17-Sep-2015 07:06 AM
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मध्यप्रदेश ने टाइगर स्टेटÓ का गौरव तो खो दिया है किंतु प्रदेश का वन विभाग अफ्रीकी चीतों को यहाँ बसाकर नया कीर्तिमान बनाना चाह रहा है। इसके लिए सागर जिले में स्थित नौरादेही

अभ्यारण का चयन किया गया है। 2005 के पहले तक बाघों का बसेरा रहे नौरादेही अभयारण्य में धन की कमी की वजह से अभी तक यह महत्वाकांक्षी परियोजना अधर में लटकी हुई थी। अब एक बार फिर इस परियोजना पर काम शुरू हो गया है। अभयारण्य में अफ्रीकी चीतों को बसाने के लिए परिक्षेत्र के अंतर्गत आ रहे चार गांव अब तक खाली कराए जा चुके हैं। केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की इस योजना पर नौरादेही वन मंडल और जिला प्रशासन कार्यरत है इसमें केन्द्र व राज्य सरकार तीन हजार करोड़ रुपए खर्च करेगी।
2005 तक नौरादेही में 14 बाघ मौजूद थे। लापरवाही और अवैध शिकार के चलते धीरे-धीरे यहां के बाघ अन्य अभयारण्यों की तरह गायब हो गए। यहां तेंदुआ, नीलगाय, भेडिय़ा, हिरण, बारहसिंगा, लोमड़ी सहित जंगली जानवरों की अच्छी खासी संख्या थी। प्राकृतिक रूप से यह बाघ और तेंदुओं का क्षेत्र है। इसी कारण इसे अफ्रीकी चीतों को बसाने के लिए पूरी तरह से माकूल पाया गया है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की विशेष टीम ने वर्ष 2012 में प्रदेश भर के अभयारण्यों का निरीक्षण व सर्वे करने के बाद सागर, दमोह व नरसिंहपुर जिले की सीमा में 1197 वर्ग किमी में फैले अभयारण्य में फैले नौरादेही को चीतों के लिए अनुकूल माना था। 3 हजार करोड़ की राशि अभयारण्य के परिक्षेत्र में आने वाले 24 गांवों के ग्रामीणों को विस्थापन के मुआवजे के रूप में दी जाएगी। केंद्र सरकार ने 23 गांवों का विस्थापन करने का निर्णय लिया था लेकिन अभयारण्य मंडल ने तकनीकी परेशानियां बताते हुए 24 गांवों का प्रस्ताव तैयार किया। बाद में इसे भी केन्द्र की स्वीकृति मिल गई। इन गांवों से करीब 3 हजार परिवारों का विस्थापन किया जाना है। प्रत्येक परिवार को पुनर्वास हेतु मुआवजे के रूप में 10 लाख रुपए मिलेंगे।
नौरादेही अभयारण्य के डिवीजन फॉरेस्ट ऑफिसर मधु वी राज कहते हैं कि अभी अभयारण की सिंगपुर रेंज के रमपुरा, बिजनी, पीपला व नौरादेही रेंज के नौरादेही गांव को गत दो वर्ष में खाली कराकर 629 परिवारों का विस्थापन करते हुए मुआवजे के रूप में 62 करोड़ 90 लाख रुपए बांटे जा चुके हैं। शेष 20 गांवों का पुनर्वास किया जाना है। इसमें सागर, दमोह, नरसिंहपुर जिला प्रशासन और वन विभाग दोनों संयुक्त रूप से काम कर रहे हैं। इसे 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य है।
मध्यप्रदेश के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक वन्यप्राणी नरेन्द्र कुमार कहते हैं कि मध्यप्रदेश के वन विभाग ने दिसम्बर 2013 से इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए 264 करोड़ रूपए मांगे थे, लेकिन वहां से अब तक कोई जवाब नहीं मिला है। चीता मैमेलियन प्रजाति का अकेला जीव है, जो भारतीय उप महाद्वीप से लुप्त हो गया है। देश में आखिरी बार देखे गए 3 चीतों को छत्तीसगढ़ में 1947 में सरगुजा के महाराजा ने मार गिराया था। वर्ष 1952 में चीते को विलुप्तप्राय: प्राणी घोषित कर दिया गया। नरेन्द्र कुमार के मुताबिक अभयारण्य में चीते लाने के लिए भारतीय वन्यप्राणी संस्थान डब्लूआईआई देहरादून ने 16.6 करोड़ रूपए की एक प्रारंभिक कार्ययोजना भी नवंबर 2013 में लागू करने के लिए भेजी थी। उन्होंने बताया कि डब्लूआईआई के अनुसार 1197 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस अभयारण्य में से 700 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल चीतों को बसाने के लिए आरक्षित करना है। किंतु धन की अनुपलब्धता की वजह से इस दिशा में अब तक कोई काम नहीं हो पाया है। अधिकारियों के अनुसार इस परियोजना हेतु धन उपलब्ध कराने के लिए मध्यप्रदेश सरकार इसलिए तैयार नहीं है, क्योंकि इससे पहले श्योपुर जिला स्थित कुनो-पालपुर वन्यप्राणी अभयारण्य में गुजरात के गिर से एशियाई शेर लाकर बसाने की परियोजना को लेकर केन्द्र सरकार के साथ उसका अनुभव अच्छा नहीं रहा है।
इस योजना पर काम भी 5 वर्ष से चल रहा है वर्ष 2010 में तात्कालीन वन मंत्री सरताज सिंह ने चीतों के स्थानान्तरण के लिए कुनो पालमपुर अभयारण्य चुना था। बाद में नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य का नाम चुना गया। 2010 में यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान चीतों को भारत लाए जाने की परियोजना बनाई गई थी। तब इसके लिए प्रदेश के श्योपुर जिले में 344 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले कुनो-पालपुर वन्यप्राणी अभयारण्य को चुना गया था और इस दिशा में कुछ प्रगति भी हुई। राज्य में चीते लाकर उन्हें उनके अनुकूल प्राकृतिक माहौल उपलब्ध करवाना था, ताकि वे न सिर्फ सुरक्षित और संरक्षित रहें, बल्कि प्रजनन भी कर सकें। लेकिन यह योजना पूरी नहीं हो सकी। एक तो केंद्र सरकार इस काम के लिए धन नहीं उपलब्ध करवा सकी बाद में 15 अप्रैल 2013 को एक याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए कि कुनो-पालपुर अभयारण्य में चीता नहीं, बल्कि गुजरात से गिर के एशियाई शेरों का प्रस्तावित स्थानांतरण किया जाए।
-ज्योत्सना अनूप यादव