मंत्री लाचार, अफसर मार रहे डकार
02-Oct-2015 07:40 AM 1234822

मंत्री लाचार, अफसर मार रहे डकारमध्यप्रदेश की नौकरशाही लाख कोशिशों के बाद भी सरकार के सांचे में नहीं ढल पाई है। इस कारण न केवल विकास कार्य रुके हैं बल्कि दागदारों को भी संरक्षण मिल रहा है। इसका नजारा इन दिनों उद्योग विभाग के अंडर में आने वाले सेडमैप में देखने को मिल रहा है। आय से अधिक संपत्ति के मामले में लोकायुक्त की छापामार कार्रवाई के बाद भी उद्योग विभाग के अधिकारी सेडमैप के पूर्व कार्यकारी निदेशक जितेन्द्र तिवारी को संरक्षण दे रहे हैं। इस कारण न केवल सेडमैप के नए ईडी की भर्ती रुकी पड़ी है बल्कि तिवारी के खिलाफ कार्रवाई भी नहीं हो पा रही है। यही नहीं अपनी ईमानदार छवि और रौबदार व्यक्तित्व के कारण अच्छे-अच्छों को सबक सीखाने वाली महारानी यानी उद्योग मंत्री यशोधरा राजे को भी विभागीय अफसर गुमराह कर रहे हैं। यही कारण है कि अभी तक सेडमैप की कार्यप्रणाली को लेकर मंत्री द्वारा लिखी गई नोटशीट का जवाब भी अफसरों द्वारा नहीं दिया जा रहा है।
बताया जाता है कि तिवारी के खिलाफ लगातार मिल रही शिकायतों के बाद उद्योग मंत्री यशोधरा राजे ने 12 नवंबर 2014 को मंत्री ने प्रमुख सचिव को एक नोटशीट लिखकर जवाब मांगा था, लेकिन प्रमुख सचिव ने उसका जवाब देना मुनासिब नहीं समझा। इसी तरह 25 मई 2015 को मंत्री ने प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर सेडमैप के संदर्भ में विधानसभा के प्रश्नों की अतिरिक्त जानकारी मांगी थी। साथ ही इसी दिन कांग्रेस के विधायकों कमलेश्वर पटेल और सरस्वती देवी सिंह ने सेडमैप के तत्कालीन कार्यकारी संचालक जितेन्द्र तिवारी की प्रथम  नियुक्ति तथा उनके खिलाफ शासन को प्राप्त अनियमिततओं की शिकायतों के संबंध में विधानसभा में शासन से जवाब मांगा था। परंतु सदन में दिए गए जवाब में तिवारी के खिलाफ अनियमितताओं की अनेक शिकायतों का प्रमाणित उतर होने के बावजुद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। 10 जून 2015 को एक बार फिर नोटशीट लिखकर मंत्री ने जितेन्द्र तिवारी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया था, लेकिन प्रमुख सचिव ने उन सवालों का जवाब भी नहीं दिया। फिर तिवारी के खिलाफ हुई लोकायुक्त कार्रवाई के बाद भी 15 जुलाई 2015 को मंत्री ने पत्र लिखकर लोकायुक्त कार्रवाई के संदर्भ  में जानकारी मांगी थी, लेकिन  उन्हें कोई जानकारी नहीं दी गई। यह कुछ उदाहरण है, जो यह दर्शा रहे हैं कि प्रदेश के नौकरशाह किस तरह ईमानदार मंत्रियों को भी तवज्जो नहीं दे रहे हैं। बताया जाता है कि मंत्री और उनके विभाग के प्रमुख सचिव मोहम्मद सुलेमान में पटरी नहीं बैठ पा रही है। दरअसल, सुलेमान भी अपने तरीके से काम करने के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में मंत्री उनसे जो अपेक्षा करती हैं वे उस पर खरे नहीं उतरते हैं। यही नहीं विभाग के आयुक्त वीएल कांताराव भी मंत्री को सेडमैप के बारे में सही जानकारी नहीं दे पा रहे हैं। उद्याोग मंत्री को सेडमैप का चेयरमेन तो दूर उन्हें बोर्ड में भी नहीं रखा गया है, क्योंकि सेडमैप के बायलॉज ही ऐसे बनाए गए हैं जिसमें विभागीय मंत्री की दखलअंदाजी नहीं रहे।
यही नहीं याचिकाकर्ता तिवारी को पीसी एक्ट 1988 में लोकसेवक की परिभाषा से बाहर रखने की हर तरह की कवायद की जा रही है। इसी कवायद के चलते सरकार का सबसे अहम विभाग जो उद्योगपतियों का विश्वास जीतने के लिए बना है उसके अफसर सेडमैप को कहीं गैर सेकारी तो कही एनजीओ बता रहे हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि अभी तक सरकार यह नहीं तय कर पाई है कि सेडमैप संस्थान का उद्देश्य क्या है। लेकिन शायद अफसर यह भूल रहे हैं कि सेडमैप को गैर सरकारी बताने पर उसको अभी तक बिना
निविदा निकाले दिए गए सभी कार्यादेश जांच के घेरे में आ जाएंगे।
सेडमैप को  सरकार द्वारा वित्त पोषित संस्था मानते हुए ही विभागों ने लाखों के आदेश वर्षों से दिए हैं। और तो और मप्र शासन की डायरी में भी सेडमैप का नाम पता और टेलीफोन नंबर पृष्ठ क्रमांक 88 पर अंकित है। उसमें वकायदा चेयरमेन मोहम्मद सुलेमान के नीचे जितेंद्र तिवारी कार्यकारी निदेशक का पता और फोन नंबर के साथ लिखा हुआ है। भला सरकार का अगर यह संस्थान अंग नहीं था तो राज्य शासन की डायरी उसे क्यों स्थान दिया गया। सरकार के समझदार अफसरों को तो नियम कायदे की महारथ हासिल है परंतु सेडमैप के कर्ताधर्ता जितेंद्र तिवारी के बारे में वे जानबुझकर अनभिज्ञ बने हुए हैं।
-भोपाल से सुनील सिंह

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^