16-Sep-2015 02:27 PM
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मप्र में खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए प्रदेश सरकार निरंतर प्रयासरत है। इन्हीं प्रयासों का प्रतिफल है कि प्रदेश को लगातार तीन बार कृषि कर्मण अवार्ड मिल चुका है। लेकिन इस बीच दुखद

समाचार यह है कि सोया-प्रदेशÓ के रूप में विख्यात प्रदेश में पिछले चार साल से सोयाबीन की खेती का रकबा कम होता जा रहा है। अब ऐसे में सवाल उठने लगा है कि आखिरकार मप्र में खेती लाभ का धंधा कैसे बन पाएगी। दरअसल, प्रदेश में पिछले चार साल से लगातार खरीफ फसल पर कुदरत की मार पड़ रही है। फसल पर पहले सूखे की मार और अब यलो मोजेक बीमारी से सोयाबीन पीला पड़कर सूख रहा है। इस हाल से जूझते किसान रोजाना ही प्रशासनिक अफसरों से गुहार लगाने द तरों में पहुंच रहे हैं। जानकारी के अनुसार, करीब 100 तहसीलों में फसल बर्बाद हुई है। सबसे अधिक शहडोल, चंबल और सागर संभाग में फसल बर्बाद हुई है। हालांकि कृषि विभाग ने ऐसी स्थिति से निपटने के लिए विस्तृत कार्ययोजना बनाई है। बर्बाद खेती का आकलन करने के लिए तहसीलदारों को जिम्मेदारी सौंप दी गई है। कहां बारिश हुई है कहा नहीं, कहां किस फसल को रोग लगा है इसका सर्वे कराया जा रहा है। मुख्य सचिव एंटोनी डीसा ने भी वीडियो कांफ्रेसिंग कर अधिकारियों से राजस्व विभाग की कंडिका 6.3 के तहत अधिकारियों को सर्वे करने को कहा है।
देश में सोयाबीन उत्पादन में अग्रणी माने जाने वाले मध्यप्रदेश में सोयाबीन की फसल पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। पहले अतिवृष्टि और अब सोयाबीन की फसल में लगे मोजेक रोग के चलते उत्पादन स्तर गिरने की संभावना है, जिससे एमपी से सोयाप्रदेश का तमगा छिनने का डर है। मध्यप्रदेश में देश का करीब साठ फीसदी सोयाबीन उत्पादित होता है, जिसके चलते इसे सोया प्रदेश कहा जाता है। पिछले सालों से सोया प्रदेश का गौरव छिनता जा रहा है, क्योंकि प्रदेश में सोया उत्पादन की सबसे बड़े इलाके नरसिंहपुर जिले में इसकी उपज अब दम तोड़ रही है। यही नहीं, प्रदेश के चंबल, ग्वालियर और बुंदेलखंड इलाकों में पिछले तीन साल में सोयाबीन की बर्बादी ने किसानों का रुझान इस फसल के प्रति कम कर दिया है। वर्ष 2012-13 में जहां 61.86 लाख हैक्टेयर में में सोयाबीन की खेती हुई थी, वहीं 2013-14 61.64 लाख हैक्टेयर, 2014-15 में 54.27 लाख हैक्टेयर और 2015-16 में लगभग 59 लाख हैक्टेयर में सोयाबीन की खेती की गई है। लेकिन करीब 25 फीसदी फसल बर्बाद हो गई है। बताया जाता है कि पूरी तरह मानसून पर आधारित खेती होने के कारण प्रदेश के किसान सोयाबीन की खेती की जगह अब धान और मक्के की खेती करने लगे हैं। इनका रकबा लगातार बढ़ रहा है। 2012-13 जहां धान 18.01 लाख हैक्टेयर में बोया गया था वहीं मक्का 8.65 लाख हैक्टेयर में। इस तरह 2013-14 में धान 19.30 लाख हैक्टेयर तो मक्का 8.60 लाख हैक्टेयर और 2014-15 धान की खेती 21.53 लाख हैक्टेयर में की गई है वहीं मक्के की खेती 11.32 लाख हैक्टेयर में की गई है।
पिछले साल सोयाबीन की खड़ी फसल को अतिवृष्टि, ओला और पाला ने बर्बाद कर दिया, तो इस साल फसल बोवनी के बाद बारिश की कमी का शिकार हो रही है। प्रदेश में इस साल सामान्य से 11 प्रतिशत कम बारिश हुई है। प्रदेश के पश्चिमी भाग में जहां 5 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई है, वहीं पूर्वी क्षेत्र में 35 प्रतिशत कम बारिश हुई है। 6 जिलों में तो 6 सप्ताह में ही बारिश थम गई। इसको देखते हुए प्रदेश में बिजली उत्पादन 1000 मेगावाट अतिरिक्त किया जा रहा है ताकि किसान अपनी फसलों को समय पर पानी दे सकें। इस फसल की बर्बादी की सबसे बड़ी वजह पीला मोजेक रोग है। हालात ये हैं बमुश्किल महंगे बीज के जरिए जैसे-तैसे फसल लगायी और अब रोग ने उसे बर्बाद कर दिया। किसान रोग लगने से बर्बाद हुई फसल को जानवरों को चराने के लिए मजबूर हैं। हालांकि इस संकट की घड़ी में सरकार ने किसानों को सलाह दी है कि वे अद्र्ध सिंचित फसलों की खेती करें। सरकार ने रवि की फसल के लिए अद्र्ध सिंचित फसलों के 12 लाख किलो बीज की व्यवस्था की है। साथ ही उर्वरकों का भी भंडारन कर लिया गया है। मौसम की मार से बर्बाद सोयाबीन का मुआवजा न मिलने की स्थिति में किसानों को बीमा क्लेम देकर राहत देने की तैयारी है। क्लेम देने की कवायद प्रशासनिक स्तर पर शुरू हो गई है। हालांकि, इसके लिए क्रॉप कटिंग का इंतजार है। ग्राम पंचायतों में राजस्व और कृषि विभाग का अमला सर्वे कर रहा है। सभी जगह से सर्वे रिपोर्ट मिलने के बाद बीमा कंपनी से क्लेम दिलवाया जाएगा। फसल बीमा के लिए 350 करोड़ की राशि जमा की गई है। फसल कटाई के समय आकलन करके राहत बंटेगी। उधर, प्रसंस्करणकर्ताओं के संगठन सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) ने कहा है कि मौसम के कहर और खरपतवार व कीटों के प्रकोप के कारण प्रदेश में खरीफ के मौजूदा मौसम के दौरान सोयाबीन की लगभग 25 प्रतिशत फसल की हालत फिलहाल खराब है। सोपा के एक पदाधिकारी ने हालिया सर्वेक्षण के हवाले से बताया कि खरीफ के इस मौसम में देश में करीब 114 लाख हैक्टेयर में सोयाबीन की बुआई की गई। इसमें से लगभग 34 लाख हैक्टेयर में फसल की स्थिति अलग-अलग कारणों से खराब है।
-भोपाल से बृजेश साहू