तव्यों का उल्लेख करते हुए चाणक्य नीति में लिखा है कि...
प्रजा सुखं सुखं राज: प्रजाना च हिते हितम्।
नात्यप्रियं हितं राज: प्रजानां तु प्रियं हितम्।।
यानी प्रजा के सुख से राजा का सुख है। प्रजा के हित में उसका हित है। जो कुछ राजा को प्रिय हो वह उसमें हित न समझें प्रत्युत जो प्रजा को प्रिय हो उसे ही वह हित माने। लेकिन आज प्रजातंत्र में भी अगर कोई राजा इसका पालन करता है तो वह हैं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। शिवराज सिंह चौहान 29 नवंबर को प्रदेश के ऐसे दूसरे मुख्यमंत्री हो जाएंगे जो लगातार दस वर्षों तक मुख्यमंत्री रहे हैं। इसके पहले दिग्विजय सिंह के नाम यह रिकार्ड दर्ज था। हालांकि दोनों के कार्यकाल यादगार रहेंगे, जहां दिग्विजय सिंह का नाम बिजली, सड़क, पानी जैसी समस्याओं के जूझते बीमारू राज्य के मुख्यमंत्री के लिए लिया जाता है वहीं शिवराज सिंह चौहान को प्रदेश के विकास की नई परिभाषा गढऩेे के लिए याद किया जाता है। अपने कार्यकाल के दौरान शिवराज सिंह चौहान ने केंद्र और राज्य की सभी योजनाओं को जमीन स्तर तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। शिवराज के इस कार्यकाल में प्रदेश के विकास का ही नतीजा है कि आज सरकार की पहुंच जन-जन तक हो चुकी है। उनका दस साल का कार्यकाल भले की कई उतार-चढ़ाव भरा रहा, लेकिन शिवराज के प्रभावी व्यक्तित्व, दूरदर्शिता-तात्कालिकता, दृढ़ता-विनम्रता और आत्मीयता-सहृदयता के अदभुत संयोजन के सामने सब सुगम होता गया।
दरअसल, देश की राजनीतिक बिरादरी में शिवराज राजनीति का मॉडरेट चेहरा हैं। वे न तो पेशेवर नेता हैं और न मजबूरी से राजनीति में आए हैं। वे तो अपनी जनसेवा की प्रतिबद्धता के कारण ही देश में विकास का पोस्टर ब्वाय बने हुए हैं। अपनी जिद, जुनून और जज्बे से वे प्रभावी राजनेता, कुशल संघटक, संवेदनशील नेतृत्व, सक्षम प्रशासक, संगठन के सपूत, सहृदय व्यक्ति के तौर पर मप्र को संवार रहे हैं। पिछले दस साल से मध्यप्रदेश में सत्ता का एक ही चेहरा है। सरकार का एक ही नाम, शिवराज सिंह चौहान। मध्यप्रदेश भाजपा को शिवराज की शक्ल में केवल एक चेहरा नहीं मिला। बीते दस सालों में वो भाजपा के लिए सुरक्षित कहे जाने वाले इस प्रदेश के ब्रान्ड बन चुके हैं। लो प्रोफाइल शिवराज लोकप्रिय हैं। और जमीन से जुड़कर जनता का दिल जीतने के टोटके भी बखूबी जानते हैं। जनता के बीच वो भरोसा का चेहरा हैं तो पार्टी में भी इतनी साख है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व, मध्यप्रदेश के मामले में कभी शिवराज से आगे नहीं सोच पाता। लेकिन ये एक बाजू की तस्वीर है। दूसरे बाजू, शिवराज और उनकी सरकार की तस्वीर खुशनुमा दिखाई नहीं देती। इस तस्वीर में संगठन से सरकार तक शिवराज के खिलाफ उठ रहे बयान हैं। इस तस्वीर में, नौकरशाही पर मुख्यमंत्री की कमजोर पकड़ पर सवाल सुनाई देते है। भाजपा कहती रहे शिवराज का दामन पाक साफ है। लेकिन इस तस्वीर में, इस दामन पर शक की धुंध दिखाई देती है। शिवराज के बतौर मुख्यमंत्री के रूप में दस साल पूरे होने पर भाजपा और प्रदेशवासियों के लिए मौका है यह देखने, समझने और जानने का, कि मध्यप्रदेश के इतिहास में भाजपा सरकार की सबसे लंबी पारी खेलने वाले मुख्यमंत्री ने कहां बाजी मारी और कहां चूक कर गए चौहान।
शिवराज सिंह चौहान की राजनीति में शालीनता, सहृदयता, सदाशयता और संवेदनशीलता देखने को मिलती है। वे कभी भी आक्रामक नहीं होते हैं। उन्होंने सुलह-सफाई की राजनीति को ही आगे बढ़ाया है। वे सार्वजनिक संभाषण और मुहावरे की भाषा में शालीनता का तड़का देते हैं और आचार-व्यवहार में सहिष्णुता का बघार। उनकी बॉडी लेंग्वेज में एक सम्मोहन है। यह एक ऐसा शॉक एबजार्वर है जो पार्टी और प्रशासन के तंत्रगत दबावों को न्यूनतम विमर-टिमर के साथ झेल लेता है। सामाजिक जीवन में सक्रिय कार्यकर्ता का व्यक्तित्व कार्य और व्यवहार से बनता है। भारतीय राजनीति के शिखर पर उभरते राजनेता शिवराज सिंह चौहान का व्यक्तित्व बहुमुखी है। वे राजनीति में शुचिता के पक्षधर और विरोधियों के प्रति सहिष्णुता तथा सहृदयता के नवीन मानदंड स्थापित करने वाले प्रभावी राजनेता हैं। मध्यप्रदेश के राजनीतिक इतिहास में लगातार तीसरी बार एक राजनीतिक दल की सरकार बनाने वाले कुशल संघटक हैं। मंथर गति से चलने वाली नौकरशाही को दौड़ाने वाले दक्ष प्रशासक हैं। सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन के लिए बेटी बचाओ अभियान जैसे दूरदर्शी सामाजिक आंदोलनों के सूत्रधार हैं। बहनों की आंखों में आंसू नहीं आने पाए, इसके लिए चारों पहर चितिंत और सक्रिय रहने वाले भाई हैं। बेटे-बेटियों के जीवन पथ पर कांटे नहीं आए उनके उन्नति में कोई बाधा नहीं रहे, तत्परता के साथ प्रयासरत मामा हैं। कामगारों के बेहतर जीवन स्तर के लिए उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का संकल्प लेकर कार्य करने वाले जननेता हैं। इन सबमें जनकल्याण के लिऐ हर क्षण-पल कार्य करने की जिद, जुनून और जज्बा ही है जिसने उनके व्यक्तित्व का निर्माण किया है। मात्र 12 वर्ष की उम्र में जैत के मजदूरों की मजदूरी बढ़ाने की उनकी जिद और जुनून आज भी कायम है। एक दिन की मजदूरी में पूरी महीने के राशन की व्यवस्था उनके व्यक्तित्व और उसी जिद, जुनून और जज्बे का कारनामा है। शिवराज जनता के जज्बातों को वोट में बदलना जानते हैं। भाजपा शासित राज्यों में अपनी तरह के पहले मुख्यमंत्री जिन्होंने प्रदेश का मुखिया कहलाने के बजाए अपने सूबे से रिश्ता बांध लिया।  शिवराज से पहले उमा भारती भी दीदी कहलाती थी। लेकिन उनका पार्टी के कुछ करीबियों से ही रहा दीदी का नाता। लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश की सत्ता संभालने के बाद जनता के जज्Þबातों से सीधे जुड़ाव के लिए टोटके शुरु कर दिए। पहले वो कुछ साल तक पांव पाव वाले भैय्या कहलाते रहे। लेकिन ये संबोधन मास अपीलिंग नहीं था. तो फिर प्रदेश की महिलाओं और बेटियों के बड़े वर्ग को प्रभावित करते हुए शिवराज सिंह चौहान ने मामा की ब्रांडिंग शुरू कर दी। लाड़ली लक्ष्मी जैसी कारगर योजना के साथ शिवराज ने ये साबित भी कर दिया कि वो केवल कहने के लिए इस सूबे के मामा नहीं हैं। लेकिन ये रिश्ता रंग लाया। चुनावी सर्वेक्षणों में ये बात साबित हो गई  कि भाजपा के हक में महिलाओं का वोटिंग परसेंटेज बढा है। और इसकी इकलौती वजह शिवराज सिंह चौहान थे।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान कहते हैं कि इस प्रदेश के आम आदमी के साथ खड़े होकर देखिए, तो शिवराज सिंह चौहान बेहद सहज और सरल इंसान दिखाई देते हैं। वो समाज के हर तबके के लिए फिक्रमंद है इसलिए मुख्यमंत्री निवास पर समाज के हर तबके की पंचायतें बुलाते हैं। जनता से सीधी बात करते हैं। उनकी समस्याएं सुनते हैं। मुख्यमंत्री निवास में जनता दरबार तो पहले भी लगते रहे हैं। लेकिन मुख्यमंत्री पूरी सहजता और सरलता के साथ आम लोगों को उपलब्ध हो सके, इसके लिए शिवराज सिंह चौहान ने नए प्रयोग किए हैं। और वे कारगर भी साबित हुए हैं। वह कहते हैं कि शिवराज जी का व्यक्तित्व प्रभावी राजनेता का है। दूरदर्शिता-तात्कालिकता, दृढ़ता-विनम्रता और आत्मीयता-सहृदयता का अदभुत संयोजन है। दुष्टों के साथ वज्र से कठोर और सज्जनों के साथ फूल से कोमल व्यवहार उनके व्यक्तित्व की विशिष्टता है। जनता को भगवान मानकर कार्य किया है। इसका सुफल चुनावों में लगातार विजय है। जनता के कल्याण के नवीन कार्यक्रमों, योजनाओं की लंबी श्रृंखला, निरंतर दौरे कर आमजन के साथ सीधे संवाद और आम आदमी को खास बनाकर कार्य करने की शैली से वे प्रदेश के राजनैतिक आकाश के सबसे अधिक चमकते सितारे बन गए हैं। वहीं संघ के एक पदाधिकारी कहते हैं कि शिवराज जितने सहज हैं तो उतने सख्त भी हैं। वह कहते हैं कि शिवराज पर नौकरशाही पर कमजोर पकड़ का आरोप लगता रहता है लेकिन उन्होंने दागी अफसरों के मामले में सख्ती दिखाई है और उनके निलंबन में देर नहीं लगाई। लेकिन कई बार लगता है कि बहुत से मामलों में वो अपनी इस सख्त छवि का इस्तेमाल भी नहीं कर पाते। वजह ये है कि उनके अपने मंत्रीमण्डल में काम कर रहे कई सारे प्रेशर ग्रुप के चलते वो कई बार सख्ती से फैसले नहीं ले पाते। मप्र भाजपा के संगठन महामंत्री अरविंद मेनन कहते हैं की शिवराज जी का व्यक्तित्व कुशल संघटक का है जो संगठन को निरंतर मजबूत और उत्तरोत्तर आगे ले जाने की क्षमता रखता है। वे गरीबों के संरक्षक, किसान पुत्र हैं। उन्होंने अपने चमत्कारी व्यक्तित्व से प्रदेशवासियों के दिल में जगह बनाई है। वे एक संवेदनशील व्यक्ति हैं। सामाजिक मुद्दों के प्रति उनकी सोच दूरदर्शी और संवेदनात्मक है। महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय को खत्म करने की बाल्यकाल में बनी सोच न केवल कायम है बल्कि उनकी प्रशासनिक और राजनीतिक शैली का मुख्य आधार है। महिलाओं के सम्मान के लिए उन्होंने सामाजिक अगुआई के साथ कार्य किए हैं। उनके संवेदनशील नेतृत्व में बेटी बचाओ अभियान का सूत्रपात देश में बिगड़ते लैंगिक अनुपात को नियंत्रित करने का प्रयास है। महिला अत्याचारों पर राज्य में पूर्ण विराम लगाने का प्रयास शौर्यादल के माध्यम से किया है। स्थानीय निकायों में महिला आरक्षण, पुलिस बल में विशेष बटालियन, महानगरों में महिला सेल और महिलाओं पर अपराधों के मामलों में समय-सीमा में अनुसंधान जैसी पहल सामाजिक विषयों के प्रति उनके व्यक्तित्व की संवेदनशीलता का परिचायक है। वह कहते हैं कि बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान लोग अक्सर शिवराज जी के बारे में पुछते हैं। मप्र की योजनाओं पर चर्चा करते हैं।प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक गुरू सुंदरलाल पटवा कहते हैं कि शिवराज का व्यक्तित्व दक्ष प्रशासक का है। उनका शासनकाल उनके प्रशासकीय गुणों की उत्कृष्टता का बयान करता है। जिसे विरासत में बीमारू मध्यप्रदेश मिला। अनुभवहीन प्रशासक की आशंकाऐं भी थीं। शिवराज ने दिन के 20 से 22 घंटे तक लगातार कार्य करते हए योग्य प्रशासकों की टीम मध्यप्रदेश बना ली। प्रदेश में विकास की उपलब्धियों का नया इतिहास रचा है। राज्य को अनेक अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुये हैं। सिंचाई क्षेत्र के रकबे में बढ़ोत्तरी, कृषि उत्पादन में क्रांति, विकास दर में वृद्धि, स्वास्थ्य सूचकांको में सुधार, रोजगार और उद्योगों, धंधों के नये अवसरों का सृजन आदि अनेक क्षेत्रों में अभूतपूर्व उपलब्धियां उनके सक्षम प्रशासन का प्रतिफल है।
उल्लेखनीय है कि एक बार सुंदरलाल पटवा (1989-92) ने मुख्यमंत्री रहते  कहा था कि एक दुबला-पतला नौजवान सांसद अपने क्षेत्र में काम कराने के लिए मेरे पीछे पड़ा रहता है। उसकी मांगे सुरसा के मुख की भांति हैं।Ó यह दृश्य हमें कई बार देखने और सुनने को मिला भी है, जब प्रदेश को जरूरत पड़ी है। केंद्र में यूपीए शासन के दौरान तो शिवराज दिल्ली में विकास योजनाओं पटवाजी तत्कालीन सांसद शिवराज सिंह चौहान के बारे में कह रहे थे। जो लोग मंत्री रह चुकते हैं उन्हें नौकरशाही द्वारा दिखवा लेते हैंÓ और चलता हैÓ जैसे जुमले घुट्टी में पिला दिये जाते हैं। चूँकि शिवराज एक सक्रिय कार्यकत्र्ता से सांसद और मुख्यमंत्री बने अत: उनमें पार्टी-तंत्र की चैतन्यता तो रही लेकिन प्रशासन-तंत्र की जड़ता नहीं आई। अपनी इसी कार्य-संस्कृति के कारण वे प्रशासन-तंत्र से ऐसा समीकरण बैठा लेते हैं जो जड़ को भी चैतन्य कर देता है। प्रशासन-तंत्र के कुछ पुरजे जो अपनी कार्यनिष्ठा और क्षमता के कारण पूर्व मुख्यमंत्री के खासमखास थे, उन सबमें निहित सर्वोत्तम का उपयोग आज शिवराज बखूबी कर रहे हैं। दरअसल, शिवराज पूरी तरह से एक लोकसेवक हैं। उनकी सहृदयता हमें कई बार देखने को मिली है। उनकी विनम्रता अभूतपूर्व है। जनता से सम्मानीय दूरी  रखने के निरंतर मिलने वाले सुझाव और सुरक्षा की विवशताओं का दवाब भी उन्हें आमजन से घुलने-मिलने से नहीं रोक पाती है। यहां-वहां वह सुरक्षा के घेरे और प्रोटोकॉल के प्रतिबंधों के बाहर जाकर आमजन के दु:ख में सहभागी हो जाते हैं। एक स्थान पर तो एक बीमार आदमी ने पेशाब की थैली तक उनको पकड़ा दी। आमजन में उनकी विनम्रता के भरोसे का सम्भवत: यह सबसे प्रभावी प्रतीक है। सहृदयता को उनके व्यक्तित्व में सर्वोच्च स्थान है। फिर चाहे विरोधियों के साथ व्यवहार की बात हो अथवा आपदाओं में प्रदेशवासियों की मदद की हो। उनके व्यवहार का आधार सहृदयता ही रही है। उत्तराखंड की बाढ़ में फंसें तीर्थयात्री, ओले-पाले से जूझ रहे किसान, दतिया में मुख्यमंत्री के विरोध प्रदर्शन में दुर्घटनाग्रस्त होने वाली महिला की आर्थिक सहायता के अवसर हो या हाल ही में पेटलावद विस्फोट का मामला, सभी में उन्होंने विशाल उदारता का परिचय दिया है। शायद यही वजह है कि मध्यप्रदेश की पिछली नेगेटिव ग्रोथ अब प्रोग्रेसिव ग्रोथ बन गई है। प्रदेश के कई भागों में निरंतर सूखे जैसी स्थिति बनी रहने के बावजूद हरियाणा और पंजाब के रहते, मध्यप्रदेश को अन्नोत्पादन के मामले में कृषि कर्मण अवार्ड मिलना बड़ी बात है। शिवराज ने समाज के विभिन्न वर्गों से सीधा सम्पर्क स्थापित करके उनकी समस्यायें जानने की कोशिश की है। विभिन्न वर्गों की पंचायतें बुलाना इसी का मॉडल है।

लो प्रोफाइल और लोकप्रिय सीएम
भाजपा शासित दूसरे राज्यों के मुख्यमत्रियों के मुकाबले शिवराज सिंह चौहान लो प्रोफाइल सीएम के तौर पर गिने जाते हैं। लो प्रोफाइल इन मायनों में कि भाजपा की अंदरुनी राजनीति में भी उन्हें जब जिस भूमिका में रखा गया, शिवराज कभी उससे बाहर नहीं आए। वो राष्ट्रीय नेताओं की आंख के तारे भले ना हो, पर आंख की किरकिरी भी नहीं बनते। उमा भारती जैसे जनाधार वाली नेता की जगह लेकर खुद को स्थापित करना शिवराज  सिंह चौहान के लिए आसान नहीं था। लेकिन शिवराज की सहज, सरल, और जमीन से जुड़कर चलने की छवि का ही तो असर था कि 2008 और 2013 के चुनाव में भाजपा को ऐतिहासिक जीत दिलाई। शिवराज भाजपा के भरोसेमंद सिपहसालारों में गिने जाते हैं। इसी लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम में भी उन्हें महत्वपूर्ण दर्जा हासिल है। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी से लेकर दूसरी पीढी के अरुण जेटली और सुषमा स्वराज तक, शिवराज का हर एक बेहतर तालमेल है। संगठन के भरोसे पर खरे उतरने का ही ईनाम था शायद कि मध्यप्रदेश में सत्ता संभालने के कुछ सालों बाद ही शिवराज को पार्टी ने पूरी तरह फ्री हैंड दे दिया।

खूबियां हैं तो खामियां भी हैं....
मध्यप्रदेश में नौकरशाह चलाते हैं सरकार? शिवराज सिंह चौहान ने जिस दिन से इस प्रदेश की सत्ता संभाली।  ये जुमला प्रशासनिक अमले से लेकर सियासी हल्कों तक जोर पकड़ता रहा है। शिवराज के विरोधियों को छोडि़ए उनकी अपनी ही पार्टी के लोग भी दबी जुबान में मंजूर करते रहे हैं, कि मुख्यमंत्री की नौकरशाही पर पकड़ कमजोर है और ये सरकार असल में तो नौकरशाह चला रहे हैं। कैबिनेट की बैठकों से लेकर मुख्यमंत्री की अनौपचारिक चर्चा के दौरान मत्रियों से हुए वन टू वन में कई बार शिवराज मंत्रीमण्डल के सदस्यों ने ये दुखड़ा रोया है कि अफसर उनकी सुनते नहीं है, उनका काम नहीं करते। सबकी अपनी ढपली अपना राग, ये शिवराज कैबिनेट का हाल है। राज्य से जुड़े मुद्दों पर ही नहीं, राष्ट्रीय मुद्दों पर भी कई बार कैबिनेट में सहमति नहीं बन पाती। पूरी कैबिनेट ही कई तरह के पॉवर ग्रुप्स में बंटी हुई है। मंत्रियों के बीच आपस में भी, और मुख्यमंत्री के साथ भी, संवाद की स्थिति डगमगाई हुई है। भीतर की ये उथल पुथल अब सतह पर सुनाई और दिखाई भी देने लगी है। शिवराज कैबिनेट के दमदार मंत्री कैलाश विजयवर्गीय का खुद को शोले का ठाकुर बता चुके हैं। बाबूलाल गौर अपने बयानों में सरकार पर उंगली उठा चुके हैं। और अब तो संगठन के पदाधिकारी भी सरेआम सरकार को आईना दिखा रहे हैं। अगर मध्यप्रदेश में विपक्ष मजबूत होता तो इन हालात का फायदा उठा सकता था। लेकिन शिवराज और उनकी कैबिनेट को तसल्ली करनी चाहिए कि कमजोर कांग्रेस में इस सबको लेकर कोई हलचल नहीं, लेकिन ये संकेत भी सरकार के लिए ठीक नहीं कि पार्टी और सरकार के भीतर के लोग ही अपनी सरकार के कामकाज पर सवाल उठा रहे हैं। संवादहीनता और अलग अलग गुटों में बंटी शिवराज सरकार के भीतर घुटन बढ़ रही है। अभी तक मंत्री इसे महसूस करते रहे लेकिन अब तो जिसको जब जहां मौका मिल रहा है, अपनी इस घुटन को जाहिर भी कर रहे हैं। किसी मुद्दे पर असहमति, मतभेद, स्वस्थ आंतरिक लोकतंत्र दिखाते हैं, लेकिन शिवराज कैबिनेट में मनभेद की स्थिति है। शिवराज की किचन कैबिनेट में शामिल कुछ मंत्रियों को छोड़ दें तो शिवराज के कुनबे में भरोसे की दीवार हर स्तर पर दरक रही है।

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