02-Oct-2015 08:17 AM
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शासकीय कार्यालय यानी टेबल पर फाइलों का अंबार, उस पर चढ़ी धूल की परत, कुर्सी पर ऊंघता बाबू, या कुर्सियां खाली और इंतजार करते लोग, दिन में जलती लाईटें और ऑफिस खाली होने के बाद

भी चलते पंखे। अब शासकीय कार्यालय की इस पहचान को बदलने के लिए मप्र सरकार मंत्रालय से लेकर जिलों तक के कार्यालयों को कारपोरेट की तरह संचालित करने जा रही है। कारपोरेट जगत की तरह अब प्रदेश के सरकारी दफ्तरों में भी सप्ताह में पांच दिन ही कामकाज होगा। अगर ऐसा होता है तो हरियाणा के बाद मप्र देश का दूसरा ऐसा राज्य होगा जहां सरकारी कर्मचारी सप्ताह में पांच दिन काम करेंगे। शनिवार और रविवार दो दिन का अवकाश रहेगा। कार्यालय सोमवार से शुक्रवार तक सुबह 10.00 से शाम 5.30 बजे तक लगेंगे। यानी फाइव डे वीक के लिए रोजाना कर्मचारियों को आधा घंटा पहले आना होगा। भोजनावकाश में भी 10 मिनिट की कटौती की गई है। लंच टाइम अब 30 मिनट की जगह 20 मिनट का होगा। इसके लिए सरकार और कर्मचारी संगठनों में न केवल सहमति बन गई है, बल्कि इसकी फुल प्रुफ तैयारी भी हो गई है। संभवत: 1 नवंबर से इसको लागू कर दिया जाएगा। लेकिन क्या सरकार अपने जिलों और दूर-दराज के कार्यालयों में अपने अधिकारियों-कर्मचारियों से इसका पालन करा पाएगी?
सवाल इसलिए उठ रहा है कि राज्य मंत्रालय में ही मंत्रियों और वरिष्ठ अफसरों ने अधिकारियों और कर्मचारियों को समय पर आने के लिए कई बार छापामार कार्रवाई की, नोटिस दिया लेकिन कुछ दिन बाद स्थिति वहीं ढाक के तीन पात वाली हो गई। ऐसे में जिलों में 12 बजे आने और 2-3 बजे तक चले जाने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों पर कैसे नकल कसी जाएगी।
बताया जाता है कि वित्त मंत्री जयंत मलैया के साथ कर्मचारी संगठनों के साथ हुई बैठक में सहमति बनने के बाद सामान्य प्रशासन विभाग ने कैबिनेट का प्रस्ताव तैयार कर लिया है। उल्लेखनीय है कि पहले सरकार ने रोजाना डेढ़ घंटे अतिरिक्त कार्य करने का प्रस्ताव तैयार किया था, जिस पर कर्मचारियों ने कड़ी आपत्ति दर्ज की थी। इसके चलते वित्त विभाग ने नए प्रस्ताव में रोजाना 40 मिनट अतिरिक्त कार्य करने का प्रस्ताव कर्मचारियों के सामने रखा, जिस पर सभी संगठनों ने सैद्धांतिक सहमति दे दी। बताते हैं कि हैदराबाद के एक सामाजिक कार्यकर्ता नागेश पुली चेरला के सुझाव पर सरकार ने यह पहल की है। उन्होंने अपने प्रस्ताव के साथ अमेरिका की चापेल हिल स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ नार्थ केरोलीना में की गई रिसर्च के लिंक दिए हैं। जो कि एजुकेशन रिफार्म, एडमिनिस्ट्रेशन और हेल्थ को लेकर है। इसमें बताया गया है कि लगातार काम करने से कर्मचारियों में तनाव की स्थिति देखने को मिलती है। सप्ताह में एक दिन का अतिरिक्त अवकाश मिलने से वे अपने परिवार के साथ अच्छे से समय बिता सकेंगे। वहीं पांच दिन मन लगाकर काम करने से वे अपना बेहतर परफामेंस दे सकते हैं। बताया जाता है कि हरियाणा में सप्ताह में पांच दिन कार्य की सफलता को देखते हुए अफसरों ने इसे मप्र में भी लागू करने का खाका तैयार किया है। लेकिन देखा जाए तो मप्र जनसंख्या और क्षेत्रफल की दृष्टि से हरियाणा से कहीं बड़ा राज्य है। हरियाणा की जनसंख्या ढाई करोड़ है और वहां कुल 21 जिले हैं, जबकि मप्र की जनसंख्या करीब सवा सात करोड़ है और यहां 51 जिले हैं। ऐसे में वहां की नीति यहां लागू करने में दिक्कतें आएंगी।
सप्ताह में एक दिन अवकाश बढ़ाने से सरकारी दफ्तरों के हर माह 14 घंटे कम होंगे। इसकी पूर्ति करने के लिए सरकार दफ्तरों के समय में रोजाना 40 मिनट की बढ़ोतरी करने जा रही है। इसके चलते सुबह 10.30 की जगह 10.00, भोजनावकाश 30 की जगह 20 मिनट का रहेगा। वित्त विभाग के सूत्रों की माने तो सरकारी वाहनों के पेट्रोल-डीजल पर 2000 करोड़, किराए के वाहनों पर 500 करोड़, टेलीफोन स्टेशनरी पर 700 करोड़, ठेके पर दी गई साफ-सफाई पर 500 करोड़ और दफ्तरों में होने वाली मीटिंग सहित रोजमर्रा के चाय-पानी पर 60 करोड़ का सालाना खर्च आता है। जो कि कुल 3760 करोड़ होता है। ऐसे में यदि वर्ष भर में 26 दिन कार्यालय बंद रहता है तो सरकार को 371.54 करोड़ रूपए की बचत होगी। यानी मासिक करीब 31 करोड़ रूपए की बचत होगी। इस सिस्टम से वर्ष भर में कर्मचारियों को 365 दिन में 128 अवकाश मिलेंगे। जो कि वर्तमान में 102 हैं। इनमें 52 रविवार, 26 दूसरा और तीसरा शनिवार और 26 सामान्य अवकाश एवं त्यौहार शामिल हैं।
अफसर नहीं जाएंगे लंच पर
कहां गया वह आदेश जो इसी सरकार में इसी सरकार के मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के जमाने में निकला था। तत्कालिन मुख्य सचिव विजय सिंह ने एक सर्कुलर 2005 में निकला था और उसमें उन्होंने अफसरों की फिजुलखर्ची को रोकने के लिए यह सख्त कदम उठाया था, परंतु उसी सरकार में यह आदेश धूल चाटता नजर आ रहा है। क्या शिवराज को यह आदेश मुख्य सचिव महोदय बता पाएंगे।
-कुमार विनोद